आर्ति प्रबंधं ३५

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम:

आर्ति प्रबंधं

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उपक्षेप

मामुनि श्री रामानुज से कहतें हैं , “स्वामी! बाधाओं को निकाल कर मेरी रक्षा करने में ही आपकी चिंता हैं।  आपके अत्यंत कृपा के कारण, आपके प्रति कैंकर्य करने  कि अवसर दिलाने की इच्छा रखते हैं।  किन्तु साँसारिक रुचियाँ ऐसे कैंकर्य के प्रति मेरी दिलचस्पी को घटाने की कोशिश करतें हैं।  यह मेरे कर्मों की ही फल हैं। आपसे प्रार्थना हैं कि  इन्को नाश कर आपके प्रति नित्य दास्य भाव को  बढ़ाये रखें।   

पासुरम ३५

अरुळाले अडियेनै अबिमानित्तरुळी  

अनवरदम अडिमै कोळ निनैत्तु नीयिरुक्क

मरुळाले पुलन पोग वानजै सेय्युं एन्रान

वलविनैयै माट्री उन्पाल मनम वैक्क पन्नाय

तेरुळारुम कूरत्ताळवानुम अवर सेल्व

तिरुमगनार तामुम अरुळीचेयद तीमै

तिरळान अत्तनैयुम सीरवुळ एन्नै

तिरुत्ति उय्यक्कोलुम वगै तीरुम ऐतिरासा

शब्दार्थ

अनवरदम – (हे श्री रामानुज) हमेशा

निनैत्तु नीयिरुक्क – आप इस सोच में हैं

अरुळाले – आपके अत्यंत कृपा के कारण  

अडियेनै अबिमानित्तरुळी – कि मै परमपद के लायक हूँ और इस सँसार का नहीं

अडिमैं कोल्ल – और आप मुझें अपने प्रति नित्य कैंकर्य के लिए उपयोग करने का सोच रहें हैं।  

पुलन – (मेरे) इन्द्रियाँ

एन्रन – मेरे (जिनके कारण )

वल – शक्तिशाली

विनैयै – कर्म

वांजै सेय्युं – तरसते हैं  

पोग – और साँसारिक विषयों के पीछे जायें  

मरुळाले – और अज्ञान देते हैं जो आपके शुद्ध विचार को छिपाते हैं।  

पण्णाइ – (आपसे विनति करता हूँ) मुझे आशीर्वाद कीजिये

माट्री – ध्यान उस्से हटाएँ

मनम वैक्क – और मन को बहलाएँ

उन्पाल – अपने ओर

तेरुळारुम – जो ज्ञान से भरें हैं और जिन्का नाम हैं

कूरत्ताळवानुम – श्री कूरेश और

अवर सेल्व तिरुमगनार तामुम – कूरत्ताळवान के पुत्र होने की सौभाग्य मिलने वाले पेरिय भट्टर

अरुळीचेयद – अपने को नीच समज

तीमै तिरळान – पापों के समूह के सूची दिए

अत्तनयुम – (अत्यंत विनम्रता से ऐसे बतातें हैं ) वें सारें

सेरवुल्ल – (एक को भी न छोड़ कर) उपस्थित हैं

एन्नै – मुझ में

ऐतिरासा – यतिराजा

तेरुम – कृपया सोचें

वगै – कोई मार्ग

तिरुत्ति – मुझे सुधार कर

उय्यकोल्लुम – विमुक्त करने केलिए

सरल अनुवाद

इस पासुरम में मामुनि कहते हैं कि, श्री कूरेश और उन्के श्रेयस्वी पुत्र अपने ग्रंथों में, विनम्रता से जितने असंखित पापों कि प्रस्ताव किये हैं , वें  सबी उनमें (मामुनि में ) उपस्थित हैं।  यह पाप मामुनि को घेरे हैं जिसके कारण उन्हें, श्री रामानुज के, मामुनि को मुक्ति दिलाकर कैंकर्य दिलाने कि शुद्ध विचार समझने से रोखते हैं। क्रूर पापों से प्रभावित अपने इन्द्रियों से नियंत्रित बुद्धि को सही रास्ते में निर्माण करने को, श्री रामानुज से मामुनि  विनति करतें हैं।  

स्पष्टीकरण

मामुनि प्रस्ताव करतें हैं , “हे श्री रामानुज! श्री कूरेश और उन्के पुत्र होने की महान मौका पाने वाले पेरिय भट्टर के ज्ञान को प्रशंसा करने वाली वचन है , कूरनाथभट्टाक्य देसिकवरोक्त समस्तनैच्यं अद्यास्ति असंकुचितामेव (यतिराज विंशति १५) .  श्री कूरेश के पुत्र होने के सौभाग्य के कारण, भट्टर “श्रीरंगराज कमलापदलालि तत्त्वं” कहलातें हैं।  अत्यंत विनम्रता के कारण, श्री कूरेशर और भट्टर अपने पापों के सूची देतें हैं जिन्मे “पुत्वाचनोच अधिक्रामांग्यां (वरदराज स्तवं)” जैसे वचन भी हैं। यह सारे पाप मुझ में अधिकतर रूप में उपस्थित हैं। मामुनि आगे कहतें हैं, “हे रामानुज! “सेयल ननराग तिरुत्ति पणिकोळवान (कणणिनुन सिरु ताम्बु १०) वचनानुसार आप हमेशा जनों को सुधार कर मुक्ति दिलाने कि विचार में ही हैं। मेरे प्रति अत्यंत कृपा के कारण आप मुझे परमपद के लायक समझतें हैं और इस सँसार से विमुक्त करने की विचार में हैं।  इससे बढ़कर अपने प्रति नित्य कैंकर्य देने कि मार्ग सोचते हैं। परंतु मेरे इन्द्रियाँ और क्रूर पाप, मेरे बुद्धि से आपके शुद्ध विचारों को छिपाती हैं। यतिराज विंशति १६ के “शब्दादि भोग रूचिरनवहमेधदेह” वचनानुसार, मेरे क्रूर पापों से प्रभावित मेरे इन्द्रियाँ, आपसे दूर और साँसारिक रुचियों के निकट ले जातीं हैं। आपसे विनति करता हूँ कि तिरुवाय्मोळि(१.५.१०) के “तनपाल मनमवैक्क तिरुत्ति” के अनुसार आप मेरे विचारों को सुधार अपने और खींच लें। हे मेरे निरंतर स्वामि, मैं विनती करता हूँ कि, आपके ही सोच में रहने वाली मन दें।  कृपया इस पर विचार कीजिये।

अडियेन प्रीती रामानुज दासी

आधार :  http://divyaprabandham.koyil.org/index.php/2017/02/arththi-prabandham-35/

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