श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमद्वरवरमुनये नम:
उपक्षेप
अपने अनेक जन्म मरणो के कारण पर मणवाळ मामुनि विचार करते हैं और इस निर्णय पर पहुँचते हैं कि उनके अनेक जन्मों और उससे सम्बंधित पीड़ाओं का एक मात्र कारण, श्री रामानुज के चरण कमलों में शरणागति न करना ही है। श्री रामानुज के दिव्य पदों से अलग रहना ही सारे दुखों की कारण है। इस स्थिति को सही करने केलिए श्री रामानुज के चरणों में ही पड़े रहने का मणवाळ मामुनि निश्चित करते हैं।
पासुरम १०
पू मगळ कोन तेन्नरनगर पूँगळर्कुप् पादुगमाय
ताम मगिळुम सेल्वच चटकोपर तेमलर्त्ताट्के
एय्न्दु इनिय पादुगमाम एन्दै इरामानुसनै
वाय्न्दु एनदु नेंजमे वाळ
शब्दार्थ
एनदु – हे ! मेरे
नेंजमे – ह्रदय ( हमेशा आज्ञा पालने वाला )
वाळ – अब से कृपया जियो ( के आश्रय में )
वाय्न्दु – के चरण कमलों में शरणागति कर
इरामानुसनै – श्री रामानुज को
एन्दै – जो मेरे पिता और मेरे आत्मा के सहारा हैं
एय्न्दु – श्री रामानुज, जो धारण करते हैं
इनिय पादुगमाम – पादुका के पात्र
ताट्के – के दिव्य पद
सेल्वच – सात्विक गुणों से भरपूर
चटकोपर – शटकोपा नाम कहे जाने वाले
तेमलर – जिनके चरण कमलों में पुष्पो से मधु बहती है
पादुगमाय – (ऐसे शटकोपन ) पादुका माने जाते हैं
ताम मगिळुम – के पादुका होने से सुखी हैं
पूँकळर्कु – नित्यानंद देने वाले चरण
तेन्नरनगर – श्रीरंगनाथ जो हैं
कोन – (के)दिव्य पुरुष/पति हैं
पू मगळ – पेरिय पिराट्टियार (श्री महालक्ष्मि), जो पुष्प के सुगंद समान हैं
सरल अर्थ
इस पासुरम में मणवाळ मामुनि अपने ह्रदय को श्री रामानुज के चरण कमलों में शरणागति करने की उपदेश देते हैं। इसके पश्चात श्री रामानुज के चरणों में ही हमेशा रहने और उन्से अलग न होने कि आज्ञा भी देते हैं। और इस विवरण से समझाते हैं कि पेरिय पिराट्टियार के दिव्य पति श्री रंगनाथ के पादुका शटकोप (नम्माळ्वार ) के पादुका श्री रामानुज हैं।
स्पष्टीकरण
पेरिय पिराट्टियार पुष्प के सुगंध समान हैं। “पू मन्नु मादु पोरुन्दिय मार्बन” (इरामानुस नूट्रन्दादि १ ) के अनुसार श्री रंगनाथ ऐसे पेरिय पिराट्टियार को अपने ह्रदय में धारण करते हैं। (तिरुवाय्मोळि ६.१०.४ )के “पूवार कळल्गळुक्कु” के अनुसार शटकोपर श्री रंगनाथ के पादुका के रूप में नित्यानंद में हैं। (तिरुवाय्मोळि ६.१०.११ ) “अडिकीळ अमर्न्दु पुगुन्दु”, में स्वयं शटकोपर कहते हैं कि वे श्री रंगनाथ के पादुका के प्रतिनिधि हैं। (तिरुवाय्मोळि ७. २. ११ ) “मुगिल वण्णन अडियै अड़ैन्दु” और (तिरुवाय्मोळि १०. ८. १० ) “उट्रेन उगन्दु पणि सैदु” से दृश्य हैं कि, पादुका के पात्र निभाने से वे अत्यंत संतुष्ट हैं। अब ऐसे शटकोपर से श्री रामानुज के संबंध कि विवरण किया जाता है। मधु बहने वाली पुष्पो से सुगंदित हैं शटकोपर के चरण कमल। “मेविनेन अवन पोन्नडि मेय्मैये”, (कण्णिनुन चिरूत ताम्बु २ ) के विवरण के अनुसार श्री रामानुज अपना अभिप्राय प्रकट करते हैं कि शटकोपर के चरण कमलों पर रहना ही उनको शोभा देता हैं। अतः श्री रामानुज शटकोपर के पादुका माने जाते हैं। अंत में मणवाळ मामुनि श्री रामानुज से अपने संबंध स्थापित करते हैं। वे श्री रामानुज को ही अपने आत्मा के सच्चे सहारा मानते हैं। एम्बेरुमानार नाम से भी पहचाने जाने वाले श्री रामानुज के चरण कमलों में शरणागति कर वही जीने कि उपदेश अपने ह्रदय को देते हैं। (इरामानुस नूट्रन्दादि १ )” इरामानुसन चरणारविन्दम नाम मन्नि वाळ नेञ्जे” में तिरुवरंगतमुदनार अपने ह्रदय को उपदेश देते हैं। इसी प्रकार मणवाळ मामुनि अपने ह्रदय को उपदेश देते हैं। “हे !(हमेशा मेरी आज्ञा मानने वाली ) ह्रदय ! श्री रामानुज के चरण कमलों में रहना तेरा स्वरूप है। कोई प्रतिफल के आशा के बिना, उनके चरण कमलों में रहो।” श्री रामानुज के प्रति उपस्थित अत्यंत प्रेम के कारण मणवाळ मामुनि यतीन्द्र प्रवणर कहे जाते हैं। स्तोत्र रत्न के “धनं मधीयं तव पाद पंकजं” के अनुसार सर्वश्रेष्ठ धन भगवान के चरण कमल है। यह परिपूर्ण रूप से मिलने के कारण ही शटकोपर “सेल्व चटकोपर” वचन से वर्णन किये गए।
अडियेन प्रीती रामानुज दासि
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