ज्ञान सारं – पासुर (श्लोक) २६

श्री:
श्रीमते शठकोपाय नम:
श्रीमते रामानुजाय नम:
श्रीमत् वरवरमुनये नम:

ज्ञान सारं

ज्ञान सारं – पासुर (श्लोक) २५                                                          ज्ञान सारं – पासुर (श्लोक) २७

पासुर – २६

ramanuja

तप्पिल गुरू अरूलाल तामरैयाल नायगन तन
ओप्पिल अडिगल नमक्कु उललत्तु वैप्पेन्रु
तेरि इरुप्पार्गल तेसु पोलि वैगुन्दत्तु
एरि इरुप्पार पणिगक्टे एय्न्दु

प्रस्तावना:
भगवान श्रीमन्नारायण के चरण कमल के शरण होने को पूर्णत: समर्पण होने कि पथ को ही शरणागति कहते हैं और यही वह पथ हैं जिसे स्वयं भगवान श्रीमन्नारायण ने ही कहा हैं। तमील कवि तिरुवल्लूवर कहते हैं कि “पोरी वायिल ऐयंधविथ्थान पोयधिर ओझुक्का नेरी”। यहाँ उन शब्दों को समझना चाहिये जैसे कि “ऐयंधविथ्थान आगिरा इरैवनाल सोल्लापत्ता उण्मयान नेरी ओझुक्का नेरी” जिसका अर्थ हैं कि वह भगवान ही हैं जिन्होंने हमें यह दोषरहित पथ बताया हैं। तिरुवल्लूवर अपने और एक पद में जिसकी शुरुवात “पर्रर्रान पर्रिनै” से होती हैं जहाँ वह कहते हैं “इरैवन ओधिया व्ल्ट्टु नेरी”। यहाँ नेरी और कुछ नहीं परन्तु शरणागति (पूर्णत: समर्पण) कि राह हैं। यह भगवान श्रीमन्नारायण के चरण कमलों को पूर्णत: समर्पण का कर्म केवल आचार्य के सहारे से ही किया जाना चाहिये। शरणागति का गहराई से मतलब अपने आचार्य से ही समझा जा सकता हैं। जो ऐसे ही करते हैं और जिसे पूरा भरोसा हो वह भगवान के परमपद धाम में जरूर पहूंचेगा और निरन्तर वहाँ कैंकर्य करते रहेगा।

 

अर्थ:
अरूलाल – एक श्रेष्ठ आशीर्वाद के साथ गुरू – आचार्य जिनके पास हैं
तप्पिल – ज्ञान में थोड़ा भी अधुरापन नहीं और उसी ज्ञान पर व्यवहारीक आचरण तेरि इरुप्पार्गल – जो कठोरता से यह तथ्य में विश्वास रखते हो
ओप्पिल –असमानबल अडिगल – चरण कमलों का तामरैयाल नायगन तन – पिरट्टी के स्वामी, भगवान ही हैं  वैप्पेन्रु – एकत्रीत करना उललत्तु –एक हृदय जो अपने हृदय पर
नमक्कु – जिसको थोड़ा सा भी ज्ञान न हो, ऐसे व्यक्ति एरि – परमपद जाने का सही पथ पर पणिगक्टे – परमपद जाने के बाद का कैंकर्य करना
एय्न्दु इरुप्पार – और उससे भी उचित कार्य वहा परमपद में करना जो की इस तरह दर्शाया गया हैं   तेसु पोलि –प्रकाशमान वैगुन्दत्तु – नित्य तिरुमली जो कहलाई जाती हैं “श्रीवैकुण्ठ” या “परमपद”

स्पष्टीकरण: तप्पिल गुरू अरूलाल: “तप्पिल गुरू ” उन आचार्य को दर्शाते हैं जो कभी भी कुछ गलत नहीं करते हैं। तिरुकुरल के पद से “कर्का अधर्कु थगा निर्का” कि आचार्य पहिले प्राप्त किए ज्ञान की वजह कभी भी कोई गलत कार्य नहीं करते और यही ज्ञान का परिणाम और सच्चाई हैं । तामरैयाल नायगन तन: यह तिरू (पिरट्टी) के स्वामी को संबोधीत करता हैं, जो कोई और नहीं भगवान श्रीमन्नारायण खुद ही हैं। यह पद का अर्थ दो जगह प्रगट होता हैं: (१) “श्रीमन्न” और (२) नारायण। दोनों ही द्वय मन्त्र के उत्तर भाग में हैं। “तामरैयाल नायगन” इस पद में यह तथ्य हैं कि भगवान श्रीमन्नारायण कभी भी अम्माजी से अलग नहीं होते हैं। यह द्वय मन्त्र के “श्रीमन्न” पद में देखा जा सकता हैं। “नायगन तन ” द्वय मन्त्र में श्रीमन्न नारायण पद का मतलब ही “नारायण” पद का अर्थ हैं। यह दोनों एक भक्त को उच्च कोटी पर ले जाने के लिए जरूरी हैं। जब भगवान के भक्त अपने आप को पूर्णत: भगवान श्रीमन्नारायण को समर्पण करते हैं तब वात्सल्य, स्वामित्व, सौशील्य, सौलभ्य यह गुण उस समय भगवान में जरूरी हैं। समर्पण के पश्चात भगवान के गुण जैसे ज्ञान और शक्ति यह दोनों जरूरत हैं और इसके अतिरिक्त प्राप्ति और पूर्ति जैसे गुणों कि भी जरूरत हैं। “नायगन तन ” पद में भगवान के वहीं गुण दर्शाते हैं जो द्वय मन्त्र में “नारायण” पद में हैं।

