तिरुवाय्मोळि – सरल व्याख्या – ३.३ ओळिविल

श्री: श्रीमते शटकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमत वरवरमुनये नम: कोयिल तिरुवाय्मोळि << २.१० – किळरोळि एम्पेरुमान (भगवान श्रीमन्नारायण) से आऴ्वार् प्रार्थना करते हुए कहतें हैं, “देवरीर(आप) के प्रति किए जाने वाले कैंकर्य में बाधा स्वरूप इस शरीर को मिटाने की कृपा करें”।आऴ्वार् को अनुग्रह करते हुए कहतें हैं, “देवरीर(आप) के इसी शरीर के संग … Read more

तिरुवाय्मोळि – सरल व्याख्या – २. १० – किळरोळि

श्री: श्रीमते शटकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमत् वरवरमुनये नम: कोयिल तिरुवाय्मोळि << १.२ – वीडुमिन आळ्वार एम्पेरुमान के ओर सारे प्रियतम कैंकर्य करना चाहे। एम्पेरुमान “तेर्क्कु तिरुमलै” (दक्षिण दिव्यदेश ) नाम से पहचाने जाने वाले तिरुमालिरुन्चोलै में आळ्वार को दर्शन देकर कहे, “मैं तुम्हारे लिए यहाँ आया हूँ, तुम यहीं मेरे प्रति सर्वत्र कैंकर्य … Read more

तिरुवाय्मोळि – सरल व्याख्या – १.२ – वीडुमिन

श्री: श्रीमते शटकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमत् वरवरमुनये नम: कोयिल तिरुवाय्मोळि << १.१ भगवान के परत्व का परिपूर्ण अनुभव करने के बाद, इस दशक में आळ्वार, ऐसे भगवान को प्राप्त करने के उपाय का इन दस पासुरमों में समझा रहे हैं। इस बात के महत्व को समझते हुये, आळ्वार अपने दिव्य अनुभवों को, सभी … Read more

तिरुवाय्मोळि – सरल व्याख्या – १.१ – उयर्वर

श्री: श्रीमते शटकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमत वरवरमुनये नम: कोयिल तिरुवाय्मोळि << तनियन सर्वेश्वर जो श्रिय:पति हैं सबसें सर्वश्रेष्ठ हैं, सारें कल्याण गुणों के निवास स्थान हैं, दिव्य रूप के हैं, श्रीवैकुण्ट और संसारम दोनों के नेता हैं, वेदों से प्रकाशित हैं, सर्वव्यापी हैं, सर्व नियन्ता हैं, सारें चेतनों औरअचित वस्तुओँ के अंतर्यामी हैं … Read more

तिरुवाय्मोळि – सरल व्याख्या – तनियन

श्री: श्रीमते शटकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमत वरवरमुनये नम: कोयिल तिरुवाय्मोळि भक्तामृतं विश्वजनानुमोदनम सर्वार्थदम श्री शटकोप वांग्मयम | सहस्र शाकोपनिषद समागमम नमाम्यहम द्राविड़ वेद सागरं || तिरुवाय्मोळि जो श्रीमन नारायण के भक्तों को अमृत समान है , जो सबको आनंद देने वालि है , जो सबको सारे मंगलमय फल देने वालि हैं, जो साम … Read more

வரவரமுனி சதகம் 10

ஸ்ரீ: ஸ்ரீமதே சடகோபாய நம:  ஸ்ரீமதே ராமானுஜாய நம: ஸ்ரீமத் வரவரமுநயே நம: வரவரமுனி சதகம் << பகுதி 9 मुग्धालोकं मुखमनुभवन्मोदते नैव देव्याः | स्निग्धालापं कपिकुलपतिं नैव सिञ्चत्यपाङ्गैः || त्वामेवैकं वरवरमुने ! सोदरं द्रष्टुकामो | नाथो नैति क्वचिदपि रतिं दर्शने यूथपानाम् || ९१॥ முக்தாலோகம் முகமநுபவந் மோததே நைவ தேவ்யா: | ஸ்நிக்தா லாபம் கபிகுலபதிம் நைவ ஸிஞ்ச்யத்யபாங்கை:|| த்வாமேவைகம் வரவரமுநே ஸோதரம் த்ரஷ்டு காமோ:| … Read more

