आर्ति प्रबंधं

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम:

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श्री रामानुज- श्रीरंगम

ap2मणवाळ मामुनिगळ – श्रीरंगम

श्री मणवाळ मामुनि हमारे सत सम्प्रदाय के प्रति अपने यशस्वी साहित्यिक अभिदान की आरंभ, आळ्वारतिरुनगरी के भविष्यदाचार्य सन्निधि में कैंकर्य करते समय, श्री रामानुज के यश पर संस्कृत में यतिराज विम्षति नामक प्रबंध, किये। ये मन मोहक २० श्लोक, यतिराज (श्री रामानुज – यतियों के राजा) पर मणवाळ मामुनि के संपूर्ण निर्भरता को दिखाती हैं।

अपने जीवन के अंतिम समय में, श्रीरंगम में निवासित श्री मणवाळ मामुनि हमारे सत सम्प्रदाय को पुनरुज्जीवित, पुनर निर्माण कर, अकल्पनीय उंच्चाई तक ले गए। उस समय हमारे सम्प्रदाय के प्रति अपने यशस्वी साहित्यिक अभिदान की पूर्ती, फिर श्री रामानुज के यश पर तमिळ में एक सुंदर ग्रंथ आर्ति  प्रबंध के सात किए। वैसे ही ये मन मोहक ६० श्लोक भी, श्री रामानुज पर श्री मणवाळ मामुनि की संपूर्ण निभर्रता को प्रकट करतीं हैं। इस प्रबंध में वे स्पष्ट स्तापिथ करतें हैं, की केवल श्री रामानुज के चरण कमल ही हम श्री वैष्णवों की आश्रय हैं और उन्कि संबंध ही इस संसार में हमारी जीवन रेखा हैं।

श्री रामानुज के प्रति यह दृढ़ प्रेम और निर्भरता के कारण ही श्री मणवाळ मामुनि, यतीन्द्र प्रवणर (यतींद्र जो रामानुज हैं, उन्के प्रति प्रेम और भक्ति के अवतार) के नाम से प्रसिद्ध हैं।

ap3पिळ्ळै लोकं जीयर

इन दिव्य श्लोकों के हिंदी अनुवाद देखेंगे। यह अनुवाद, पिळ्ळै लोकं जीयर के विस्तृत टिप्पणी पर आधारित हैं।

– अडियेन प्रीती रामानुज दासि

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