। ।श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमत् वरवरमुनये नमः। ।
पासुर १०
क्योंकि रोहिणी नक्षत्र कार्तिक नक्षत्र के बाद आता है, इसलिए मामुनिगळ् संसार के लोगों को तिरुपाण् आऴ्वार् की महानता का निर्देश देते हैं, जो कार्तिक महीने के रोहिणी नक्षत्र में अवतीर्ण हुए। रोहिणी एक नक्षत्र है जिसमें भगवान कान्हा के रूप में अवतरित हुए। यह वह नक्षत्र है जिसमें आऴ्वारों के बीच तिरुपाण् आऴ्वार् का अवतरण हुआ, और आचार्यों के मध्य तिरुक्कोष्टियूर् नम्बि (गोष्ठीपूर्ण स्वामी) का अवतरण हुआ। इसलिए इस नक्षत्र को तीन महानताओं के रूप में मनाया जाता है।
कार्तिगैयिल् रोगिणिनाळ् काण्मिन् इन्ऱु कासिनियीर्
वाय्त्त पुगऴ् पाणर् वन्दुदिप्पाल् – आत्तियर्गळ्
अन्बुडने तान् अमलनादिपिरान् कट्रदऱ्-पिन्
नङ्गुडने कॊण्डाडुम् नाळ्
हे संसार के लोग! देखिए, आज कार्तिक महीने में रोहिणी का शुभदिन है। यह वह दिन है जब तिरुपाण् आऴ्वार् ने अपनी महानता प्रकट की थी, अतः जो लोग वेदों का सम्मान करते हैं, उन्होंने तिरुपाण् आऴ्वार् द्वारा रचित प्रबंध अमलनादिपिरान् को सीखने के बाद यह अनुभव किया कि वेद का सार सदा पश्यन्ती (अर्थात भगवान श्रीमन्नारायण को ही सदैव देखते रहना) इस बात को बहुत ही सुंदर ढंग से ये दस पासुर समझाते हैं। ऐसे लोग इस दिन को बहुत मनाते हैं।
पासुर ११
ग्यारहवां पासुर। तमिऴ् के मार्गऴि (मार्गशीर्ष) महीने में केट्टै (ज्येष्ठ) नक्षत्र में तोण्डरडिप्पोडि आऴ्वार् (भक्ताङ्घ्रिरेणु स्वामी) ने अवतार लिया। वेदों के तात्पर्यों को जानने वाले तोण्डरडिपोडियाऴ्वार् की महानता को वेद के अर्थों में निपुण लोग हर्षोल्लास से मनाने की बात, जग के लोगों को मामुणिगळ् बता रहे हैं। इस महीने की विशेषता यह है कि भगवान ने श्री गीता में कहा है कि वे बारह महीनों में मार्गऴि का महीना हैं। इसी महीने में आण्डाळ् (गोदा देवी) ने तिरुप्पावै को दयापूर्वक गाया था। मार्गऴि में केट्टै नक्षत्र की एक और प्रर्तिष्ठा है। यह वह नक्षत्र है जिसमें जगद्गुरु (पूरी संसार के शिक्षक) रामानुजाचार्य के आचार्य पेरिय नम्बि का अवतार हुआ।
मन्निय सीर् मार्गऴियिल् केट्टै इन्ऱु मानिलत्तीर्
ऎन्निदन्नुक्कु एट्रम् ऎनिल् उरैक्केन् – तुन्नु पुगऴ्
मामऱैयोन् तॊण्डरडिप्पोडि आऴ्वार् पिऱप्पाल्
नान्मऱैयोर् कॊण्डाडुम् नाळ्
हे संसार के लोगों! श्रीवैष्णव महीना माने जाने वाले मार्गऴि महीने में केट्टै नक्षत्र की महानता आपको बताता हूँ। तोण्डरडिप्पोडि आऴ्वार्, जो जानते थे कि वेद का मूल अर्थ कैंङ्कर्यम् (सेवा) है और उस कैंङ्कर्य में स्वयं को संलग्न करके स्वयं को भगवान के अनुयायियों की सेवा में भी लगाया, उनके जन्म रामानुजाचार्य (ऐम्पेरुमानार) जैसे वेदों के विशेषज्ञों द्वारा आज का दिन मनाया जाता है।
अडियेन् दीपिका रामानुज दासी
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