श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमद्वरवरमुनये नम:
पासुरम ३३
इन्नम एत्तनै कालम इंद उडम्बुडन यान इरुप्पन
इन्नपोळूदु उडम्बु विडुम इन्नपडि अदुतान
इन्नविडत्ते अदुवुम एन्नुम इवैयेल्लाम
ऐतिरासा नी अरिदी यान इवै ओन्ररियेन
एन्नै इनि इव्वुडैमबै विडुवित्तु उन अरुळै
ऐरारुम वैकुंठत्तेट्र निनैवु उणडेल
पिन्नै विरैयामल मरन्दु इरुक्कीरदेन ? पेसाय
पेदैमै तीरन्दु एन्नै अडिमै कोंड पेरुमाने
शब्दार्थ
इन्नम – अब से
यान इरुप्पन – मैं रहूँगा, बिना संबंध के
इंद उडम्बुडन – इस नीच शरीर में
ऐतिरासा ! – एम्पेरुमानारे !!!
नी अरिदि – आपको ज्ञान हैं
एत्तनै कालम – कितनी समय तक इन्नपोळूदु उडम्बु विडुम – कि यह शरीर किस समय पर घिरने वाला है
इन्नपडि अदुतान – किस प्रकार
इन्नविडत्ते अदुवुम – किस जगह
एन्नुम इवैयेल्लाम – ( यह सारी बातों कि ) आपको निश्चित ज्ञान है
यान – अज्ञानी मुझको
इवै ओन्ररियेन – इनमें से एक अणु की भी ज्ञान नहीं है
पेदैमै तीरन्दु – अत: मेरी अज्ञान को हटाइये !!!
अडिमै कोंड पेरुमाने !!! – जिनका सम्पूर्ण आधिपत्य है
एन्नै – मुझ पर, (जन्म पर दिए गए) इस साँसारिक बंधन से असंबंधित जो हूँ
इनि उन अरुळै – अब से ऐसे आशीर्वाद दीजिए कि
इव्वुडैमबै विडुवित्तु – शरीर को हटाकर (छुटकारा दिलाकर )
वैकुंठत्तेट्र – परमपद के ओर बढ़ाए
ऐरारुम – जो सुंदरता से भरपूर जगह है
निनैवु उणडेल – (एमपेरुमानारे) अगर आपकी ऐसी इच्छा हो
पिन्नै – फिर
पेसाय – कृपया मुझे बताएं
मरन्दु इरुक्कीरदेन? – आप क्या विचार कर रहें हैं और यह देरी किसलिए?
विरैयामल – और यह शीग्र क्यों नहीं करतें हैं ?
सरल अनुवाद
इस पासुरम में मणवाळ मामुनि श्री रामानुज से अपने जीवात्मा की मुक्ति प्राप्त कर परमपद पधारने में देरी की कारण पूछते हैं। मामुनि यह शारीर छोड़ने केलिए तैयार हैं और एम्पेरुमानार अत्यंत कृपाळु हैं। फिर भी यह कार्य की असफ़लता पर मामुनि आश्चर्य करते हैं। यहीं इस पासुरम में प्रश्न के रूप में प्रकट हुआ हैं।
स्पष्टीकरण
मणवाळ मामुनि कहतें हैं , “एम्पेरुमानारे! मेरे स्वामी ! इसके पहले आपके संबंध की ज्ञान इसके पहले मुझे नहीं था। यह सूनापन मिटाकर आप मुझे खुद का सच्चा स्वरूप समझायें। “ (तिरुवाय्मोळि ४.९. ६) के विनैयेन उनक्कडिमैयरककोंडाई के अनुसार मुझे यह एहसास दिलाये कि मैं दास हूँ। दास का जीवन जीकर, उस्का महत्वपूर्ण समझकर, आपके प्रति मेरे दासत्व की ज्ञान दिए। आप ही मेरे स्वामी हैं। आपसे एक प्रश्न हैं। और कितने समय तक इस नीच शरीर में मेरी आत्मा को रखने का विचार हैं ? जब इस शरीर से सच्चा बंधन कुछ न रहा, और कितने समय मुझे इसके अंदर रहना हैं ? यह शरीर कब, कहाँ , किस प्रकार घिरेगा इन सारे बातों का आपको ज्ञान है और मुझे नहीं है।
आगे मामुनि प्रस्ताव करतें हैं, “मेरे स्वामि! मेरा जीवात्मा बिना इच्छा या संबंध कि इस शरीर के अंदर है। अगर आपको इस आत्मा को शरीर से मुक्ति दिलाकर परमपद प्राप्ति दिलाना हैं, तो देरी किस बात की ? (तिरुवाय्मोळि १०.६. ३) के, “विण्णुलगम तरुवानाय विरैगिंरान” के अनुसार, यह कार्य आप शीग्र क्यों नहीं करतें? कृपया देरी की कारण बताएं। आपकी कृपा असीमित हैं और मेरे पास साँसारिक संबंध नहीं है , तो आपको क्या रोख रहीं हैं ? “मरंदु इरुक्कीरदेन? पेसाय” को “अमरन्दु इरुक्किरदेन पेसाय” भी कहतें हैं।
अडियेन प्रीती रामानुज दासी
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