उपदेश रत्तिनमालै – सरल व्याख्या – पासुर १२ और १३

। ।श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमत् वरवरमुनये नमः। ।

उपदेश रत्तिनमालै

<<पासुर १० और ११

पासुर १२

बारहवां पासुर। इसके बाद वे दयालु रूप से समझाते हैं ताकि संसार के सभी लोग उन तिरुमऴिसै आऴ्वार् (भक्तिसार स्वामी) की महानता के बारे में जान जाएँ, जिन्होंने तै (पौष) के महीने में मघम् (मघा) नक्षत्र में जन्म लिया।

तैयिल् मगम् इन्ऱु तारणियीर् एट्रम् इंदत्
तैयिल् मगत्तुक्कुच् चाट्रुगिन्ऱेन् – तुय्य मदि
पॆट्र मऴिसैप्पिरान् पिऱन्द नाळ् ऎन्ऱु
नट्रवर्गळ् कॊण्डाडुम् नाळ्

हे संसार के लोग! तै (पौष) महीने के मघम् नक्षत्र बहुत सम्मानित है। मेरी बात सुनो, अब मैं समझाता हूँ कि इसकी महानता क्या है। क्योंकि यह वह दिन था, जिस दिन पवित्र ज्ञान प्राप्त तिरुमऴिसै पिरान् अवतरित हुए। यह उन‌ लोगों द्वारा मनाया जाता है जो महान तपस्या करते हैं।

ज्ञान की शुद्धता यह है कि, इन आऴ्वारों को दयापूर्वक दोषरहित ज्ञान और भक्ति (समर्पण) प्राप्त हुए हैं, और वे अन्य देवताओं के संलग्न नहीं हैं। इस आऴ्वार् का तिरुकुडंदै आरावमुदन् भगवान (कुम्भकोणम के शार्ङ्पाणि भगवान) के साथ अंतर्मुखी संबंध बनाने के कारण, इन्हें तिरुमऴिसै पिरान् (पिरान् शब्द साधारण रूप से भगवान को संदर्भित करता है) कहा जाता है‌ और आरावमुदन् को आरावमुद आऴ्वार्। ‘महान तपस्या के लोग’ उन्हें संदर्भित करता है जिनके पास आत्मसमर्पण की तपस्या और आचार्य की ओर दृढ़ निष्ठा की तपस्या होती है, जैसे कणिकण्णन्, पेरुंबुलियूर् अडिगळ्, रामानुजाचार्य आदि।

पासुर १३

तेरहवां पासुर। अब वे संसार के लोगों को कुलशेखर आऴ्वार् के बारे में बताते हैं, जिन्होंने माघ महीने में पुनर्वसु नक्षत्र में अवतार लिया।

मासिप्पुनर्पूसम् काण्मिन् इन्ऱु मण्णुलगीर्
तेसु इत्तिवसत्तुक्कु एदॆन्निल् – पेसुगिन्ऱेन्
कॊल्लि नगर्क्कोन् कुलसेकरन् पिऱप्पाल्
नल्लवर्गळ् कॊण्डाडुम् नाळ्

हे संसार के लोगों! माघ (मासि) महीने के पुनर्वसु (पुनर्पूसम्) नक्षत्र की महीमा बताता हूँ, सुनो। क्योंकि इस दिन चेर देश के कोल्लि नगर के नेता, कुलशेखर पेरुमाळ् का अवतार हुआ, यह दिन अच्छे लोगों द्वारा मनाया जाता है। क्योंकि उन्हें पेरुमाळ् (भगवान) श्रीराम के प्रति गहरी भक्ति थी, उन्हें कुलशेखर पेरुमाळ् कहा जाता है। अच्छे लोग वे हैं जो श्वैष्णव मार्ग पर चलते हैं, जो परम रूप से अच्छे हैं, जिनके पास भरपूर ज्ञान और भक्ति है, सांसारिक कार्यों के प्रति वैराग्य है। अर्थात वे लोग जिनके पास हमारे आचार्यों के जैसे परिपूर्ण कल्याण गुण हैं।

अडियेन् दीपिका रामानुज दासी

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