श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्री वानाचल महामुनये नमः
<< तेरहवां दशक
तिरुप्पावै में, आण्डाळ् ने प्राप्यम् (अन्तिम उपेय) और प्रापकम् (प्राप्ति का उपाय) की घोषणा की थी। अंतिम लक्ष्य नहीं मिलने पर वह असमंजस में पड़ गई और नाच्चियार् तिरुमोऴि में प्रथम कामन् के चरणों में गिर गई। तत्पश्चात् प्रभात में स्नान करने (पनिनीराट्टम्) के लिए गईं। क्या उनकी इच्छा पूर्ण होगी यह ज्ञात करने के लिए उन्होंने अपने हस्त से चक्र पूर्ण करने का प्रयास किया; कोयल की मधुर वाणी सुनी; साक्षात् भगवान् के दर्शन की इच्छा हुई, परन्तु जब वह फलित नहीं हुईं तो उन्होंने अपने स्वप्न में अनुभव किया, स्वयं को पोषित किया; श्रीपञ्चजन्याऴ्वान् से एम्पेरुमान् (भगवान) के दिव्य मुख से निस्सृत अमृत के विषय में पूछा; मेघों से एम्पेरुमान् (भगवान) के विषय में पूछा, उन मेघों को दूत बनाकर उनके पास भेजा; खिले हुए पुष्पों को देखकर दु:खी हुई जो एम्पेरुमान् का स्मरण करा प्रताड़ित कर रहे हैं; उन्हें यह भी स्मरण हुआ कि कैसे एक अयोनिजा के रूप में प्रकट हुई। एम्पेरुमान् के साक्षात्कार न होने पर स्वयं को सांत्वना दी कि वे पेरियाऴ्वार् (श्रीविष्णुचित्त) के लिए आएँगे, परन्तु जब वे उनके लिए भी नहीं आए तो उसे दु:ख हुआ; जीवित रहने के लिए उन्होंने निकटतम लोगों से प्रार्थना की किसी प्रकार वे उनके निवास स्थान तक ले जाएँ, उनके वस्त्र, माला आदि लाने को कहा। तब भी एम्पेरुमान् (भगवान) का दर्शन नहीं हुआ।
यद्यपि वह प्रपन्न कुल (एम्पेरुमान् को पूर्ण समर्पित) में जन्मी थीं, उनकी ऐसी स्थिति का मुख्य कारण एम्पेरुमान् के प्रति अत्यधिक स्नेह है। एम्पेरुमान् भी उनकी परमभक्ति की स्थिति (एम्पेरुमान् के विद्यमान होने से एक हो जाना और विलग होने पर विनाश को प्राप्त होना) की प्रतीक्षा कर रहे थे। वह भी नम्माऴ्वार् (श्रीशठकोप स्वामी) के समान, एम्पेरुमान् को प्राप्त करने का लक्ष्य निर्धारित कर रहीं हैं, चाहे उनको एम्पेरुमान् को विवश ही क्यों न करना पड़े। इस असह्य दु:ख के अतिरेक से इस पदिगम् में करुणा पूर्वक कहा रहीं हैं “कण्डीरे” (जैसे कोई प्रश्न कर रहा है) और “कण्डोमे” (जैसे कोई प्रत्युत्तर कर रहा हो)।
आण्डाळ् के प्रयासों को देखते हुए क्या ऐसा कह सकते हैं कि वे एम्पेरुमान् की प्राप्ति के लिए अन्य उपायों का प्रयास कर रही हैं? नहीं हम ऐसा नहीं कह सकते। उनकी यह स्थिति केवल एम्पेरुमान् के प्रति अत्यधिक स्नेह, उनके दिव्य गुणों और उनके वियोग को सहन न कर सकने के कारण हुई है, उन्होंने ये सभी कार्य (प्रथम अनुच्छेद में वर्णित) अन्य उपायों का अनुसरण करने के प्रयास में नहीं किया। वह उनके स्वरूप (मूल स्वभाव) के अनुरूप नहीं होगा। जो एम्पेरुमान् को उपाय के रूप में जानते हैं वे अन्य उपायों का तो सोच भी नहीं सकते।
प्रथम पासुर- श्रीगोकुल में प्रचुर मात्रा में मक्खन का आनन्द लेने और नप्पिनैप् पिराट्टी से विवाह करने के लिए परमपद के स्वानुभव को छोड़ कर यहाँ अवतरित हुए। स्वेच्छानुसार उन्होंने श्री वृन्दावन में भ्रमण किया और उच्च स्वरूप को प्राप्त किया।
पट्टि मेय्न्दोर् कारेऱु बलदेवऱ्-कु ओर् कीऴ्क् कन्ऱाय्
इट्टीरिट्टु विळैयाडि इङ्गे पोदक् कण्डीरे?
