आर्ति प्रबंधं – ५९

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम: आर्ति प्रबंधं << पाशुर ५८ उपक्षेप मामुनि कहतें हैं, “ मेरे आचार्य तिरुवाईमोळिपिळ्ळै के कृपा से आपके चरण कमलों से मेरा संबंध का ज्ञान हुआ। हे रामानुज! आप कब मेरे यह साँसारिक बँधन को काटेँगे जिसके पश्चात (आत्मा के सुहृद) पेरिय पेरुमाळ गरुड़ में सवार पधारेँगे … Read more

आर्ति प्रबंधं – ५८

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम: आर्ति प्रबंधं << पाशुर ५७ उपक्षेप पिछले पासुरम के “तिरुवाईमोळिप्पिळ्ळै वासमलर ताळ अडैंद वत्तु” से मामुनि खुद को तिरुवाईमोळिप्पिळ्ळै के चरण कमलों को चाहनें वाले वस्तु घोषित करतें हैं। वें आगे कहतें हैं कि तिरुवाईमोळिप्पिळ्ळै के संबंध (आचार्य और शिष्य) से ही वें श्रीरामानुज के संबंध … Read more

आर्ति प्रबंधं – ५७

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम: आर्ति प्रबंधं << पाशुर ५६ उपक्षेप मामुनिगळ इस पासुरम में श्री रामानुज के एक काल्पनिक  प्रश्न कि उत्तर प्रस्तुत करतें हैं। श्री रामानुज के प्रश्न:” हे मामुनि! हम आपके विनम्र प्रार्थनाओं को सुनें। आप किस आधार पर , किसके सिफ़ारिश पर मुझें ये प्रार्थना कर रहें … Read more

आर्ति प्रबंधं – ५६

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम: आर्ति प्रबंधं << पाशुर ५५ उपक्षेप पिछले पासुरम में, मामुनि ने, “मदुरकवि सोरपडिये निलयाग पेट्रोम” गाया था।  उस्के संबंध में और अगले पद के रूप में , इस पासुरम में वें एम्पेरुमानार के दिव्य चरण कमलों में नित्य कैंकर्य की प्रार्थना करतें हैं। पासुरम ५६ उनदन … Read more

आर्ति प्रबंधं – ५५

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम: आर्ति प्रबंधं << पाशुर ५४   उपक्षेप एक सच्चे शिष्य और अटल सेवक को दो विषयों की ज्ञान होनी चाहिए १) उस्के लाभार्थ मात्र आचार्य ने कृपा से किये सारे विषय २) भविष्य में आचार्य से मिलने वाली विषयों में दिलचस्पी इन दोनों में से पहले … Read more

வரவரமுனி சதகம் – பகுதி 6

ஸ்ரீ: ஸ்ரீமதே சடகோபாய நம:  ஸ்ரீமதே ராமானுஜாய நம: ஸ்ரீமத் வரவரமுநயே நம: வரவரமுனி சதகம் << பகுதி 5 भृत्यैर्द्वित्रैः प्रियहितपरैरञ्चिते भद्रपीठे | तुङ्गं तूलासनवरमलन्कुर्वतस्सोपधानम्  || अङ्घ्रिद्वन्द्वं वरवरमुनेरब्जपत्राSभिताम्रं | मौलौ वक्त्रे भुजशिरसि मे वक्षसि स्यात्क्रमेण || ५१॥ ப்ருத்யைர் த்வித்ரை: ப்ரியஹித பரைரஞ்சிதே பத்ரபீடே | துங்கம் தூலாஸந வரமலங்குர்வதஸ் சோபதாநம் || அங்க்ரிர்த்வந்த்வம் வரவரமுநேரப்ஜபத்ராபிதாம்ரம்  | மௌலௌ வக்த்ரே புஜ சிரஸி மே வக்ஷசிஸ்யாத் க்ரமேண || … Read more

வரவரமுனி சதகம் – பகுதி 5

ஸ்ரீ: ஸ்ரீமதே சடகோபாய நம:  ஸ்ரீமதே ராமானுஜாய நம: ஸ்ரீமத் வரவரமுநயே நம: வரவரமுனி சதகம் << பகுதி 4 अन्तर्ध्यायन्वरवरमुने ! यद्यपि त्वामजस्त्रं | विश्वं तापैस्त्रिभिरभिहतं वीक्ष्य मुह्यामसह्यम् || क्षुत्सम्पातक्षुभितमनसां को हि मध्ये बहूनां | एकस्स्वादु स्वयमनुभवेन्नेति चेतःप्रसादम्  || ४१॥ அந்தர் த்யாயந் வரவரமுநே யத்யபி த்வாமஜஸ்ரம்  | விச்வம் தாபைஸ்த்ரிரபி ஹதம் வீக்ஷ்ய முஹ்யாம்யஸஹ்யம்  || க்ஷுத்ஸம்பாத க்ஷுபித மநஸாம் கோஹி மத்யே பஹுநாம் | … Read more

आर्ति प्रबंधं – ५४

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम: आर्ति प्रबंधं << पाशुर ५३   उपक्षेप पिछले  पासुरम में मामुनि श्री रामानुज से खुद सुधार कर इस सँसार से विमुक्त करने की प्रार्थना को ज़ारी रखें। मामुनि जानते हैं की श्री रामानुज उनकी प्रार्थना को पूरा करेँगे, किंतु “ ओरु पगल आयिरम ऊळियाय” (तिरुवाय्मोळि १०.३.१) … Read more

आर्ति प्रबंधं – ५३

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम: आर्ति प्रबंधं << पाशुर ५२     उपक्षेप पिछले पासुरम में मामुनि अपने अंतिम दिशा को वर्णन करते समय, पेरिय पेरुमाळ के गरुड़ में सवार उन्के (मामुनि को दर्शन देनें) यहाँ आने की बात भी बताया। इससे यह प्रश्न उठता है कि अपने अंतिम दिशा पर … Read more

आर्ति प्रबंधं – ५२

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम: आर्ति प्रबंधं << पाशुर ५१   उपक्षेप मामुनि कहतें हैं कि, श्री रामानुज के असीमित कृपा के कारण उन्हें (मामुनि को) अपने व्यर्थ हुए काल कि अफ़सोस करने का मौका मिला।  आगे इस पासुरम में वें ,श्री रामानुज के कृपा की फल के रूप में ,पेरिय … Read more