उपदेश रत्तिनमालै – सरल व्याख्या – पासुरम् ५७-५९

। ।श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमत् वरवरमुनये नमः। । उपदेश रत्तिनमालै << पासुरम् ५५-५६ पासुरम् ५७ सत्तावनवां पासुरम्। श्री वरवरमुनि स्वामी को ऐसे लोगों की दुखद परिस्थिति पर वेदना होती है, जो इस ग्रंथ की महानता को जानते हुए भी इसमें भाग नहीं लेते हैं। देसिगर्पाल् केट्ट सॆऴुम् पॊरुळैच् चिन्दै तन्निल्मासऱवे ऊन्ऱ … Read more

उपदेश रत्तिनमालै  – सरल व्याख्या – पासुरम् ५५ – ५६

। ।श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमत् वरवरमुनये नमः। । उपदेश रत्तिनमालै << पासुरम् ५३ – ५४ पासुरम् ५५ पचपनवां पासुरम्। वे अपने हृदय से कहते हैं कि ऐसा व्यक्ति मिलना दुर्लभ है जिसने श्रीवचनभूषणम् के अर्थ को पूर्णतः समझ लिया हो, और उससे भी अधिक दुर्लभ है ऐसा व्यक्ति से मिलना जो … Read more

उपदेश रत्तिनमालै  – सरल व्याख्या – पासुरम् ५३ – ५४

। ।श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमत् वरवरमुनये नमः। । उपदेश रत्तिनमालै << पासुरम् ५१ – ५२ पासुरम् ५३ तिरेपनवां पासुरम्। इस पासुरम् से लेकर‌ श्रीवरवरमुनि स्वामी (मामुनिगळ्) कृपापूर्वक श्रीवचन भूषणम् ग्रन्थ का सार और उसकी महिमा बताते हैं, जो पिळ्ळै लोकाचार्य द्वारा दयापूर्वक लिखा गया था और जो आऴ्वारों के दिव्य प्रबंधों … Read more

उपदेश रत्तिनमालै – सरल व्याख्या – पासुरम् ५१ – ५२

। ।श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमत् वरवरमुनये नमः। । उपदेश रत्तिनमालै <<पासुरम् ५० पासुरम् ५१इक्यावनवां पासुरम्। मामुनि (श्रीवरवरमुनि स्वामी) दयालु होकर समझाते हैं, नम्पिळ्ळै‌ को लोकाचार्य का प्रतिष्ठित दिव्य नाम कैसे मिला। तुन्नु पुगऴ् कंदाडै तोऴप्पर् तम्मुगप्पाल्ऎन्नवुलगारियनो ऎन्ऱु उरैक्क – पिन्नैउलगारियन् ऎन्नुम् पेर् नम्बिळ्ळैक्कोङ्गिविलगामल् निन्ऱदु ऎन्ऱुम् मेल् कन्दाडै तोऴप्पर् एक ऐसे व्यक्ति … Read more

उपदेश रत्तिनमालै  – सरल व्याख्या – पासुरम् ५०

। ।श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमत् वरवरमुनये नमः। । उपदेश रत्तिनमालै << पूर्व अनुच्छेद पासुरम् ५० पचासवां पासुरम्। इस प्रकार ईडु भाष्य की महानता को समझाने के बाद, श्रीवरवरमुनि स्वामी श्रीवचनभूषण की महानता का वर्णन करने का निर्णय लेते हैं, जो कि तिरुवाय्मोऴि का वास्तविक अर्थ है। प्रारंभ में बताते हैं कि नम्पिळ्ळै … Read more

उपदेश रत्तिनमालै – सरल व्याख्या – पासुरम् ४८ – ४९

। ।श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमत् वरवरमुनये नमः। । उपदेश रत्तिनमालै << पूर्व अनुच्छेद पासुरम् ४८  अड़तालीसवाँ पाशुरम्। इस तरह [अन्य दिव्य प्रबंधों के लिए लिखे गए] व्याख्यानों की व्याख्या करने के बाद, श्री वरवरमुनि स्वामी कृपापूर्वक अगले दो पासुरम् के माध्यम से नम्पिळ्ळै की प्रख्यात टीका ‘ईडु’ की व्याख्या के बारे में … Read more

उपदेश रत्तिनमालै – सरल व्याख्या – पासुरम् ४६ – ४७

। ।श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमत् वरवरमुनये नमः। । उपदेश रत्तिनमालै << पूर्व अनुच्छेद पासुरम् ४६ छियालीसवाँ पासुरम्। क्योंकि वेद (जिसमें अंग प्राथमिक घटक है और उपांग द्वितीय घटक है) के जैसे तिरुवाय्मोऴि के भी अन्य दिव्यप्रबंधों के रूप में प्राथमिक और द्वितीय घटक होते हैं, इन प्रबंधों के लिए दयापूर्वक व्याख्यान … Read more

उपदेश रत्तिनमालै – सरल व्याख्या – पासुरम् ४४ – ४५

। ।श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमत् वरवरमुनये नमः। । उपदेश रत्तिनमालै << पूर्व अनुच्छेद पासुरम् ४४ चौवालीसवां पासुर। मामुनि स्वामी जी नम्पिळ्ळै द्वारा आयोजित प्रवचनों से पांडुलिपि के रूप में व्याख्या लिखने की महिमा के बारे में बताते हैं। तॆळ्ळियदा नम्पिळ्ळै सॆप्पु नॆऱि तन्नैवळ्ळल् वडक्कुत् तिरुवीधिप् पिळ्ळै – इन्दनाडऱिय माऱन् मऱैप् पॊरुळै नन्गु … Read more

उपदेश रत्तिनमालै – सरल व्याख्या – पासुरम् ४१ – ४३

। ।श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमत् वरवरमुनये नमः। । उपदेश रत्तिनमालै << पूर्व अनुच्छेद पाशुरम् ४१इकतालीसवां पाशुरम्। वे दयापूर्वक आऱायिरप्पडि (एक पडि में ३२ अक्षर होते हैं) व्याख्यानम् के बारे में बताते हैं, जिसे तिरुक्कुरुगैप्पिरान् पिळ्ळान् ने तिरुवाय्मॊऴि के लिए दयापूर्वक रचा था। तॆळ्ळारुम् ज्ञानत् तिरुक्कुरुगैप्पिरान्पिळ्ळान् ऎदिरासर् पेररुळाल् – उळ्ळारुम्अन्बुडने माऱन् मऱैप् … Read more

उपदेश रत्तिनमालै – सरल व्याख्या – पासुरम् ३८ – ४०

। ।श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमत् वरवरमुनये नमः। । उपदेश रत्तिनमालै << पूर्व अनुच्छेद पासुरम् ३८ अड़तीसवाँ पासुरम्। मामुनिगळ् ने दयालुतापूर्वक ऎम्पॆरुमानार् को नम्पेरुमाळ् द्वारा दिये गये महान सम्मान को प्रकट किया ताकि हर कोई जान सके कि ऎम्पॆरुमानार् ने कितनी अच्छी तरह प्रपत्ति (ऎम्पॆरुमान् के प्रति समर्पण) मार्ग अपनाया था, और … Read more