श्री:
श्रीमते शठकोपाय नमः
श्रीमते रामानुजाय नमः
श्रीमद्वरवर मुनये नमः
श्लोक २५
मङ्गलाशासनम् कृत्वा तत्र तत्र यथोचितम् ।
धाम्नस्तस्माद्विनिष्क्रम्य प्रविश्य स्वम् निकेतनम् ॥ २५
शब्दार्थ –
तत्र तत्र – अर्चावतार के विषय मे, श्री गोदा अम्मा जी के शुरु होते हुए परमपदनाथ तक,
मङ्गलाशासनम् – दोशों का निवारण, सद्गुणों की समृद्धि हेतु मङ्गलाशासन करना,
यथोचितम् – उस विषय मे जैसे उचित,
कृत्वा – करने के पश्चात,
तस्मात् धाम्नः – उस सन्निधि से,
विनिष्क्रम्य – बडे भारि मन से छोडने लगे (भीतर आये),
स्वम् निकेतनम् – अपने घर (मट्ट),
प्रविष्य – प्रवेश किये ।
भावार्थ (टिप्पणि) –
श्री वरवरमुनि गोदा अम्माजी और अन्य सन्निधियों का मङ्गलाशासन करने हेतु गये परन्तु पूजा करने नही । इसी कारण इस श्लोक मे मङ्गलाशासन शब्द प्रयोग हुआ है । वरवरमुनि ने विशेषतः श्री एम्पेरुमानार (रामानुजाचार्य) का मङ्गलाशासन किया और रामानुजाचार्य के नाते (इच्छानुसार) अन्यों का भी मङ्गलाशासन किया । इस प्रकार का उत्थान और पतन होता रहता है इसी कारण श्री एरुम्बियप्पा ने “यथोचितम्– जैसा उचित है” शब्द को उपयुक्त समझकर प्रयोग किया । हलांकि शास्त्र संत महपुरुषों के बारे मे कहता है – “अनग्निः अनिकेतः स्यात्” अर्थात संत यानि साधु को कदाचित भी घर को अपने अधिकार मे हमेशा रखना, होम इत्यादि नहि करना चाहिये । परन्तु इस श्लोक मे “स्वम् निकेतनम् प्रविष्य” मायने वह स्थान जिसे स्वयम श्री रङ्गनाथ भगवान ने अपने इच्छानुसार उन्हे दिया जिसे हम सभी मट्ट कहते है उसमे प्रवेश किये । भगवान ने उन्हे आदेश दिया था कि वे श्रीरङ्ग मे हमेशा के लिये रहे अतः इस कारण हम इसे गलती नही समझ सकते और उनके स्वभाव के बारे मे संकोच नही कर सकते है । “विनिष्क्रम्य” शब्द का अर्थ है – मामुनि जी अपने भारी मन के साथ अन्य श्रीवैष्णव के संगत को छोडकर अपने नित्यकर्म (जो कि अनिवार्य है – जैसे तिरुवाराधन, सन्ध्यावन्दन, ग्रंथ कालक्षेप) करने हेतु मन्दिर के भीतर आकर अपने मट्ट चले गए ।
archived in https://divyaprabandham.koyil.org
pramEyam (goal) – https://koyil.org
pramANam (scriptures) – http://granthams.koyil.org/
pramAthA (preceptors) – http://acharyas.koyil.org
srIvaishNava education/kids portal – http://pillai.koyil.org