आर्ति प्रबंधं – १९

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम:

आर्ति प्रबंधं

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उपक्षेप

पिछले पासुरम में मणवाळ मामुनि श्री रामानुज से, इस साँसारिक लोक के नित्य अंधकार और अज्ञान में फॅसे , खुद केलिए रोशनी दिखाने की प्रार्थना करते हैं। इस पासुरम में वे बताते हैं कि वे अपने शरीर के वश में हैं और उसी की मानते हैं।   मणवाळ मामुनि कहते हैं कि उनके यह व्यवहार से उनके पिता से रामानुज ही बदनाम होंगे।  

पासुरम

अल्लुम पगलुम यान आक्कै वळि उळन्रु
सेल्लुमदु उन तेसुक्कु तीन्गु अन्रो ?
नल्लारगळ तान तनयर नीसरक्कु आटचेय्य सगिप्परो
एन्दै एतिरासा इसै

शब्दार्थ

एन्दै एतिरासा – हे मेरे पिता यतिराजा ! सन्यासियों के नेता
इसै – सिर्फ आपको ही यह करना हैं
यान – मैं
अल्लुम पगलुम – रात और दिन
आक्कै वळि उळन्रु – शरीर के प्रभाव में हूँ, उसका सेवक हूँ
सेल्लुमदु – इस रास्ते में जैसे में जा रहा हूँ
तीन्गु अन्रो ? – क्या आपको बदनाम नहीं करता ?
उन तेसुक्कु – और आपके श्रेयस को भी?
नल्लारगळ – महान आत्मा जो ब्रह्म विचार में प्रतम पद पर हैं
तन तनयर – (जब बात आती है )उनके पुत्र की
नीसरक्कु आटचेय्य सगिप्परो – क्या वें (अपने पुत्र के) नीच जनों केलिए नीच काम सह पाएंगे ?

सरल अनुवाद

श्री रामानुज से मणवाळ मामुनि आपमें जीवन बिताने का तरीखा बता रहे हैं।  वे कहते हैं कि वें अपने शरीर के वश में हैं और जैसे वह घसीटता हैं उसी दिशा में जातें हैं।  वे श्री रामानुज से कहते हैं , “हे मेरे पिता ! मेरी व्यवहार नीच है।  अगर आप इसको नहीं रोखेंगे तो क्या यह आपकी अपमान नहीं हैं, क्योंकि आप मेरे पिता हैं और आपका पुत्र निर्धारित पथ के विरुद्ध जा रहा है ? ब्रह्म विचार में लयित महान आत्माओँ के पुत्रों के पथभ्रष्ट होने पर, क्या वें उसको सहते हैं ? क्या वें शीघ्र उन पुत्रों के ध्यान सही रास्ते में लाकर पुनरुज्जीवित नहीं करते  ?

स्पष्टीकरण

.पासुरम के पूर्व भाग में मणवाळ मामुनि अपने जीवन बिताने का तरीखा बताते हैं।  आदर्शतः मणवाळ मामुनि को (इरामानुस नूट्रन्दादि तनियन ) “उन नाममेल्लाम एन्रन नाविनुळ्ळे अल्लुम पगलुम अमरुम पडि नल्ग” वचनानुसार श्री रामानुज के नाम जपकर अपनी जीवन बितानी चाहिए थी। वे कहते हैं रात और दिन श्री रामानुज के दिव्य नाम जपने केलिए उनके पास सुनेहरा समय था।  किन्तु वे कहते हैं कि वे (तिरुवाय्मोळि ३. २. १) के “अन्नाळ नी तन्द आक्कै वळि उळल्वेन” वचनानुसार बिताएं। इस वचन का अर्थ यह है कि, श्रीमन नारायण से दिया गया शरीर पुण्य कार्यो केलिए है पर व्यक्ति उस शरीर के वश हो जाते हैं।  शास्त्रों के अनुसार श्रीमन नारायण के प्रति किये जाने वाले कर्मों केलिए शरीर दिया गया है।  साँसारिक विषयों में मग्न होने केलिए नहीं।  ऐसे करने से शरीर देने वाले श्रीमन नारायण के श्रेय को ही आपत्ति आएगी। पेरियाळवार के पासुरम (पेरियाळ्वार तिरुमोळि ५. ३. ३ ), “उनक्कुप पणि सेयदिरुक्कुम तवम उडयेन इनिप्पोइ ओरुवन तनक्कुप पणिन्दु कड़ैतलै निर्क निन सायै अळिवु कणडाइ” का यही अर्थ है। पेरियाळ्वार का ही प्रश्न मणवाळ मामुनि भी पूछते हैं, अंतर यही है कि पेरियाळ्वार श्रीमन नारायण से और मणवाळ मामुनि ,श्री रामानुज से पूछते हैं  कि उनके पिता होने के कारण क्या यह उन्के श्रेय कम न करेगा ?यहाँ मामुनि एक दृष्टांत देते हैं।  श्रीमन नारायण को उपाय और अपेय मानकर उन्हीं विचारों में मग्न कुछ ज्ञानि हैं। अगर उन्के पुत्र नीच लोगों के प्रति कार्यो में व्यस्त हैं और पथभ्रष्ठ हो गए, क्या वें ज्ञानी पिता यह सहन कर पायेंगे ? कभी नहीं।” मामुनि श्री रामानुज से प्रार्थना करतें हैं , “हे मेरे पिता ! सन्यासियों के नेता ! आप ही ने इस दृष्टांत की विचार किया हैं।  अतः आप से प्रार्थना हैं , कि मुझे आपके प्रति कैंकर्य दे और इस जीवात्मा की रक्षा करें।  यह केवल आप से ही साध्य हैं।

अडियेन प्रीती रामानुज दासी

आधार :  http://divyaprabandham.koyil.org/index.php/2016/08/arththi-prabandham-19/

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