उपदेश रत्तिनमालै  – सरल व्याख्या – पासुरम् ५५ – ५६

। ।श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमत् वरवरमुनये नमः। ।

उपदेश रत्तिनमालै

<< पासुरम् ५३ – ५४

पासुरम् ५५

पचपनवां पासुरम्। वे अपने हृदय से कहते हैं कि ऐसा व्यक्ति मिलना दुर्लभ है जिसने श्रीवचनभूषणम् के अर्थ को पूर्णतः समझ लिया हो, और उससे भी अधिक दुर्लभ है ऐसा व्यक्ति से मिलना जो इसके अर्थानुसार जीवन यापन कर रहा हो। 

आर् वचन बूडणत्तिन् आऴ् पॊरुळॆल्लाम् अऱिवार्
आर् अदु सॊल् नेरिल् अनुट्टिप्पार् – ओर् ऒरुवर्
उण्डागिल् अत्तनै काण् उळ्ळमे ऎलार्क्कुम्
अण्डाददन्ऱो अदु

ऐसे बहुत कम लोग होंगे जो इस ग्रंथ के गूढ़ अर्थों को समझते होंगे अन्यथा अधिकतर लोग इसके अर्थ को ऊपर-ऊपर से ही समझते हैं। भले ही कुछ लोग इसके अर्थ समझते हों, किंतु उनमें भी कुछ लोग ही ऐसे होंगे जो उन कार्यों से विरक्त होंगे जिन्हें शास्त्रों ने प्रतिबंधित किया है, जो अपराध करने वालों के प्रति दया दिखाते हैं और जो आचार्यों के दिव्य चरणों को अपना सब कुछ मानकर जीवन जीते हैं। 

पासुरम् ५६

छप्पनवां पासुरम्। इसमें वे उन लोगों को श्रीवचनभूषणम् के दिव्य अर्थों का पालन करने का निर्देश देते हैं, जिनमें सत्वगुण (विशुद्ध रूप से अच्छे गुण) है। 

उय्य निनैवु उडयीर् उङ्गळुक्कुच् चॊल्लुगिन्ऱेन्
वय्य गुरु मुन्नम् वाय् मॊऴिन्द – सॆय्य कलैयाम्
वचन बूडणत्तिन् आऴ् पॊरुळैक् कट्रु अदनुक्कु
आम् निलैयिल् निल्लुम् अऱिन्दु 

हे उत्थान की इच्छा रखनेवालों! मैं तुम्हें ऐसा बताऊँगा जिससे तुम अपनी इच्छा पूरी कर सको। श्रीवचनभूषणम् का गहरा अर्थ जानें, जो यह है कि आचार्य के स्नेह का प्राप्त करना और उसमें दृढ़ता से स्थिर रहना। इसे पिळ्ळै लोकाचार्य द्वारा दयापूर्वक दर्शाया गया है उनके ग्रन्थ में, और यह ग्रन्थ इस बात को उन‌ लोगों को दिखाता है जो सत्यता के खरे अर्थ को खोजते हैं।

अडियेन् दीपिका रामानुज दासी

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