इट्टमान पसुक्कळै इनिदु मऱित्तु नीरूट्टि
विट्टुक् कॊण्डु विळैयाड विरुन्दावनत्ते कण्डोमे
श्याम वर्ण के वृषभों के समान और अद्वितीय, कृष्ण बिना किसी निषेध के सर्व स्थानों पर भ्रमण करता था। वह बलदेव (बलराम) के अद्वितीय और आज्ञाकारी अनुज था। उसने आनन्द खेल में कई लीलाएँ की। क्या आपने उसका दर्शन किया है? हमने कृष्ण को वृन्दावन में अपनी प्रिय गायों को उनके मनमोहक नामों से पुकारते हुए, उन्हें पानी पिलाते हुए, चराते हुए और खेलते हुए देखा है।
दूसरा पासुर- वह पूछती है कि उन्होंने उन्हें वरमाला वैजन्ती (दिव्य माला) पहने हुए और वृन्दावन में अपने सखाओं के साथ क्रीड़ा करते देखा है।
अनुङ्ग ऎन्नैप् पिरिवु सॆय्दु आयर्पाडि कवर्न्दुण्णुम्
कुणुङ्गु नाऱिक् कुट्टेट्रै गोवर्त्तननैक् कण्डीरे?
कणङ्गळोडु मिन्मेगम् कलन्दार्पोल वनमालै
मिनुङ्ग निन्ऱु विळैयाड विरुन्दावनत्ते कण्डोमे
क्या तुमने कृष्ण को देखा है जो मुझे विरह दु:ख देते हुए यहां से पधारकर व्रज में गोपीजनों के बीच विराजमान हो आनन्द प्राप्त करता है, जिनका दिव्य मङ्गल विग्रह मक्खन की गंध से महक रहा है एवम् वह बाल वृषभ के समान दिखता है, वह गोपालक है? वृन्दावन में अपने सखाओं के साथ क्रीड़ा करते दर्शन किया जिसके दिव्य श्याम विग्रह पर शोभायमान वनमाला विभूषित है जो बिजली और मेघ एक साथ प्रकट होते प्रतीत हो रहा था।
तीसरा पासुरम्- वे कहती हैं कि उन्होंने कृष्ण को वृन्दावन में देखा जिनके ऊपर गरुड़ाऴ्वार् अपने पंख फैलाकर छत्र बनाकर कैङ्कर्य कर रहे हैं।
मालाय्प् पिऱन्द नम्बियै माले सॆय्युम् मणाळनै
एलाप् पॊय्गळ् उरैप्पानै इङ्गे पोदक् कण्डीरे?
मेलाल् परन्द वॆयिल् काप्पान् विनदै सिऱुवन् सिऱगॆन्नुम्
मेलाप्पिन् कीऴ् वरुवानै विरुन्दावनत्ते कण्डोमे
क्या आपने कृष्ण को इसी स्थान पर आते जाते देखा है जो गोपियों के प्रति अत्यधिक स्नेह के कारण स्वयं मूर्तिमान व्यामोह रूप में अवतरित हुआ, जो स्नेही वर है और अनृत वचन बोलता है? हमने वृन्दावन में कृष्ण का दर्शन किया है जिसके ऊपर आकाश में गरुड़ाऴ्वार् ने सूर्य की प्रचण्ड किरणों से सुरक्षित करने के लिए अपने पंखों को छत्र के जैसे फैलाया है कि वे किरणें उसके दिव्य मङ्गल विग्रह पर न पड़ें।
चौथा पासुर- वह एम्पेरुमान् को गज शिशु के समान देखते हुए आनन्दित है।
कार्त्ताण् कमलक्कण् ऎन्नुम् नॆडुङ्गयिऱु पडुत्ति ऎन्नै
ईर्त्तुक् कॊण्डु विळैयाडुम् ईसन् तन्नैक् कण्डीरे?
