उपदेश रत्तिनमालै – सरल व्याख्या – पासुरम् ५७-५९
। ।श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमत् वरवरमुनये नमः। । उपदेश रत्तिनमालै << पासुरम् ५५-५६ पासुरम् ५७ सत्तावनवां पासुरम्। श्री वरवरमुनि स्वामी को ऐसे लोगों की दुखद परिस्थिति पर वेदना होती है, जो इस ग्रंथ की महानता को जानते हुए भी इसमें भाग नहीं लेते हैं। देसिगर्पाल् केट्ट सॆऴुम् पॊरुळैच् चिन्दै तन्निल्मासऱवे ऊन्ऱ … Read more