आर्ति प्रबंधं – ६

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम: आर्ति प्रबंधं << पासुर ५ उपक्षेप पिछले पासुर और इस पासुर के संबंध को “उन भोगं नन्रो एनै ओळिन्द नाळ” से स्थापित किया गया हैं।  पिछले पासुर में मणवाळ मामुनि (वरवरमुनि), श्री रामानुज से प्रश्न करते हैं कि, उनके (मणवाळ मामुनि के) सांसारिक बंधनों में रहते हुए, वे … Read more

आर्ति प्रबंधं – ५

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम: आर्ति प्रबंधं << पासुर ४ उपक्षेप पूर्व पासुर में, मणवाळ मामुनि, श्री रामानुज के प्रति “उणर्न्दु पार” अर्थात, अपने परमपद प्राप्ति  पर विचार करने कि प्रार्थना करते हैं। इसके अनुबंध में, यह प्रश्न आता हैं कि मणवाळ मामुनि किस आधार पर श्री रामानुज से इतने अधिकार से … Read more

आर्ति प्रबंधं – ४

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम: आर्ति प्रबंधं << पासुर ३ उपक्षेप शरीर, जो पिछले पासुरम में विरोधी चित्रित किया गया था, यहाँ आत्मा का कारागार बताया जाता है। इस पासुरम में मणवाळमामुनि, श्री रामानुज से उस कारागार से मुक्ति कि प्रार्थना करते हैं और बताते हैं कि यह कार्य केवल श्री रामानुज … Read more

आर्ति प्रबंधं – ३

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम: आर्ति प्रबंधं << पासुर २ उपक्षेप पहले दो पासुरों में, मणवाळ मामुनि श्री रामानुज के महानता का विवरण किये। इस पासुर से मामुनि अपने आर्ति को प्रकट करना प्रारंभ करते हैं। विशेषरूप से इस पासुरम में वे श्री रामानुज को अपने एकमात्र , सर्व सम्बंधी मानते हैं। परंतु … Read more

आर्ति प्रबंधं – २

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम: आर्ति प्रबंधं << पासुरम १ इरामानुसाय नम एन्रु सिंदित्तिरा मनुसरोडु इरैप्पोळुदु – ईरामारु सिन्दिप्पार ताळिनैयिल सेर्न्दिरुप्पार ताळिनैयिल वन्दिप्पार विन्नोरगळ वाळ्वु शब्दार्थ : वाळ्वु – (का) नित्य धन विण्णोर्गळ –  नित्यसूरीयाँ हैं ताळिनैयै – उनके उभय चरण कमल वन्दिप्पार – जो दण्डवत प्रणाम करते हैं सेर्न्दिरुप्पार – … Read more

आर्ति प्रबंधं – १

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम: आर्ति प्रबंधं << अवतारिका (उपक्षेप) वाळि एतिरासन वाळि एतिरासन वाळि एतिरासानेन वाळ्तुवार वाळियेन वाळ्तुवार वाळि एन वाळ्तुवार ताळिनैयिल ताळ्तुवार विण्णोर तलै शब्दार्थ विण्णोर – नित्यसूरीया (श्रीमन नारायण के नित्य निवास परमपद में उनके नित्य सेवक) तलै – कोई जनों को अपने स्वामी मानते हैं। ताळ्तुवार – … Read more

आर्ति प्रबंधं – अवतारिका (उपक्षेप)

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम: आर्ति प्रबंध << तनियन (आवाहन) उनके भक्त उन तक पहुँचे, यह श्री:पति श्रीमन नारायण निश्चित करते हैं। यह सफल होने केलिए वे अपने भक्तों में अपने तक पहुँचने कि इच्छा जागृत करते हैं। यह इच्छा क्रमशः परभक्ति, परज्ञान , परम भक्ति के रूप में खिल्ती हैं। … Read more

आर्ति प्रबंधं – तनियन (आवाहन )

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम: आर्ति प्रबंध तनियन १ तेन पयिलुम थारान एतिरासन सेवडी मेल * तान परमपत्ति तलैयेडुथ्थु * मानदर्क्कु उणवाग आर्तियुडन ओण्डमिळ्गळ सेईदान * मणवाळ मामुनिवन वंदु * शब्धार्थ : मणवाळ मामुनिवन – पेरिय जीयर , जो मणवाळ मामुनिगळ नाम से भी जाने जाते हैं। वंदु – इस संसार … Read more

आर्ति प्रबंधं

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम: श्री रामानुज- श्रीरंगम मणवाळ मामुनिगळ – श्रीरंगम श्री मणवाळ मामुनि हमारे सत सम्प्रदाय के प्रति अपने यशस्वी साहित्यिक अभिदान की आरंभ, आळ्वारतिरुनगरी के भविष्यदाचार्य सन्निधि में कैंकर्य करते समय, श्री रामानुज के यश पर संस्कृत में यतिराज विम्षति नामक प्रबंध, किये। ये मन मोहक २० श्लोक, … Read more

चतुः श्लोकी – अंत में कहे जाने वाला श्लोक

श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः चतुः श्लोकी श्लोक अंत में कहे जाने वाला श्लोक: आकार त्रय संपन्नाम अरविंद निवासिनीम् | अशेष जगतीशित्रीम् वंदे वरद वल्लभाम् || Listen अनुवाद संसार के श्रृष्टि एवं परिपालन करने वाले श्री वरदराजपेरुमाळ के प्रिय, जो केवल उनके प्रति शीश (दास्यता), पारतंत्र्य (पूर्ण निर्भरता) तथा अनन्य भोग्यता … Read more