आर्ति प्रबंधं – १४

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम:

आर्ति प्रबंधं

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उपक्षेप

यह पासुरम १२ वे पासुरम से जुड़ा हुआ है। पासुरम १२ एक विषयांतकरण था (प्रासंगिकम )। १२वे पासुरम में श्री रामानुज मणवाळ मामुनि से पूछते हैं, “हे ! मणवाळ मामुनि ! आपके आचार्य के आदेश पर आप मेरे चरणों में शरणागति किये। आपका कहना है कि यह शरणागति मोक्ष का मार्ग है।  क्या यह शरणागति काफी है ?इस शरणागति से अन्यत्र कोई गुण की आवश्यकता नहीं है ?” मणवाळ मामुनि के कल्पना में श्री रामानुज के मन में यही प्रश्न है।  और इसी का उत्तर इस पासुरम में मामुनि देते हैं। “हे ! श्री रामानुजा ! आवश्यक गुणों के उपस्थिति में आपके चरणों में गिरने की कारण क्या हो सकति हैं ? गुणों के अनुपस्थिति में भी आशीर्वाद करने वाले आप हैं। अतः अडियेन के जैसे शरणागतों के रक्षक आपसे अन्य और कोई नहीं हैं।”

पासुरम

अदिगारमुंडेल अरंगर इरंगारो
अदिगारम इल्लादार्कन्रो – एतिरासा
नी इरंगा वेण्डुवदु नीयुम अदिगारिगलुक्के
इरंगिल एन सेय्वोम याम

शब्दार्थ

अदिगारमुंडेल – अगर एक व्यक्ति परिपूर्ण ज्ञान और अनुष्ठान में निपुण है
अरंगर – पेरिय पेरुमाळ (श्री रंगनाथ )
इरंगारो – क्या वें उस व्यक्ति के रक्षण न करेंगें ?
एतिरासा – पर हे ! ऐतरासा ! आप
अदिगारम इल्लादार्कन्रो – पूर्वलिखित गुणों में से कोई भी जिन्के के पास नहीं है उनके रक्षण केलिए आएँगे, क्या यह सत्य नहीं है ?
नी इरंग वेण्डुवदु – हमारी प्रार्थना है कि आप ऐसे जनों (अडियेन को भी लेकर ) की रक्षा केलिए नीचे पधारें
नीयुम अदिगारिगलुक्के इरंगिल – आप भी , जो आश्रितों के एकमात्र आश्रय हैं, अगर  गुणों से भरपूर जनों के ही रक्षा करें तो
एन  सेय्वोम याम – तब हम क्या करें ?

सरल अनुवाद

इस पासुरम में मणवाळ मामुनि श्री रामानुज से प्रकट करते हैं कि, श्री रामानुज के चरण कमलों से अन्यत्र कोई उपाय नहीं हैं। उपाय हीन किसी भी व्यक्ति की श्री रामानुज एकमात्र रक्षक हैं। अपने शरणागतों में किसी गुण की श्री रामानुज अपेक्षा नहीं रखते। पेरिय पेरुमाळ ही ज्ञान और अनुष्ठान की अपेक्षा रखते हैं। मणवाळ मामुनि अंत में बताते हैं कि ,अगर श्री रामानुज गुणों की अपेक्षा करेंगें तो अपने जैसे लोगों की कोई उपाय नहीं हैं।

 

स्पष्टीकरण

श्री रामानुज से मणवाळ मामुनि कहते हैं , “हे श्री रामानुजा ! पेरिय पेरुमाळ को देखिये ! (तिरुविरुत्तम २८ )”पुण्णन्तुळामे पोरुनीर तिरुवरंगा अरुलाई” में  नम्माळ्वार के विनती के अनुसार पेरिय पेरुमाळ उनको आशीर्वाद करते हैं।  पेरिय पेरुमाळ के आशीर्वाद के कारण मिले मोक्ष पाने के पश्चात नम्माळ्वार कहते हैं, “अरुळ सूड़ी उय्न्दवन” (तिरुवाय्मोळि ७.२. ११ ) गुणवानों को ही पेरिय पेरुमाळ आशीर्वाद देते हैं।  हे यतियों के नेता ! हमें देखियें। हम जैसों की कोई भी गुण या योग्यता नहीं है। हम जैसों के आप एकमात्र आश्रय हैं।  किंतु, अगर आप भी गुणों से भरपूर योगयों को ही रक्षा करेंगें तो हम जैसे लोग, आपके कृपा के पात्र बनने केलिए क्या योग्यता के प्रदर्शन कर सकतें हैं ? हम कभी मुक्ति नहीं पा सकेंगें।

अडियेन प्रीती रामानुज दासी

आधार :  http://divyaprabandham.koyil.org/index.php/2016/07/arththi-prabandham-14/

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