उपदेश रत्तिनमालै – सरल व्याख्या – पासुरम् ४६ – ४७

। ।श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमत् वरवरमुनये नमः। ।

उपदेश रत्तिनमालै

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पासुरम् ४६

छियालीसवाँ पासुरम्। क्योंकि वेद (जिसमें अंग प्राथमिक घटक है और उपांग द्वितीय घटक है) के जैसे तिरुवाय्मोऴि के भी अन्य दिव्यप्रबंधों के रूप में प्राथमिक और द्वितीय घटक होते हैं, इन प्रबंधों के लिए दयापूर्वक व्याख्यान लिखने वाले महान लोगों को गौरवान्वित करने की इच्छा से मामुनिगळ्,  पॆरियवाच्चान पिळ्ळै से प्राप्त हुए उस सर्वोच्च लाभ के पर्व मनाने से शुरुआत करते हैं। 

पॆरियवाच्चान् पिळ्ळै पिन्बुळ्ळवैक्कुम् 
तॆरिय व्याक्यियैगळ् सॆय्वाल् – अरिय 
अरुळिच्चॆयल् पॊरुळै आरियर्गट्कु इप्पोदु
अरुळिच् चॆयलाय्त्तऱिन्दु 

पॆरियवाच्चान् पिळ्ळै जिन्हें चक्रवर्ती व्याख्याकार  (व्याख्याताओं में सम्राट) कहा जाता है और जो नम्पिळ्ळै के प्रिय शिष्य हैं, इन्होंने आऴ्वारों के ३००० दिव्य प्रबंध (दिव्य रचना/अरुळिच्चॆयल) में सभी पासुरों के लिए व्याख्यायें लिखीं। इसके कारण उनके बाद आने वाले सभी आचार्य जान सके‌कि यही हैं आऴ्वारों के दिव्य प्रबंध। यह गौरव एकमात्र इन्हें अपने आचार्य से संपूर्ण दिव्य प्रबंधों के अर्थ सुनने, अपने दिव्य हृदय में उसका आनंदपूर्वक अनुभव करने के साथ साथ दूसरों को अर्थ सिखाने का विलक्षण सम्मान‌ प्राप्त है।

पासुरम् ४७

सैंतालीसवाँ पासुर । मामुनिगळ् नन्जीयर् और‌ अन्य आचार्यों द्वारा लिखी गई व्याख्याओं के बारे में दसापूर्वक लिखते हैं। 

नन्जीयर् सॆय्द व्याक्कियैगळ् नाळिरण्डुक्कु
ऎन्जामै यावैक्कुम् इल्लये – तम् सीराल्
वैय्य गुरुविन् तम्बि मन्नु मणवाळ मुनि
सॆय्युम् अवै तामुम् सिल

हालाँकि नन्जियर ने दयापूर्वक कुछ प्रबंधों के लिए व्याख्याएँ लिखीं, लेकिन उन्होंने  पॆरियवाच्चान् पिळ्ळै के जैसे सभी प्रबंधों के लिए व्याख्या नहीं दिखीं (अगर लिखी होती तो कितना अद्भुत होता!) अऴगिय मणवाळ पॆरुमाळ् नायनार्, पिळ्ळै लोकाचार्य के अलौकिक छोटे भाई, जिन्हें प्रतिष्ठित शुभ गुणों के साथ-साथ आऴ्वारों के दिव्यप्रबंध और शास्त्रों पर गहरा ज्ञान था, उन्होंने दयापूर्वक कुछ प्रबंधों के लिए अदभुत्त व्याख्या की है। वादी केसरी अऴगिय मणवाळ जीयर्, जिनकी उपयुक्त महानता थी, उन्होंने भी दयापूर्वक कुछ प्रबंधों के लिए व्याख्या लिखी।

अडियेन् दीपिका रामानुज दासी

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