ओप्पिल अडिगल:  यह भगवान श्रीमन्नारायण के “अनोखे चरण कमलों” को दर्शाता हैं जो द्वय मन्त्र में “चरणौ” शब्द के अर्थ को बताता हैं। इसका कारण यह हैं कि भगवान का चरण कमल को हमेशा “अनोखा” ऐसा वर्णन किया हैं क्योंकि भगवान में किसी कि भी सहायता लिए बिना अपने किसी भी भक्तों कि रक्षा करने कि योग्यता हैं । नमक्कु उललत्तु वैप्पेन्रु: यह हमारे जैसे भक्तों को दर्शाता हैं। भगवान कि शरण कि कृपा को ग्रहण करने के सिवाय हमारे पास और कोई भी दूसरा उपाय नहीं हैं। संसार की पूर्णत: सच्चाई के अनुसार भगवान के सिवाय और कोई भी राह नहीं हैं। अत: “हम” यानि हम सब जन जिन्होंने यह सच्चा विश्वास जान लिया हैं और यह सब जन को ही “नमक्कु” पद से दर्शाया गया हैं। जो भक्त अपने हृदय में भगवान के चरण कमलों को रखते हैं वह इसे “संपत्ति” / बचत खाता समझते हैं। इसलिये द्वय मन्त्र में यह दो पद “चरणौ” और “प्रपद्ये” इसी तरह दर्शाते हैं। इसका कारण इस प्रकार हैं: अगर किसी व्यक्ति के पास संपत्ति हैं तो वह कुछ भी अपने पसन्द का कर सकता हैं। उसी तरह अगर किसी व्यक्ति के हृदय में भगवान श्रीमन्नारायण के चरण कमल विराजते हैं तो वह पूर्णत: कुछ भी कर सकता हैं क्योंकि वह हमेशा भगवान के बारे में सोचता हैं कि “सिर्फ उनके चरण कमल हीं मेरे रक्षक हैं”। अत: सम्पत्ति के साथ भगवान के चरण कमलों कि तुलना करना बहुत ही सुन्दर हैं। और जब भी हम यह कहते हैं कि उनके चरण कमलों को पकड़ लो तो वह मानसीक कार्य हैं ना कि शारीरिक। इसे “मानसा स्व्ल्कारम” कहते हैं इसलिये यह मानसीक कार्य हैं ना कि शारीरिक। तेरि इरुप्पार्गल: जो एक भगवान के चरण कमल हीं उनके हृदय में निवास करते हैं उनकी यह सोच पर कभी भी डगमगाते नहीं हैं । यह एक बहुत मनभावन हैं कि भगवान के चरण कमल के ही शरण होना हैं और हृदय में उनकी आराधना करना। हालकि उनके विश्वास का ना डगमगाना यह एक आसान कार्य नहीं हैं। अत: “तेरि इरुप्पार्गल ” उन लोगों को शामील करता हैं जो इसमे निरन्तर विश्वास करते हैं। वह व्यक्ति जिसने शरणागति कि हैं उसके लिये यह विश्वास बहुत प्रभावशाली हैं। अगर इस विश्वास में थोड़ी सी भी कमी हैं तो वह परमपद नहीं जा सकेगा। वह व्यक्ति जिसको यह थोड़ा सा विश्वास हो, उसके लिये यह थोड़ा सा विश्वास हासिल करना आगे कि पंक्तियों में समझाया गया हैं। तेसु पोलि वैगुन्दत्तु: वह अपने अंतिम उद्देश तक पहुँच जायेंगे जो “परमपद” हैं जिसे “अझिविल व्ल्डु” ऐसा समझाया गया हैं। परमपद में कोई भी उच्च आनन्द का अनुभव कर सकता हैं और भगवान श्रीमन्नारायण कि हमेशा सेवा कैंकर्य कर सकता हैं।

एरि इरुप्पार पणिगक्टे एय्न्दु: यह भक्त जन योग्य हैं और परमपद में कैंकर्य करने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं। “पणिगल” भगवान श्रीमन्नारायण के कैंकर्य करने को दर्शाता हैं। “एयन्धु इरुप्पार” भगवान श्रीमन्नारायण का कैंकर्य करने के लिए हमेशा तत्पर / योग्य रहता हैं। अगर हम “पणि” का दूसरा अर्थ लेते हैं तो इसका एक और अर्थ भी हैं । “पणि” “आदिशेष” को भी दर्शाता हैं और इधर उसका अर्थ हैं कि उन भक्तों को आदिशेष के योग्यता के साथ तुलना करते हैं। इसका अर्थ हैं कि जैसे आदिशेष भगवान श्रीमन्नारायण का पूर्ण कैंकर्य करते हैं वैसे ही भक्त जन भी वह कैंकर्य कर सकते हैं। आदिशेष करने वाले कैंकर्य को बहुत सुन्दरता से यहाँ समझाया गया हैं “सेंराल कुदयाम, इरुन्धाल सिंगासनमाम, निन्राल मरवदियाम, नील कदलूल एनृम पुनैयां मणि विलक्काम, पूम्पट्टाम पुलगुम अणैयां तिरुमार्क्कु अरवु”।

हिन्दी अनुवादक – केशव रामानुज दासन्

Source: https://divyaprabandham.koyil.org/index.php/2015/02/gyana-saram-26-thappil-guru-arulal/
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