उपदेश रत्तिनमालै – सरल व्याख्या – पासुर १६ – १८

। ।श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमत् वरवरमुनये नमः। ।

उपदेश रत्तिनमालै

<<पासुर १४ और १५

पासुर १६

सोलहवां पासुर। इस पासुर के साथ शुरू करते हुए अगले पाँच पासुरों में मामुणिगळ्, पेरियाऴ्वार् की श्रेष्ठता का वर्णन करते हैं जो अन्य आऴ्वारों से अधिक महान हैं। 

इन्ऱैप् पेरुमै अऱिन्दिलैयो एऴै नेञ्जे
इन्ऱैक्कु एन् एट्रम् एनिल् उरैक्केन् – नन्ऱि पुनै
पल्लाण्डु पाडिय नम् भट्टर्पिरान्
वन्दु उदित्त नल् आनियिल् सोदि नाळ्

ऐ मेरे हृदय, जो अन्य आऴ्वारों के दिव्य नक्षत्र में भोगलिप्सा है! क्या तुम जानते हो आनि (ज्येष्ठ) महीने के स्वाति नक्षत्र की क्या महानता है? मेरी बात सुनो। यह वह दिन है जब विख्यात मङ्गलाशासन के अंतर्निहित अर्थ वाला तिरुप्पाल्लाण्डु के रचनाकार भट्टर् पिरान् (पेरियाऴ्वार/विष्णुचित्त जी) का अवतार हुआ। इसलिए यह दिन महान है। 

पासुर १७

सत्रहवां पासुर। मामुणिगळ् अपने हृदय से कहते हैं कि इस संसार में ऐसा कोई नहीं है जो, ‘आनि स्वाति’ (वह दिन जब पेरियाऴ्वार् का अवतार हुआ) सुनते ही पिघल जाने वाले उन बुद्धिमान लोगों से मेल खा सके।

मानिलत्तिल् मुन् नम् पेरियाऴ्वार् वन्दु उदित्त
आनि तन्निल् सोदि एन्ऱाल् आदरिक्कुम् – ज्ञानियर्क्कु
ओप्पार् इल्लै इव्वुलगु तन्निल् एन्ऱु नेञ्जे
एप्पोदुम् सिन्दित्तिरु

ऐ मेरे हृदय! सदैव यह सोचते रहना कि इस दुनिया में ऐसे कोई महान जीव नहीं है जो आनि महीने में स्वाति नक्षत्र सुनकर ही पिघलने वाले ह्रदय के समान हों। यह वह दिन है जब पेरियाऴ्वार् ने इस विशाल जगत में अवतार लिया। 

पासुर १८ 

अठारहवां पासुर। मामुनिगळ् दयालु रूप से कहते हैं कि एम्पेरुमान् का मङ्गलाशासन करने की पद्धति में इस आऴ्वार् और अन्य आऴ्वारों में भेद होने के कारण ये आऴ्वार्, पेरियाऴ्वार् (महान आऴ्वार्) के दिव्य नाम से जाने जाते हैं।

मंङ्गळासासनत्तिल् मटृळ्ळ आऴ्वार्गळ्
तंङ्गळ् आर्वत्तु अळवु तान् अन्ऱि- पोंङ्गुम्
परिवाले विल्लिपुत्तूर् भट्टर्पिरान् पेट्रान्
पेरियाऴ्वार् एन्नुम् पेयर्

क्योंकि एम्पेरुमान् का मङ्गलाशासन करने में इन्हें इतर आऴ्वारों से ज्यादा उत्सुकता थी, और इन्हें एम्पेरुमान् के प्रति अत्यधिक ममता थी, इसलिए श्रीविल्लिपुत्तूर् (श्रीधन्विनव्यपूर) में अवतरित, श्रीविष्णुचित्त जी को ‘पेरियाऴ्वार्’ की उपाधि प्राप्त हुआ और वे इसी नाम से बुलाए गए। मङ्गलाशासन किसी को शुभकामना देने की कृति को कहते हैं। बड़े छोटों के लिए मङ्गलाशासन करना स्वाभाविक है। यहाँ यह प्रश्न उठता है: क्या छोटे बड़ों का मङ्गलाशासन कर सकते हैं? हमारे पूर्वाचार्यों में से एक, पिळ्ळै लोकाचार्यर् ( लोकाचार्य जी) ने अपने ग्रंथ श्रीवचनभूषणम् में इस विषय पर स्पष्टता से समझाया है। एम्पेरुमान् बाकी सभी से बड़े हैं। आत्मा एक सूक्ष्म सत्व है। तो वे एक प्रश्न उपस्थित करते हैं कि क्या आत्माएँ एम्पेरुमान् का मङ्गलाशासन कर सकते हैं, और उसका उत्तर देते हुए कहते हैं, “एम्पेरुमान् का मङ्गलाशासन करना हमारा मूलतः स्वभाव है।” परंतु, ममता की दृष्टिकोण से, सदा एम्पेरुमान् पर कोई कठिनाई आने की चिंता में पड़े रहना, एक ऐसे भक्त का प्रतिबिंब है जिसमें एम्पेरुमान् के प्रति सच्चा प्रेम है। पेरियाऴ्वार् ने हमें इस तात्पर्य को अच्छे रूप से समझाया है।  इस एकमेव कारण से वे आऴ्वारों में अद्वितीय थे और उन्होंने पेरियाऴ्वार् का दिव्य नाम धारण किया।

अडियेन् दीपिका रामानुज दासी

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