उपदेश रत्तिनमालै – सरल व्याख्या – पासुरम् ३८ – ४०

। ।श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमत् वरवरमुनये नमः। । उपदेश रत्तिनमालै << पूर्व अनुच्छेद पासुरम् ३८ अड़तीसवाँ पासुरम्। मामुनिगळ् ने दयालुतापूर्वक ऎम्पॆरुमानार् को नम्पेरुमाळ् द्वारा दिये गये महान सम्मान को प्रकट किया ताकि हर कोई जान सके कि ऎम्पॆरुमानार् ने कितनी अच्छी तरह प्रपत्ति (ऎम्पॆरुमान् के प्रति समर्पण) मार्ग अपनाया था, और … Read more

उपदेश रत्तिनमालै – सरल व्याख्या – पासुरम् ३६ और ३७

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः उपदेश रत्तिनमालै << पासुरम् ३४ और ३५  पासुरम् ३६ छत्तीसवां पासुरम्। वे अपने हृदय से कहते हैं कि हमारे आचार्यों के अलावा और कोई नहीं है जो आऴ्वारों और उनके अरुळिच्चॆयल् की श्रेष्ठता को पूर्णतः जानते हों।  तॆरुळुट्र आऴ्वार्गळ् सीर्मै अऱिवार् आर्अरुळिच्चॆयलै अऱिवार् आर् – अरुळ् पॆट्र नादमुनि … Read more

उपदेश रत्तिनमालै – सरल व्याख्या – पासुरम् ३४ और ३५ 

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः उपदेश रत्तिनमालै << पासुरम् ३१ – ३३ पासुरम् ३४  चौंतीसवां पासुरम्। मामुनिगळ् अब तक दयालुता पूर्वक उन नक्षत्रों और स्थलों के बारे में बताते रहे जहाँ आऴ्वार् अवतरित हुए। तीसरे पासुरम् में उन्होंने “ताऴ्वादुमिल् कुरवर् ताम् वाऴि- एऴ्पारुम्  उय्य अवर्गळ् उरैत्तवैगळ् ताम वाऴि” कहकर हमारे आचार्यों के … Read more