आर्ति प्रबंधं – १६

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम: आर्ति प्रबंधं << पासुर १५ गूँगे को अपने चरण कमलों को दिखा कर, श्री रामानुज आशीर्वाद करते हैं उपक्षेप पिछले पासुरम में मणवाळ मामुनि निश्चय करतें हैं कि श्री रामानुज के प्रति उनके ह्रदय में एक बिन्दुमात्र भी प्रेम या भक्ति नहीं हैं। इस पासुरम में उनके … Read more

आर्ति प्रबंधं – १५

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम: आर्ति प्रबंधं << पासुर १४ उपक्षेप मणवाळ मामुनि के अभिप्राय हैं कि वे अपने  बुरे स्थिति के लिए श्री रामानुज को दोषित मानते हैं और इस स्थिति से मुक्ति केलिए प्रार्थना उन्ही से करते हैं। मणवाळ मामुनि विचार करते हैं कि ,(रामानुस नूट्रन्दादि ९१ ) के “इरामानुसन … Read more

आर्ति प्रबंधं – १४

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम: आर्ति प्रबंधं << पासुर १३ उपक्षेप यह पासुरम १२ वे पासुरम से जुड़ा हुआ है। पासुरम १२ एक विषयांतकरण था (प्रासंगिकम )। १२वे पासुरम में श्री रामानुज मणवाळ मामुनि से पूछते हैं, “हे ! मणवाळ मामुनि ! आपके आचार्य के आदेश पर आप मेरे चरणों में शरणागति … Read more

आर्ति प्रबंधं – १३

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम: आर्ति प्रबंधं << पासुर १२ उपक्षेप अब तक  मणवाळ मामुनिगळ श्री रामानुज से कई विषयों की प्रार्थना किये।  श्री रामानुज की सौलभ्यता ऐसा हैं कि वे इन सारे प्रार्थनाओँ को सच्चा बनाएं।  इस पासुरम में मामुनि  श्री रामानुज के सौंदर्य रूप की गुण गाते हैं। इससे बढ़कर … Read more

आर्ति प्रबंधं – १२

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम: आर्ति प्रबंधं << पासुर ११ एम्पेरुमानार – तिरुवाइमोळिप्पिळ्ळै – मणवाळमामुनिगळ उपक्षेप पिछले पासुरम में, मणवाळ मामुनि, श्री रामानुज से वडुग नम्बि के स्थिति अनुग्रह करने की प्रार्थना करते हैं।  श्री रामानुज उनसे प्रश्न किये कि, “हे ! मणवाळ मामुनि ! आप  वडुग नम्बि के स्थिति अनुदान करने … Read more

आर्ति प्रबंधं – ११

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम: आर्ति प्रबंधं << पासुर १० उपक्षेप इस पासुरम में, मणवाळ मामुनि के कल्पना में श्री रामानुज उनसे एक प्रश्न करते हैं। “हे ! मणवाळ मामुनि ! आप  “निळळुम अडित्तारुमानोम (पेरिय तिरुवन्दादि ३१ ), “मेविनेन अवन  पोन्नडि (कण्णिनुन चिरुत्ताम्बु २) और “रामानुज पदच्छाया” (एम्बार के तनियन ) वचनों … Read more

आर्ति प्रबंधं – १०

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम: आर्ति प्रबंधं << पासुर ९ उपक्षेप  अपने अनेक जन्म मरणो के कारण पर मणवाळ मामुनि विचार करते हैं और इस निर्णय पर पहुँचते हैं कि उनके अनेक जन्मों और उससे सम्बंधित पीड़ाओं का एक मात्र कारण, श्री रामानुज  के चरण कमलों में शरणागति न करना ही है। … Read more

आर्ति प्रबंधं – ९

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम: आर्ति प्रबंधं << पासुर ८ उपक्षेप मणवाळ मामुनि से कुछ लोग पूछते हैं, “हे! मणवाळ मामुनि! पेरिय तिरुमोळि १. ९. ८  के वचन “नोट्रेन पल पिरवि” के अनुसार जीवात्मा के अनेक जीवन हैं , प्रति जीवन भिन्न शरीर में।  और प्रति जीवन कर्मानुसार है। आपके कहना है … Read more

आर्ति प्रबंधं – ८

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम: आर्ति प्रबंधं << पासुर ७ पासुरम ८ तन कुळवि वान किणट्रै चार्न्दिरुक्क कनडिरुन्दाल एन्बदन्रो अन्नै पळियेर्किन्राल – नंगु उणरिल एन्नाले नासं मेलुम एतिरासा उन्नाले आम उरवै ओर शब्दार्थ तन कुळवि – अगर अपना बच्चा चार्न्दिरुक्क – निकट वान किणट्र – एक बड़ा कुआँ (कुऍ में गिरने से … Read more

आर्ति प्रबंधं – ७

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम: आर्ति प्रबंधं << पासुर ६   उपक्षेप मणवाळ मामुनि की कल्पना में पिछले पासुरम के अनुबंध में, श्री रामानुज उनसे प्रश्न करते हैं। मणवाळ मामुनि, पूर्व पासुरम में शीघ्र अपने शरीर की नाश कर, श्री रामानुज के चरण कमलों में स्वीकरित करने की प्रार्थना करते हैं। इसकी … Read more