आर्ति प्रबंधं – ४९

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम:

आर्ति प्रबंधं

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उपक्षेप

पिछले पासुरम में, “ऐतिरासन अडि नँणादवरै एँणादु” कहकर वें साँसारिक व्यवहारों में ही ढूबे लोगों के प्रति अपने विरक्ति  प्रकट करतें हैं। किंतु उन्कि हृदय नरम  होने कि कारण उन्से धर्ति वासियों की पीड़ा कि सहन न होती हैं। अपने अत्यंत कृपा के कारण वे उन्को एम्पेरुमानार के चरण कमलों को मोक्ष के मार्ग के रूप में दिखा कर इस मार्ग के विधियों को भी प्रकट करतें हैं।    

 

पासुरम ४९

नंदा नरगत्तु अळुंदामै वेँडिडिल नानिलत्तीर

एन तादैयान एतिरासनै नण्णुम एंरुम अवन

अंदादि तन्नै अनुसंदियुम अवन तोंडरुडन

सिंदाकुलम केड चेरंदिरुम मुत्ति पिन सित्तिकुमे

 

शब्दार्थ:

नानिलत्तीर – हे! इस सँसार के चार प्रकार के वासियों !

वेँडिडिल – अगर चाहें तो

अळुंदामै –  न डूबे

नरगत्तु – साँसारिक सागर नामक यह नरक

नंदा – जो बुगतकर पूरा न हो

(तो मेरी उपदेश सुन)

नण्णुम – जाओ और शरण लो

एन – मेरे

तादैयान – पिता

ऐतिरासनै – एम्पेरुमानार के संग

अनुसंदियुम – जप और ध्यान कर

एँरुम – हमेशा

अवन अंदादि तन्नै – प्रपन्न गायत्रि माने जाने वाली  इरामानुस नूट्रन्दादि ,जो मोक्ष के ओर ले जाने वालि एम्पेरुमानार  के दिव्य नाम से गूँजती हैं।

चेरंदिरुम –  (के) सेवा में रहो

अवन तोंडरुडन  – उन्के भक्त (के प्रति ) जो हैं सर्व श्रेष्ट श्री वैष्णव

सिंदाकुलम – सँसार के अन्य विषयों के संबंध से आने वाले पीड़ाएँ

केड  – नाश होँगे (जिस्के बाद)

मुत्ति – मोक्ष

पिन सित्तिकुमे  – सही वक्त पर प्राप्त होगा

 

सरल अनुवाद

इस पासुरम में, साँसारिक विषयों से पीड़ित जनों के प्रति तरस खाकर मामुनि मुक्ति का एक सुलभ राह दिखातें हैं।  नरक माने गए इस सँसार के बंधनों से मुक्ति प्राप्त करने के लिए अपने पिता एम्पेरुमानार के दिव्य चरण कमलों को पकड़ने का उपदेश देतें हैं। एम्पेरुमानार के दिव्य नाम को हर पंक्ति में उच्चारण करने वाले “इरामानुस नूट्रन्दादि” को जप और ध्यान करने का सलाह देतें हैं। एम्पेरुमानार के भक्तों के प्रति सेवा करने को भी कहतें हैं। ऐसे करने से श्री रामानुज के चरण कमलों में शरणागति करने के पहले अनुभव किये गए पीड़ाओं से निवारण मिलेगा। और सही समय पर निश्चित मुक्ति प्राप्त होगा।    

 

स्पष्टीकरण

इस सँसार के प्रति अपने विचार प्रकट करतें हुए मामुनि कहतें हैं कि, “हमारें ग्रंतों में  यह सँसार नरक के रूप में चित्रित किया गया हैं। इस विषय में आळ्वारों के पासुरम : (पेरिय तिरुमोळि ११. ८. ९)” नंदा नारगत्तळुंदा वगै”, (पेरिय तिरुमोळि ७. ९. ५) “नरगत्तिडै नणुंगा वगै” और (तिरुवाय्मोळि ८.१.९) “मट्रै नरगम” . सँसार नामक इस नरक के पीड़ाओं और संकटों का कोई भी अंत नहीं होता है। हे! चार प्रकार के धर्ती वासियों!  इस नरक में मग्न न होकर, उस्के कठोरता से विमुक्त होकर बचने के लिए एक उपाय हैं। कृपया मेरे पिता श्री रामानुज के पास जायें और शरणागति करें। प्रपन्न गायत्रि (वह जिसकों प्रपन्न जन हर दिन दोहराना चाहिए) माने वालि “इरामानुस नूट्रन्दादि” में मुक्ति की राह दिखानें वालि एम्पेरुमानार की दिव्य नाम इस ग्रंथ के हर पंक्ति में उपस्थित हैं।  इस दिव्य नामों पर ध्यान करें। इरामानुस नूट्रन्दादि के १०७वे पासुरम के “उन तोंडर्गळुक्के” के अनुसार श्री रामानुज के भक्तों के दिव्य चरण कमलों में सेवा करें। उस क्षण तक के सारें पीड़ाओं से मुक्ति मिलेगी और सही समय पर सँसार से मुक्ति भी मिलेगी।  

अडियेन प्रीती रामानुज दासी

आधार : http://divyaprabandham.koyil.org/index.php/2017/03/arththi-prabandham-49/

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