श्री:
श्रीमते शठकोपाय नमः
श्रीमते रामानुजाय नमः
श्रीमद्वरवर मुनये नमः
श्लोक ८
काश्मीरकेसरस्तोमकड़ारस्निग्धरोचिषा ।
कौशेयेन समिन्धानं स्कन्धमुलावलम्बिना ॥ ८ ॥
काश्मीरकेसरस्तोमकड़ारस्निग्धरोचिषा – चम चमाती रोशनी के साथ केसरीया और लाल रंग का संयोजन ,
स्कन्धमुलावलम्बिना – बाहों में सजी ,
कौशेयेन – रेशमी वस्त्र से ,
समिन्धानं – अधिक चमकीले दिखाई देता है ।
वरवरमुनी स्वामीजी ऊर्ध्वपुण्ड्र तिलक और रेशमी वस्त्र को धारण किए हुये है इसे पुनः देवराज गुरु इस श्लोक में बता रहे है । यहाँ पर बता रहे है कि रेशमी वस्त्र उन्होने उत्तरीये के रूप में धारण किया है । चारों आश्रमों में (ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, और सन्यास) ब्राह्मण रेशमी वस्त्र को धारण कर सकते हैं । पराशर मुनी कहते है ब्राम्हणों को तिलक, यज्ञोपवीत, कमलाक्षमाला और रेशमी वस्त्रों को धारण करना चाहिये । यहाँ पर जानना आवश्यक है कि उत्तरीय वस्त्र अवैष्णव सन्यासियों के लिये निषेध है, श्रीवैष्णवों के लिये नहीं । इसलिये वरवरमुनी स्वामीजी उत्तरीय वस्त्र को धारण किये है । शाण्डील्य मुनी कहते है उत्तरीय वस्त्र को भगवान की परीक्रमा करते वक्त, भगवान की सेवा करते समय, होम के समय और भगवान आचार्यों की सन्निधि में धारण नहीं करना चाहीये । उत्तरीय वस्त्र लाल रंग में रहने के कारण सन्यासियों के धारण करने योग्य है ।
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