उत्तरदिनचर्या – श्लोक – ११

श्री:
श्रीमते शठकोपाय नमः
श्रीमते रामानुजाय नमः
श्रीमद्वरवर मुनये नमः

परिचय

श्लोक १०                                                                                                               श्लोक १२

श्लोक ११

अपगतमदमानै: अन्तिमोपाय निष्टै:
अधिगतपरमार्थै: अर्थकामान अपेक्षै:
निखिलजनसुहृदिभि: निर्जित क्रोध लोभै:
वरवरमुनि भृत्यै: अस्तु मे नित्य योग: ॥   //११//

शब्दश: अर्थ

मे                             : मुझे इतने दिनों तक बुरे संगत में
अपगतमदमानै:        : सम्बन्धी जो नाही अहंवादी है और नाही व्यर्थ असम्मानिय बुजुर्ग
अन्तिमोपाय निष्टै:   : इस विश्वास के साथ कि आचार्य में निष्ठा हीं मोक्ष का अन्तिम अनुशासन है
अधिगतपरमार्थै:        : आचार्य और उनके लाभ से उनकी सेवा में पूर्णत: हर्ष में रहना
अर्थकामान अपेक्षै:     : दूसरे सांसारिक वस्तु, धन, आनन्द आदि में आस न रखना
निखिलजनसुहृदिभि: : मनुष्य जो बिना पक्षपात या तरफदारी के सब के भलाई की इच्छा करते है
निर्जित क्रोध लोभै:    : वों जिन्होंने पूर्णत: ग़ुस्से और घृणा पर विजय प्राप्त किया हो
वरवरमुनि भृत्यै:       : और अति मित्रता से श्रीवरवर मुनि स्वामीजी कि उपासना कि हो जैसे कोइल कान्तदै,                                                    वानमामलाई जीयर:
नित्य योग:               : नित्य उनके सम्पर्क में रहना ताकि उनके कोमल चरण को पकड़ सके
अस्तु                        : मुझ पर उसकी कृपा रहे

अर्थ

इससे उन्होंने ग़ुस्से, घृणा और ऐसे गुण वाले लोगों का त्याग के लिए प्रार्थना कि और श्रीवरवर मुनि स्वामीजी के शिष्यों से सम्बन्ध किया जो पक्षपात, तरफदारी या अधिक मान के बिना हमेशा सब का अच्छा सोचते है।

हिंदी अनुवाद – केशव रान्दाद रामानुजदास

archived in http://divyaprabandham.koyil.org
pramEyam (goal) – http://koyil.org
pramANam (scriptures) – http://srivaishnavagranthams.wordpress.com
pramAthA (preceptors) – http://acharyas.koyil.org
srIvaishNava education/kids portal – http://pillai.koyil.org

Leave a Comment