आर्ति प्रबंधं – १७

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम:

आर्ति प्रबंधं

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उपक्षेप

पिछले पासुरम में मणवाळ मामुनि श्री रामानुज से, उन्के चरण कमल प्राप्त होने  की समय की विवरण प्रार्थना किये।  अब मामुनि के अभिप्राय है कि ,इस प्रश्न से  श्री रामानुज के मन में एक सोच पैदा हुआ हैं। वह है , “ हे मणवाळ मामुनि! आपके मनुष्य शरीर के इस धरती पर घिरते समय, आप, “मरणमानाल” (तिरुवाय्मोळि ९. १०. ५ ) वचन के अनुसार, मोक्ष प्राप्त कर, श्रीमान नारायण के नित्य निवास परमपद पहुँचेंगे।” मणवाळ मामुनि इस विलम्ब कि कारण पूछते हैं।  शरीर के धरती पर घिरने (मृत्य ) तक क्यों प्रतीक्षा करें ? यह शीघ्र क्यों नहीं किया जा सकता ? इस पासुरम का सारांश यही है।

पासुरम १७

पोल्लानगु अनैत्तुम पोदिन्दु कोणडु नन्मैयिल ओन्रु
इल्ला एनक्कुम एतिरासा – नल्लारगळ
नण्णुम तिरुनाटै नान तरुवेन एन्रा नी
तण्णेन्रु इरुक्किरदु एन्दान ?

शब्दार्थ

अनैत्तुम – सारे साध्य ( व्यक्ति हूँ ,जिसके पास  )
पोल्लानगु – बुरे कर्म
पोदिन्दु कोणडु – गहरी तरह उकेरे हुए हैं
ओन्रु इल्ला – एक बिन्दुमात्र (मेरे पास नहीं हैं )
नन्मैयिल – मुझको   सुकर्म
एतिरासा – हे ! एम्पेरुमानारे !
एनक्कुम – मेरे जैसे व्यक्ति को भी
नान तरुवेन एन्रा नी – आप ने कहा था की आप मुझे आशीर्वाद करेंगें
तिरुनाटै – परमपद जो
नण्णुम – जगह जो पहुँचने लायक हैं
नल्लारगळ – नेक व्यक्तियों से
तण्णेन्रु इरुक्किरदु एन्दान ? – मुझे आशीर्वाद करने मे धेरी क्यों ? ( गहरा अर्थ यह है कि  , श्री रामानुज के आशीर्वाद के संग शीघ्र परमपद पधारने के आर्ति के अलावा  मणवाळ मामुनि की न ही अन्य कोई गति है ,न कोई संपत्ति है । )

सरल अनुवाद

मणवाळ मामुनि कहते हैं , “मैं ऐसा व्यक्ति हूँ जिसमें, एक बिन्दुमात्र भी अच्छे गुण नहीं हैं , बुरे कर्मों से भरपूर हूँ।  पर मेरे जैसे नीच व्यक्ति को भी श्री रामानुज परमपद प्राप्ति की आश्वासन दिए हैं। हे रामानुज ! आपने परमपद प्राप्ति का विश्वास दिलाया, पर उस में देर क्यों लगा रहें हैं ?”

स्पष्टीकरण

पासुरम के पूर्व भाग में खुद की विवरण करते हैं श्री मणवाळ मामुनिगळ।  वे बताते हैं कि (तिरुवाय्मोळि ३. ३. ४ ) “नीसनेन निरै ओन्रुमिलेन” और “अकृतसूकृत:” में जैसा चित्रित हैं वैसे ही, वे आत्मा के प्रेरणाप्रद और विमुक्ति के एकदम विरुद्ध गुणों से भरपूर हैं।  और उनमें आत्मा को शोधन करने वाले कुछ भी अच्छे गुण नहीं हैं। वे पूर्वजों से निन्दित कार्यो में व्यस्त हैं। “प्राप्यम अर्चिपधासत्भिस तत विष्णोर परमम्पदम” वचन कहता हैं कि, परमपद, अच्छे कर्मों से भर, नेक गुणों से भरपूर जनों से  चाहे जाने वाला जगह हैं। मणवाळ मामुनि कहतें हैं , “हे एम्पेरुमानारे ! आपने मुझे आश्वासन दिया था कि मेरे जैसे नीच व्यक्ति को भी आप परमपद दिलायेँगे।  हमारे सम्बंध कि एहसास के साथ ही आपने यह बताया।  अतः इस उपहार में देरी मुझे समझ नहीं आ रही हैं।  क्या आपको लगा कि अन्य किसी से मैं रक्षा की प्रार्थना करूंगा ? क्या आप ने सोचा कि मैं अपने प्रयत्न से श्रीमन नारायण द्वारा लगाए  परमपद प्राप्ति के विधियों को कर पाऊँगा ? हे एम्पेरुमानारे ! आपसे अन्य न मेरे कोई गति हैं न उपाय। मेरी न कोई संपत्ति हैं और न ही आपके चरण कमलों से अन्य कोई गति हैं। अतः मैं प्रार्थना करता हूँ कि आप मुझे शीघ्र ही मोक्ष दिलायें।

अडियेन प्रीती रामानुज दासी

आधार :  http://divyaprabandham.koyil.org/index.php/2016/08/arththi-prabandham-18/

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