पोर्त्त मुत्तिन् कुप्पायप् पुगर्माल् यानैक् कन्ऱे पोल्
वेर्त्तु निन्ऱु विळैयाड विरुन्दावनत्ते कण्डोमे
सर्वेश्वर एम्पेरुमान् कालमेघ में उगने वाले कमल पुष्पों के समान दिव्य नेत्र हैं । क्या तुमने सर्वेश्वर को देखा है अपने उन शोभायमान दिव्य नेत्र रूपी लम्बी रस्सी से मुझे जाल में फँसाकर, मेरा हृदय अपने साथ ही खींचकर और उसके साथ खेलते हुए? हमने वृन्दावन धाम में उनके दर्शन किए जैसे कि एक विशाल गज शिशु जिसके दिव्य विग्रह पर मोतियों का आवरण शोभायमान है, स्वेद बिंदु से अलङ्कृत होकर क्रीड़ा कर रहे हैं। [वह स्वेद बिंदुओं को मोतियों के कवच के समान देखती है]
पांचवां पासुर- वह कहती है कि एम्पेरुमान् अपने दिव्य पीताम्बर को धारण किये हुए नगर में भ्रमण कर रहे थे जैसे कि एक छोटा श्याम मेघ जिसके आर -पार बिजली की चमक है।
माधवन् ऎन् मणियिनै वलैयिल् पिऴैत्त पन्ऱि पोल्
एदुम् ऒन्ऱुम् कॊळत्तारा ईसन् तन्नैक् कण्डीरे?
पीदग आडै उडै ताऴप् पॆरुङ्गार् मेगक् कन्ऱे पोल्
वीधियार वरुवानै विरुन्दावनत्ते कण्डोमे
मेरे लिए नीलमणि के समान मधुर महान सर्वेश्वर जो महालक्ष्मी जी के स्वामी (पति) हैं, क्या तुमने उसका दर्शन किया है, जो जाल से छूटे हुए वराह स्वरूप के समान अभिमानी हैं, तथा जो उसके पास जो भी है उसे किसी को नहीं देता? हाँ हमने वृन्दावन में घुटनों तक लटकते हुए पीताम्बर से अलंकृत कृष्ण के दर्शन किए हैं, वह एक बड़े कालमेघ शिशु के समान कृपापूर्वक पूरे सड़क पर फैला हुआ था।
छठा पासुर-वह कहती है कि उन्होंने अपने रक्तिम लालिमा के समान तेज के साथ श्याम दिव्य वर्ण में देखा जो उदयगिरि (पर्वत जहाँ सूर्योदय होता है) से उदित सूर्य के समान था।
दरुमम् अऱियाक् कुऱुम्बनैत् तन् कैच् चार्ङ्गम् अदुवे पोल्
पुरुव वट्टम् अऴगिय पॊरुतमिलियैक् कण्डीरे?
उरुवु करियदाय् मुगम् सॆय्दाय् उदयप् परुप्पदत्तिन् मेल्
विरियुम् कदिरे पोल्वानै विरुन्दावनत्ते कण्डोमे
क्या आपने भगवान को देखा है जो दया नामक परमधर्म को पूर्णतया नहीं जानता, जो सदा परमधूर्त लीलाएँ करता है अपने हस्त में स्थित शार्ङ्गधनुष के समान वक्र व सुन्दर भ्रू से अलंकृत होकर अपने प्रिय भक्तों को छोड़कर भ्रमण करता है? हाँ! हमने वृन्दावन धाम में उसके अवश्य ही दर्शन किए जो कि श्याम सुंदर विग्रह, कमल समान लाल मुख होने के कारण उदय पर्वत पर उगने वाले सूर्य सम विराजता है।
सातवां पासुर-वह कहती हैं कि उन्होंने कृष्ण को वृन्दावन धाम में अपने सखाओं के मध्य में स्थित देखा है जैसे नभ तारागण के साथ हो।
पॊरुत्तम् उडैय नम्बियैप् पुऱम् पोल् उळ्ळुम् करियानै
करुत्तैप् पिऴैत्तु निन्ऱ अक्करुमा मुगिलैक् कण्डीरे?
