आर्ति प्रबंधं – ५१

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम:

आर्ति प्रबंधं

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उपक्षेप

एम्पेरुमानार विचार करतें हैं, “ तुम्हें अन्य तुच्छ विषयों के बारे में बात करने की क्या आवश्यकता हैं? इस्से पूर्व तुम्हारी स्थिति क्या थी?”. इस्के उत्तर में मामुनि कहतें हैं, “ मैं भी उन्हीं लोगों के तरह अनादि कालों से अपना समय व्यर्थ करता रहा और उसके कारण जो भी मुझे नुक्सान हुआ, उसका मुझे पछतावा नहीं हैं।  इस स्थिति में , आप के ही कृपा के कारण मुझे अपने नुक्सान का एह्सास हुआ है,” यह कहकर मामुनि अपने लाभ के बारे में बात करतें हैं।

पासुरम ५१

एंरुळन ईसन उयिरुम अन्रे उंडु इक्कालम एललाम

इन्रळवाग पळुदे कळिंद इरुविनैयाल

एड्रु इळविंरी इरुक्कुम एन्नेंजम इरवु पगल

निंरु तविक्कुम ऐतिरासा नी अरुळ सेयद पिन्ने

शब्दार्थ :  

एंरुळन ईसन – “ नान उन्नै अंरि इलेन कंडाय नारणने नी एन्नै अंरी इलै”(नानमुगन तिरुवंदादि ७) के अनुसार परमात्मा श्रीमन नारायण और जीवात्माओं के मध्य उपस्थित संबंध नित्य है और कभी किसी से टूटा नहीं जा सकता है।  इस्का अर्थ है, सर्वोत्तम नियंता नित्य हैं। उसी तरह ,

उयिरुम – नियंता श्रीमन नारायणन से नियंत्रित जीवात्मा

अन्रे उंडु – भी अनंत है

इक्कालम एल्लाम – इस सारा समय  

इन्ड्रळवाग – अब तक

इरुविनैयाल  – मेरे शक्तिशाली कर्मा के कारण ( अच्छे और बुरे )

पळुदे कळिंद एन्ड्रु  – इस समय को मैं अत्यंत व्यर्थ समझता हूँ

इळविंरी इरुक्कुम  – और इससे भी बुरा , इस नुक्सान केलिए मुझे कभी अफ़सोस भी नहीं हुआ हैं

एतिरासा – ( फ़िर भी)हे  एम्पेरुमानार!

नी अरुळ सेयद पिन्ने  – मेरे ऊपर आपके कृपा बरसाने के पश्चात

एन्नेंजम – मेरा हृदय

निंड्रु – धीरे से

तविक्कुम – पचताना शुरू किया

इरवु पगल – दिन और रात

सरल अनुवाद

इस पासुरम में मामुनि श्री रामानुज के आशीर्वाद कि गुणगान करतें हैं, जिसके कारण ही वे (मामुनि) अब तक व्यर्थ हुए समय केलिए पछतातें हैं।  अनादि कालों से अब तक किये गए समय व्यर्थ का ,अब श्री रामानुज के आशीर्वाद के पश्चात मामुनि बहुत पछताते हैं।

स्पष्टीकरण

मामुनि कहतें हैं, “ तिरुमळिसै आळवार के (नानमुगन तिरुवंदादि ७) शब्दों में : नान उन्नै अंरि इलेन कंडाय नारणने नी एन्नै अंरि इलै”, परमात्मा श्रीमन नारायण और जीवात्माओं के मध्य जो बंधन है वह नित्य है और कभी किसी से टूट नहीं सकता है। इसका अर्थ है सर्वोत्तम नियंता श्रीमन नारायण नित्य हैं।  और इस से पता चलता है कि, नियंत्रित जीवात्मायें भी नित्य हैं। और इससे पता चलता है कि इन्का सृष्टि का कोई दिनांक नहीं, श्रीमन नारायण और सारे जीवात्मायें हमेशा केलिए हैं। परंतु अत्यंत कृपा से किये गए आपके (एम्पेरुमानार) आशीर्वाद के भाग्य के पहले मैं अपना सारा वक्त मेरे कर्मों के फलों के अनुभव में व्यर्थ करता था। और इस व्यर्थ हुए समय का मुझे अफ़सोस भी न था।  लेकिन आपके कृपा से मैं अब अपने नुक्सान के बारे में ही दिन और रात सोचता हूँ और पछताता हूँ। आपके अत्यंत कृपा की जय हो।

अडियेन प्रीती रामानुज दासी

आधार : http://divyaprabandham.koyil.org/index.php/2017/03/arththi-prabandham-51/

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