வரவரமுனி சதகம் 9

ஸ்ரீ: ஸ்ரீமதே சடகோபாய நம: ஸ்ரீமதே ராமாநுஜாய நம: ஸ்ரீமத் வரவரமுநயே நம: வரவரமுனி சதகம் << பகுதி 8 अन्तस्ताम्यन्रघुपतिरसावन्तिके त्वामदृष्ट्वा | चिन्ताक्रान्तो वरवरमुने ! चेतसो विश्रमाय || त्वन्नामैव श्रुतिसुखमिति श्रोतुकामो मुहुर्मां | कृत्यैरन्यैः किमिह तदिदं कीर्तयेति ब्रवीति || ८१|| அந்தஸ்தாம் யந் ரகுபதி ரஸாவந்திகே த்வாமத்ருஷ்ட்வா | சிந்தாக்ராந்தோ வரவரமுநே சேதஸோ விச்ரமாய || த்வந் நாமைவ ச்ருதி ஸுகமிதி  ச்ரோது காமோ முஹுர்மாம் | … Read more

வரவரமுனி சதகம் 8

ஸ்ரீ: ஸ்ரீமதே சடகோபாய நம: ஸ்ரீமதே ராமாநுஜாய நம: ஸ்ரீமத் வரவரமுநயே நம: வரவரமுனி சதகம் << பகுதி 7 पश्यन्नेवं प्रभवति जनो नेर्ष्यितुं त्वत्प्रभावं | प्राज्ञैरुक्तं पुनरपि हसन्दर्शयत्यभ्यसूयाम् || नश्यत्यस्मिन्  वरवरमुने ! नाथ ! युक्तं तदस्मिन् | प्रत्यक्षं तत्परिकलयितुं तत्वमप्राकृतं ते || ७१|| பஶ்யந்நேவம் ப்ரபவதி ஜநோ நேக்ஷிதும் த்வத் ப்ரபாவம் | ப்ராஞைருக்தம் புநரபி ஹஸந் தர்சயத்யப்யஸூயாம் || நஸ்யத்(யஸ்மின்) யேவம் வரவரமுநே நாதயுக்தம் … Read more

வரவரமுனி சதகம்  பகுதி 7

ஸ்ரீ: ஸ்ரீமதே சடகோபாய நம: ஸ்ரீமதே ராமாநுஜாய நம: ஸ்ரீமத் வரவரமுனயே நம: வரவரமுனி சதகம் << பகுதி 6 मन्त्रो दैवं फलमिति मया वाञ्छितं यद्यपि स्यात् मध्ये वासो मलिनमनसामेवमेवं यदि स्यात् | यद्वा किन्चित्त्वदनुभजनं सर्वदा दुर्लभं स्यात् देहं त्यक्तुं वरवरमुने ! दीयतां निश्चयो मे || ६१|| மந்த்ரோ தைவம் பலமிதி  மயா வாஞ்சிதம் யஸ்யபிஸ்யாத் மத்யே வாஸோ மலிந மநஸாமேவமேவம் யதிஸ்யாத் | யத்வா … Read more

आर्ति प्रबंधं – ६०

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम: आर्ति प्रबंधं << पाशुर ५९ उपक्षेप आर्ति प्रबंधं के इस अंतिम पासुरम में मामुनिगळ विचार करतें हैं, “ हमें अपने लक्ष्य के विषय में और क्यों तृष्णा हैं? पेरिय पेरुमाळ से श्री रामानुज को सौंपें गए सर्वत्र, श्री रामानुज के चरण कमलों में उपस्थित उन्के सारे … Read more