आर्ति प्रबंधं – १६

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम:

आर्ति प्रबंधं

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गूँगे को अपने चरण कमलों को दिखा कर, श्री रामानुज आशीर्वाद करते हैं

उपक्षेप

पिछले पासुरम में मणवाळ मामुनि निश्चय करतें हैं कि श्री रामानुज के प्रति उनके ह्रदय में एक बिन्दुमात्र भी प्रेम या भक्ति नहीं हैं। इस पासुरम में उनके कल्पना में श्री रामानुज उनसे एक प्रश्न पूछते हैं। “हे ! मणवाळ मामुनि ! आपका कहना हैं कि आपको  मेरे प्रति प्रेम या भक्ति नहीं हैं। रहने दीजिए।  पर धार्मिक यात्रा से विरुध्द साँसारिक विषयों से तो द्वेष हैं ? मणवाळ मामुनि उत्तर देते हैं , “ न ही अडियेन को आपके प्रति भक्ति हैं न ही साँसारिक विषयों से द्वेष।  हे श्री रामानुज ! आपके चरण कमल दोषो को भी गुण मानने वाले हैं। अडियेन को आपके चरण कमलों तक पहुँचने का समय आप ही जानते हैं , कृपया आप अडियेन को बतायें।  

पासुरम १६

आगाददु इदेनरु अरिन्दुम पिररक्कु उरैत्तुम
आगाड़ाडू  सेय्वन आदलाल मोगंत
निनैत्तु एन्नै इगळेल एतिरासा
एन्रु उन्नडि सेर्वन यान

शब्दार्थ

अरिन्दुम – मुझे  (मणवाळ मामुनिगळ ) पता था
ईदेनरु – विषयों की क्रम जो
आगाददु – आचार्य जिन्हें “छोड़ने लायक” विवरण  किये
पिररक्कु उरैत्तुम – उससे बढ़कर, मैं दूसरों को इसके बारे में उपदेश देता हूँ
आगाददे सेय्वन – (बल्के आचार्यो के उपदेश के विरुद्ध कार्यो को करने से, बाकी लोगो को मना कर ) मैं उन्ही कार्यो को लगातार करता हूँ
आदलाल – अत
इगळेल – कृपया अपराधी मान कर न छोड़िये
एन्नै – मुझे
एन्रु  – से
निनैत्तु – यह समझकर मुझे न छोड़े
मोगाँत्न – मोहित व्यक्ति
एतिरासा – हे एम्पेरुमानारे
एन्रु – कब
यान – मैं
सेर्वन – पहुँचूँगा
उन – आपके
अडि – चरण कमल

सरल अनुवाद

पिछले पासुरम मणवाळ मामुनि उदास थे कि श्री रामानुज के प्रति उनके ह्रदय में प्रेम नहीं हैं।  इस पासुरम में वे उदास हैं क्योंकि उन्के ह्रदय में साँसारिक विषयों के प्रति द्वेष नहीं हैं।  उनकी स्तिथि जो न इस पार  है न उस पार, उस्से वे घबराते हैं।  वे श्री रामानुज से प्रार्थना करते हैं कि उन्के दोषों को गुण समझें।  अंत में वे कहते हैं कि श्री रामानुज के चरण कमल ही उन जैसों को रक्षा कर सकती हैं और उन तक पहुँचने की समय मामुनि को श्री रामानुज ही  बता सकते हैं।

स्पष्टीकरण

मणवाळ मामुनि कहते हैं, “हे श्री रामानुज ! हमारे पूर्वजों के उपदेशों की मुझे ज्ञान हैं।  मैं दूसरों को भी शास्त्रों के  विरुद्ध होने से मना करता हूँ। आचार्यो से निन्दित विषयों को त्याग देने का उपदेश देता हूँ। पर उन्ही कार्यो को मैं प्रति दिन करता हूँ।  आचार्यो से निन्दित उन्हीं कारयों को मैं निष्ठापूर्वक करता हूँ। अतः मेरे उपदेश और कर्म आपस में विरुद्ध हैं।  इस साँसारिक मोह में फसा व्यक्ति समझ कर मुझें कृपया न छोड़िये। (तिरुवाय्मोळि ३. २. १ ) में नम्माळ्वार के वचन “एन नाळ यान उन्नै इनि वंदु कूडुवन” के चित्रण के अनुसार, न जाने मैं कब आप तक पहुंचूंगा। क्या आप तक पहुँचने का मौका मैं हमेशा केलिए खो जाऊँगा ? साँसारिक मोह में फसा में, अज्ञान से भरपूर हूँ।  मुझे नहीं पता कि कब आप तक पहुंचूंगा।  आप जो सरवज्ञ हैं, कृपया आप तक पहुँचने का समय बताये।   

अडियेन प्रीती रामानुज दासी

आधार :  http://divyaprabandham.koyil.org/index.php/2016/07/arththi-prabandham-16/

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