उपदेश रत्तिनमालै – सरल व्याख्या – पासुरम् ६६

। ।श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमत् वरवरमुनये नमः। । उपदेश रत्तिनमालै << पासुरम् ६४ – ६५ पासुरम् ६६ छियासठवाँ पासुरम्। वे अपने हृदय को उत्तर देते हैं, जिसने संभवतः उनसे प्रश्न किया कि क्या कोई ऐसा व्यक्ति है जिसे पिछले पाशुरों में बताई गई अवधारणाओं के उदाहरण के रूप में पृथक किया … Read more

उपदेश रत्तिनमालै – सरल व्याख्या – पासुरम् ६४ – ६५

। ।श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमत् वरवरमुनये नमः। । उपदेश रत्तिनमालै << पासुरम् ६२ – ६३ पासुरम् ६४ चौंसठवां पासुरम्। वे अपने हृदय से कहते हैं कि यद्यपि आचार्य ही परम लाभ हैं, अर्थात उन्हें प्राप्त करना चाहिए और उनके साथ रहकर आनंद लेना चाहिए, किन्तु किसी शिष्य के लिए उनके आचार्य … Read more

उपदेश रत्तिनमालै – सरल व्याख्या – पासुरम् ६२ – ६३

। ।श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमत् वरवरमुनये नमः। । उपदेश रत्तिनमालै << पासुरम् ६०-६१ पासुरम् ६२ बासठवां पासुर। वह दयापूर्वक बताते हैं कि कोई आसानी से परमपद कैसे प्राप्त कर सकता है।  उय्य निनैवु उण्डागिल् उम् गुरुक्कळ् तम्‌ पदत्ते वय्युम् अन्बु तन्नै इन्द मानिलत्तीर् – मॆय् उरैक्केन् पय्यरविल् मायन् परमपदम् उङ्गळुक्काम् कै … Read more

उपदेश रत्तिनमालै – सरल व्याख्या – पासुरम् ६० – ६१

। ।श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमत् वरवरमुनये नमः। । उपदेश रत्तिनमालै << पासुरम् ५७-५९ पासुरम् ६० साठवां पासुरम्। इस पासुरम् से आरंभ करते हुए, वे कृपापूर्वक आचार्य के प्रति समर्पण की व्याख्या करते हैं, जिसे श्रीवचनभूषणम् में प्रमुख अर्थ के रूप में उजागर किया गया है। इस पासुरम् में, वे दयापूर्वक कहते हैं … Read more

नाच्चियार् तिरुमोऴि सरल‌ व्याख्या – सातवां तिरुमोऴि – करुप्पूरम् नाऱुमो

श्रीः श्रीमतेशठकोपाय नमः श्रीमतेरामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः नाच्चियार् तिरुमोऴि << वारणम् आयिरम् जहाँ सीता पिराट्टि को भगवान के अनुभवों के बारे में वहाँ आए हुए हनुमान से पूछकर जानना पड़ा, इसके विपरित, आण्डाळ् (गोदाम्बा) को यह सौभाग्य प्राप्त है कि‌ वह भगवान के अनुभवों के विषय में स्वयं उनके अंतरंग सेवक पाञ्चजन्य शंख से पूछकर … Read more

उपदेश रत्तिनमालै – सरल व्याख्या – पासुरम् ५७-५९

। ।श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमत् वरवरमुनये नमः। । उपदेश रत्तिनमालै << पासुरम् ५५-५६ पासुरम् ५७ सत्तावनवां पासुरम्। श्री वरवरमुनि स्वामी को ऐसे लोगों की दुखद परिस्थिति पर वेदना होती है, जो इस ग्रंथ की महानता को जानते हुए भी इसमें भाग नहीं लेते हैं। देसिगर्पाल् केट्ट सॆऴुम् पॊरुळैच् चिन्दै तन्निल्मासऱवे ऊन्ऱ … Read more

उपदेश रत्तिनमालै  – सरल व्याख्या – पासुरम् ५५ – ५६

। ।श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमत् वरवरमुनये नमः। । उपदेश रत्तिनमालै << पासुरम् ५३ – ५४ पासुरम् ५५ पचपनवां पासुरम्। वे अपने हृदय से कहते हैं कि ऐसा व्यक्ति मिलना दुर्लभ है जिसने श्रीवचनभूषणम् के अर्थ को पूर्णतः समझ लिया हो, और उससे भी अधिक दुर्लभ है ऐसा व्यक्ति से मिलना जो … Read more

उपदेश रत्तिनमालै  – सरल व्याख्या – पासुरम् ५३ – ५४

। ।श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमत् वरवरमुनये नमः। । उपदेश रत्तिनमालै << पासुरम् ५१ – ५२ पासुरम् ५३ तिरेपनवां पासुरम्। इस पासुरम् से लेकर‌ श्रीवरवरमुनि स्वामी (मामुनिगळ्) कृपापूर्वक श्रीवचन भूषणम्  ग्रन्थ का सार और उसकी महिमा बताते हैं, जो पिळ्ळै लोकाचार्य द्वारा दयापूर्वक लिखा गया था और जो आऴ्वारों के दिव्य प्रबंधों … Read more

उपदेश रत्तिनमालै – सरल व्याख्या – पासुरम् ५१ – ५२

। ।श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमत् वरवरमुनये नमः। । उपदेश रत्तिनमालै <<पासुरम् ५० पासुरम् ५१ इक्यावनवां पासुरम्। मामुनि (श्रीवरवरमुनि स्वामी) दयालु होकर समझाते हैं, नम्पिळ्ळै‌ को लोकाचार्य का प्रतिष्ठित दिव्य नाम कैसे मिला। तुन्नु पुगऴ् कंदाडै तोऴप्पर् तम्मुगप्पाल्ऎन्नवुलगारियनो ऎन्ऱु उरैक्क – पिन्नैउलगारियन् ऎन्नुम् पेर् नम्बिळ्ळैक्कोङ्गिविलगामल् निन्ऱदु ऎन्ऱुम् मेल् कन्दाडै तोऴप्पर् एक ऐसे … Read more

उपदेश रत्तिनमालै  – सरल व्याख्या – पासुरम् ५०

। ।श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमत् वरवरमुनये नमः। । उपदेश रत्तिनमालै << पूर्व अनुच्छेद पासुरम् ५० पचासवां पासुरम्। इस प्रकार ईडु भाष्य की महानता को समझाने के बाद, श्रीवरवरमुनि स्वामी श्रीवचनभूषण की महानता का वर्णन करने का निर्णय लेते हैं, जो कि तिरुवाय्मोऴि का वास्तविक अर्थ है। प्रारंभ में बताते हैं कि नम्पिळ्ळै … Read more