सप्त गाथा – पासुरम् ७

श्री: श्रीमते शठकोप नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमद् वरवर मुनये नम: शृंखला <<सप्त गाथा – पासुरम् ६ परिचय विळाञ्जोलैप् पिळ्ळै से पूछा गया, “आपने कई प्रकार से कहा कि जिन लोगों में अपने आचार्य के प्रति श्रद्धा की कमी है, वे बहुत नीचे गिर जाएंगे और उनके पास मुक्ति की कोई संभावना नहीं होगी। अब हमें … Read more

सप्त गाथा – पासुरम् ६

श्री: श्रीमते शठकोप नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमद् वरवर मुनये नम: शृंखला <<सप्त गाथा – पासुरम् ५ परिचय विळाञ्जोलैप् पिळ्ळै अवलोकन कर रहे हैं  कि पेरिय पेरुमाळ् दयापूर्वक कह ​​रहे हैं, “यद्यपि संसारियों (सांसारिक जन) के बीच विद्यमान हैं जो पूर्णत: इन चार दृष्टिकोण में व्यस्त हैं (आचार्य के प्रति प्रेम नहीं रखते, स्वयं से … Read more

सप्त गाथा – पासुरम् ५

श्री: श्रीमते शठकोप नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमद् वरवर मुनये नम: शृंखला <<सप्त गाथा – पासुरम् ४ परिचय विळाञ्जोलैप् पिळ्ळै कह रहे हैं “जिस प्रकार निर्देश प्राप्त करने वाले शिष्य में अपने आचार्य के प्रति आस्था की कमी होने पर उसका स्वभाव नष्ट हो जाता है, उसी तरह निर्देश देने वाले आचार्य का भी स्वभाव … Read more

सप्त गाथा – पासुरम् ४

श्री: श्रीमते शठकोप नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमद् वरवर मुनये नम: शृंखला <<सप्त गाथा – पासुरम् ३ परिचय चौथा पासुरम्। तत्पश्चात्, विळाञ्जोलैप् पिळ्ळै कृपापूर्वक सिंहावलोकन न्यायम् के अनुसार दूसरे पाशुर का पुनरावलोकन कर रहे हैं (पूर्व में समझाए गए विषय पर फिर से विचार करने का नियम जैसे एक घूमता हुआ सिंह‌ मुड़कर जिस रास्ते … Read more

सप्त गाथा पासुरम् ३

श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमते वरवरमुनये नम: शृंखला <<सप्त कादै – पासुरम् २ परिचय यह पूछे जाने पर कि “यद्यपि एक व्यक्ति में अपने आचार्य के प्रति प्रेम की कमी है, आचार्य के निर्देशों के कारण, उसने शास्त्र का सार सीखा है जैसे कि अर्थ पंचकम आदि। उन शास्त्रों को विस्तार से सीखना … Read more

सप्त गाथा – पासुरम् २

श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमते वरवरमुनये नम: शृंखला <<सप्त कादै – पासुरम् १ – भाग ५ परिचय आचार्य वह हैं जो एक व्यक्ति को अर्थ पंचक के बारे में ज्ञान अर्जित कराते हैं और करुणापूर्वक अपने निर्देशों के साथ उस व्यक्ति को स्वीकार करते हैं, और इसलिए एक महान हितकारी हैं; ऐसे आचार्य … Read more

सप्त कादै – पासुरम् १ – भाग ५

श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमते वरवरमुनये नम: शृंखला <<सप्त कादै – पासुरम् १ – भाग ४ तडै काट्टि–  निम्नलिखित तथ्यों में बाधाओं को प्रकट करना १) संबंध के बारे में जो पहले प्रस्तुत किया गया था, २) ईश्वर, जो ऐसे संबंध का प्रतिरूप है, उनके प्रभुत्व का बोध ३) चेतन की अनन्य … Read more

सप्त कादै – पासुरम् १ – भाग ४

श्री: श्रीमते शठकोप नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमद् वरवर मुनये नम: शृंखला <<सप्त कादै – पासुरम् १ – भाग ३ जिस प्रकार से आचार्य इन नौ प्रकार संबंधों का निर्देश देते हैं जैसे कि तिरुवाय्मोऴि २.३.२ में वर्णित है “अऱियाधन अऱिवित्त” (ऐसे अनुभवों को बताया गया है जिसके बारे में प्रत्येक नहीं जानते), यह चेतना … Read more

सप्त कादै – पासुरम् १ – भाग ३

श्री: श्रीमते शठकोप नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमद् वरवर मुनये नम: शृंखला <<सप्त कादै – पासुरम् १ – भाग २ तत्पश्चात, जैसे “अवदारणमन्ये तु मध्यमान्तम् वदन्तिहि” और “अस्वातन्तर्यंतु जीवानाम् आधिक्यम् परमात्मन:। नमसाप्रोच्यते तस्मिन् नहन्ताममतोज्जिता” ।। [नम: जीवात्मा के पारतन्त्र्यम् (दासता) और परमात्मा के स्वातन्त्र्यम् (मुक्ति) की व्याख्या करता है। इस प्रकार नम: में अहंकार (शरीर … Read more

सप्त कादै – पासुरम् १ – भाग २

श्री: श्रीमते शठकोप नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमद् वरवर मुनये नम: शृंखला << सप्त कादै – पासुरम् १ – भाग १ अम् पोन् अरङ्गर्क्कुम् -मुक्तात्मा, जैसे तिरुमालै २ में कहा गया है “पोय् इन्दिरा लोगम् आळुम्” (परमपद जाना और वहाँ आनन्द लेना), अर्चिरादि मार्गम् से यात्रा करना (परमपद की ओर जाने वाला मार्ग) विरजा नदी … Read more