अरुत्तित् तारा कणङ्गळै आरप्पॆरुगु वानम् पोल्
विरुत्तम् पॆरिदाय् वरुवानै विरुन्दावनत्ते कण्डोमे
क्या आपने कृष्ण को देखा है जो परम स्वामी है, जिसका हृदय उसके दिव्य मङ्गल विग्रह के समान श्याम का है (दया रहित), जो मेरे विचारों के विपरीत है, और विशाल श्याम मेघ के समान है? हमने उस कृष्ण को वृन्दावन में देखा है जो अपने सखाओं के संग बहुत बड़ी भीड़ में ऐसे प्रतीत होता है जैसे नभ तारागण से भरा हो, जिन्हें सांसारिक आनन्द की इच्छा करने वाले जन चाहते हैं।
आठवां पासुर-वह कहती है कि उन्होंने कृष्ण को उसके दिव्य स्कन्धों पर चमकती कुंडल अलकों के साथ खेलते हुए देखा।
वॆळिय सङ्गु ऒन्ऱु उडैयानैप् पीदग आडै उडैयानै
अळि नङ्गुडैय तिरुमालै आऴियानैक् कण्डीरे?
कळि वण्डु ऎङ्गुम् कलन्दाऱ-पोल् कमऴ् पूङ्गुऴल्गऴ् तडन्दोळ् मेल्
मिळिर निन्ऱु विळैयाड विरुन्दावनत्ते कण्डोमे
क्या आपने दयालु, पीताम्बर धारी, जिसके पास श्वेत अद्वितीय श्री पाञ्चजन्य शंख है, जो दिव्य चक्रधारी है और श्रीमहालक्ष्मी का पति उन कृष्ण का दर्शन किया है? हाँ हमने उसे वृन्दावन में देखा है जिसके दिव्य स्कन्धों पर सुगन्धित केश इतने सुंदर हैं कि जैसे मधु का पान करके भृङ्ग चारों ओर विराजमान हो, शोभित हो रहे हैं।
नौवां पासुर-वह कहती है कि उन्होंने एम्पेरुमान् को देखा है जो वृन्दावन के घने वनों में राक्षसों का विनाश कर रहा था।
नाट्टैप् पडै ऎन्ऱु अयन् मुदळात् तन्द नळिर् मामलर् उन्दि
वीट्टैप् पण्णि विळैयाडुम् विमलन् तन्नैक् कणडीरे?
काट्टै नाडित् तेनुगनुम् कळिऱुम् पुळ्ळुम् उडन् मडिय
वेट्टै आडि वरुवानै विरुन्दावनत्ते कण्डोमे
क्या आपने परम पवित्र एम्पेरुमान् को देखा है जिसने विशाल नाभि से कमल पुष्प की सृष्टि कर उसमें से ब्रह्मा जैसे प्रजापतियों की सृष्टि की, और कहा, “जगत्सृष्टि करो” और जो लीलाएँ कर आनन्द भोग रहा था? हाँ! हमने कृष्ण का दर्शन किया है, जिसने धेनुका राक्षस को, कुवलयापीठ हाथी और बकासुर को खोजकर वध कर दिया।
दसवां पासुर- वह यह कहते हुए इस दशक का समापन करती है कि जो जन इस पद्य का स्मरण करते हैं उनके लिए यह फल श्रुति होगी कि उन्हें एम्पेरुमान् का सान्निध्य प्राप्त होगा और कैङ्कर्यरत् रहेंगे।
परुन्दाट्कळिट्रुक्कु अरुळ् सॆय्द परमन् तन्नै पारिन् मेल्
विरुन्दावनत्ते कणडमै विट्टुचित्तन् कोदै सोल्
मरुन्दाम् ऎन्ऱु तम् मनत्ते वैत्तुक् कोण्डु वाऴ्वार्गळ्
पॆरुन्दाळ् उडैय पिरान् अडिक्कीऴ्प् पिरियादेन्ऱुम् इरुप्पारे
यह पासुर पेरियाऴ्वार् (श्री विष्णुचित्त सूरी) की दिव्य पुत्री श्री आण्डाळ् द्वारा अनुगृहीत है जिसने बड़े पैर वाले भक्त गजेन्द्र पर कृपा बरसाने वाले परमपुरुष के दर्शन इसी भूमण्डल पर वृन्दावन क्षेत्र में किए। संसारव्याधि के प्रतिकारक के रूप में अपने हृदय में इन पासुरों का जो मनन करते हैं, वे महामहिम श्रीपादवाले भगवान के दिव्य चरणों में नित्य रहते हुए नित्य कैङ्कर्य करेंगे।
अडियेन् अमिता रामानुज दासी
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