आर्ति प्रबंधं – ७

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम:

आर्ति प्रबंधं

<< पासुर ६

 

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उपक्षेप

मणवाळ मामुनि की कल्पना में पिछले पासुरम के अनुबंध में, श्री रामानुज उनसे प्रश्न करते हैं। मणवाळ मामुनि, पूर्व पासुरम में शीघ्र अपने शरीर की नाश कर, श्री रामानुज के चरण कमलों में स्वीकरित करने की प्रार्थना करते हैं। इसकी उत्तर देते हुए रामानुज प्रश्न करते हैं , “आपके अवगुणों पर विचार करने कि या आपको स्वीकार करने की मेरी योग्यता क्या है ? आपके बताये गए इन कार्यो  की आपको संज्ञाता नहीं थी ? स्वयं आपके शरीर नाश कर आप खुद यह अच्छाई नहीं कर सकते?” श्री रामानुज के इस प्रश्न की उत्तर ही मणवाळ मामुनि की यह पासुरम है। वे बताते हैं कि अगर एक शिशु खुद अपने कार्य कर सकता है, अपना पालन कर सकता है , तो अड़ियेन( मैं) आपका नित्य वत्स, भी अपने कार्य खुद कर सकता हूँ।  जैसे एक शिशु को अपने पालन की ज्ञान नहीं हैं , वैसे ही अड़ियेन को भी ज्ञान नहीं हैं।  मेरे माता के रूप में आपको को ही यह काम करना हैं।

पासुर ७

अन्नै कुड़िनीर अरुन्दि मुलयुण कुळवि
तन्नुडय नोयैत तविरालो ? – एन्ने
एनक्का एतिरासा एल्ला नी सैदाल
उनक्कु अदु ताळ्वो उरै

शब्दार्थ

अन्नै – अपने पुत्र के प्रति  माता की अद्वितीय वात्सल्य (दोष को गुण समझना )
कुड़िनीर अरुन्दि – इससे पहले लिए औषध  पर असर न हो इस प्रकार जल पीती है (अपने शिशु के बीमार पड़ने पर )
तविरालो? – क्या चिकित्सा नहीं करेगी
तन्नुडय मुलयुण कुळवि – अपने स्तनपान पीने वाली बच्चे की
नोयै – बीमारी को ?
एतिरासा – हे ! यतिराजा !
एनक्का – वात्सल्य गुण से चित्रित आप मेरे माता हैं
एल्ला नी सैदाल  – आपके विचार में मेरे रक्षण के हेतु किये जाने वाले कार्य अगर आप मेरे निमित्त करे
अदु – क्या वह
ताळ्वो – अधिक शोभा न देगी
उनक्कु – आपकी बढ़ती कान्ति को ?
उरै – कृपया स्पष्ट कीजिये
एन्ने – क्या आश्चर्य ! (कि आप जो सर्वज्ञ हैं, यह सन्देश मुझे दिए )

सरल अनुवाद

मणवाळ मामुनि एक माता की उदाहरण देते हैं जो अपने बच्चे कि बिमारी की, समय पर औषद एवं पानी लेकर चिकित्सा करती हैं।  माँ की दूध पीते बच्चे को स्वरक्षण की समझ नहीं हैं।  बच्चे के निमित्त माता ही सर्वत्र कर बच्चे की चिकित्सा करती हैं।  मणवाळ मामुनि कहते हैं कि इसी प्रकार श्री रामानुज माता हैं और मामुनि के निमित्त सर्वत्र कर उनके रोग की चिकित्सा करने से क्या उनकी (श्री रामानुज की ) शोभा कम होगी ?

स्पष्टीकरण

मणवाळ मामुनि एक उदाहरण देते हैं। एक स्तन दूध पीने वाले बच्चे की माता है।  ऐसा  बच्चा अपने माता पर पूर्णता से निर्बर है। ऐसे शिशु के बीमार पड़ने पर क्या किया जाए ? बीमारी को घटाने के लिए माता जो भी कर सकती हैं करती हैं। इस समय पर सही मात्रा पानी पीना भी औषध के सामान हैं और वह भी इस प्रकार लेना चाहिए जैसे इससे पहले लिए औषध पर बुरा प्रभाव न डाले। इस बीमारी  के लिए माता खुद को अपराधी मानेगी क्योंकि बच्चे की देख-बाल करना शुरू से माता का ही कर्तव्य हैं। तो बच्चे के निमित्त उसके स्वास्थ्य की पालन  माता ही करती हैं।  मणवाळ मामुनि कहते हैं कि इस प्रकार अनंत  वात्सल्य के पात्र श्री रामानुज ही उनके माता हैं। श्री रामानुज से मणवाळ मामुनि प्रश्न करते हैं कि , “हे ! यतीराजा ! मेरे निमित्त मेरे कर्तव्यों को निभाने से आपको कलंक नहीं आएगी, बल्कि आपकी शोभा अधिक होगी। यह संदेश मुझसे बेहतर आपके द्वारा ही इस संसार में पहुँचना चाहिए, आप ही सर्वज्ञ हैं।”

मणवाळ मामुनि इसीलिए यह कहते है क्योंकि यह संदेश हमारे सांप्रदायिक ग्रंथों में भी सम्पूर्णता से प्रकटित  हैं।   “आचार्य अभिमान” वह है जब आचार्य अपने प्रेम से शिष्य के कल्याण हेतु कार्य करते हैं।  आचार्य शिष्य के निर्बलता को समझते हैं, शिष्य के अनुष्ठानों को निभाने की असमर्थता भी जानते हैं। श्रीमन नारायण के दिव्य मुख मंडल में, अपने संपत्ति (शिष्य की जीवात्मा ) मिलने पर प्रकटित प्रसन्नता भी आचार्य समझते है।  अतः इन दोनों (शिष्य और श्रीमन नारायण ) को विचार कर, शिष्य के निमित्त सर्व अनुष्ठानों को निभाकर श्रीमन नारायण के दिव्य मुख मंडल में संतोष की कांति लाते हैं।  पानी और औषध पीकर शिशु को स्वस्थ बनाने वाली माता के सामान हैं आचार्य के कार्य।  शिष्यों से अत्यंत कृपा प्रकट करने वाले आचार्य “महाभागवत” कहलाते हैं। ऐसे आचार्यो के महानता समझकर उनके चरण कमलों में आश्रय लेनी चाहिए।  माता पर निर्भर शिशु के जैसे, इस आचार्य पर सम्पूर्ण निर्भर रहना चाहिए।  इसकी अनेक उदाहरणों में से एक है , “वल्ल परिसु वरुविप्पारेल” (नाचियार तिरुमोळि १०.१० ) .  

अडियेन प्रीती रामानुज दासी

आधार :  http://divyaprabandham.koyil.org/index.php/2016/06/arththi-prabandham-7/

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