श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमद्वरवरमुनये नम:
उपक्षेप
पिछले पासुरम में मामुनि “इन्रळवुम इल्लाद अधिकारं” वचन का प्रयोग किए। पासुरम में वे इस वचन कि विश्लेषण , तर्क और कारण विवरण के संग करतें हैं।
पासुरम ३८
अंजिल अरियादार अयबदिलुम ताम अरियार
एन्सोल एनक्को ऐतिरासा! – नेंजम
उन ताल ओळींदवट्रये उगक्क इनृम
अनुतापम अट्रू इरुक्कैयाल
शब्दार्थ
ऐतिरासा! – एम्पेरुमानारे
नेंजम – ह्रदय जो नीच विषयों में मग्न है
उगक्क – तरसता है
ओळींदवट्रये – उन विषयों केलिए जो हैं सीमा पार
उन – आप्के, जो हैं हमारे नित्य स्वामि तथा लक्ष्य और
ताळ – आप्के चरण कमलों के, जो असीमित आनंद कि मूल हैं
इनृम – अब भी
इरुक्कैयाल – मै हूँ
अट्रू – बिना कोई
अनुतापम – नीच विषयों के मोह में घिरने कि पश्चात्ताप के बिना
एन्सोल – प्रसिद्द कहावत जो कहता है कि
अरियादार – जो अन्जान हैं
अंजिल – पाँच साल के अम्र में , जब मनुष्यों में अक्ल वृद्धि होती है
अयबदिलुम – पछास साल के उम्र में भी
ताम अरियार – नहीं समझेँगे
एनक्को – यह कहावत मेरे लिए ही जन्मा क्या ?
सरल अनुवाद
इस पासुरम में मामुनि एक प्रसिद्द कहावत कि उद्धरण देतें हैं जो है, “ जो व्यक्ति पाँच साल के उम्र में न सीख पाता है, वह पचास साल के उम्र में भी न सीख पायेगा। आगे कहतें हैं कि उन्का मन नीच साँसारिक विषयों में मग्न है और इस बात की पश्चात्ताप भी न करता। सँसार के अंधकार और अज्ञान से रक्षा माँग कर वे श्री रामानुज के चरण कमलों में शरणागति करतें हैं।
स्पष्टीकरण
मामुनि कहते हैं, हे यतियों के नेता ! मेरा मन (तिरुवाय्मोळि २.७.८) के “तीमणम” वचनानुसार, नीच साँसारिक साँसारिक विषयों में मग्न है और (तिरुविरुत्तम ९५) के “यादानुम पट्री नीँगुम” वचनानुसार, सदा इन्मे उलझीं है। आपके चरण कमलों पर ही धारणा बढ़ाने के बजाय यह मन अन्य नीच सुखों के ही पीछे है। इन अल्प सुखों को ही लक्ष्य समझ इन्हीं के पीछे जाती है और इस व्यवहार की पश्चात्ताप तक नहीं करती है। “तस्मात् बाल्ये विवेकात्मा” वचनानुसार यह माना जाता है कि ,पाँच साल के अम्र में ,मनुष्य को सही गलत की पहचान आ जाता है। अगर उस उम्र में यह ज्ञान न हुआ तब पचास में भी न आएगा। सालों से प्रसिद्द यह कहावत शायद मेरे लिए ही जन्मा होगा। अच्छाई ज्ञान न होते हुए मैं प्रार्थना करता हूँ कि सर्वज्ञ, मेरे स्वामी, आप ही मुझे मार्ग दिखाएं। “नेंजमुम तानोलिन्दवट्रये उगक्कुम” . इस्का ऐसे भी अर्थ निकाला जा सकता है कि मामुनि के कहना है के, “अगर एक व्यक्ति पाँच में न सीखा तो पचास में भी न सीखेगा। अफ़सोस! मुझे आज भी साँसारिक सुखों के पीछा करने की पश्चात्ताप नहीं है और इसी कारण आपके चरण कमलों (जो सर्वोत्तम लक्ष्य हैं) के बजाय मन अन्य वस्तुओँ केलिए तरसता है।”
अडियेन प्रीती रामानुज दासी
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