श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमद्वरवरमुनये नम:
उपक्षेप
मणवाळ मामुनि के कल्पना में श्री रामानुज के एक प्रश्न, इस पासुरम का मुखबंध के रूप में है। इस काल्पनिक प्रश्न का उत्तर ही यह पासुरम है। वह प्रश्न है, “ ऐसा मान लें कि मेरी अत्यंत कृपा हैं , परन्तु आपके विरोधियाँ/ संकट (पूर्व कर्मा के रूप में ) इतने हैं कि कितने भी बड़े कृपालुओं की दया को सुखा सकती हैं। तो इस बात के प्रति मैं क्या कर सकता हूँ? उत्तर में मामुनि कहतें हैं , “सर्व पापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मासुच:” (तुम्हारे सारें पापों से तुझे मैं छुटकारा दिलाऊँगा, शोक न करो) कहने वाले (कृष्ण के रूप में) स्वयं श्रीरंगम के पेरिय पेरुमाळ ही थे। और वे भी आपके सुझाव तथा आज्ञा मान्ने वाले हैं। अत: मेरे स्वामि ! श्री रामानुज ! आपके दिव्य चरण कमलों से अन्य कोई भी आश्रय न मान्ने वाले मुझे कृपया मुक्ति दिलाएं। आपसे विनति हैं कि कर्मों के फल से मेरी रक्षा करें और बंधनों से मुक्ति करें।
पासुरम ३४
मुन्नैविनै पिन्नैविनै आरत्तम एन्नुम
मूनृ वगयान विनैतोगै अनैत्तुम याने
एन्नै अड़ैंदोर तमक्कु कळीप्पन एन्नुम अरँगर
ऐतिरासा नीयिठ्ठ वळकन्रो ? सोल्लाय
उन्नै अल्लदु अरियाद यान इंद उडंबोडु
उळनृ विनैपयन पुसिक्क वेणडुवदु ओनृ उणडो
एन्नुडैय इरुविनैयै इरैपोळूदिल माट्री
येरारुम वैगुणडत्तु एट्री विडाय नीये
शब्दार्थ
अरँगर – पेरिय पेरुमाळ
एन्नुम – जिन्होंने यह कहा कि
अड़ैंदोर तमक्कु – “उन्के प्रति जो पहुँचते हैं
एन्नै – मुझें , जो वात्सल्य जैसे शुभ गुणों से चित्रित हूँ
याने – मैं , जो सर्व शक्तिमान , सर्वज्ञ और सर्वव्यापी हूँ
कळीप्पन – नाश करूंगा
अनैत्तुम – सारे
विनैतोगै – कर्मों का संग्रह
मूंरू वगैयान – तीन तरह के हैं
एन्नुम – के जैसे
मन्नैविनै – पूर्वागं ( पूर्व संग्रहित पाप)
पिन्नैविनै – उत्तरागम (भविष्य के पाप)
आरत्तम – प्रारब्धम ( अनुभव किये जाने वाले कर्मों का पूरा भाग संचित कर्म हैं और उसमें से एक भाग है प्रारब्ध)
एतिरासा – हे ! यतियों के नेता !
नीयिठ्ठ वळक्कँरो? – ऐसे सर्वेश्वर अरंगर (पेरिय पेरुमाळ) भी आपके आज्ञा मानते हैं
सोल्लाय – कृपया मुझें बताएं कि यह सच्चाई है
यान – मैं
अरियाद – नहीं जानता
उन्नै अल्लदु – आपके सिवाय (रक्षक के रूप में)
विनैपयन पुसिक्क वेणडुवदु ओनृ उणडो? – मेरे कर्मों के फलों को अनुभव करना हैं क्या ?
इंद उडंबोडु – इस शरीर के अंदर
उळनृ – और क्या यह यात्रा सदा करना हैं ?
नीये – आपको ही यह करना है (कर सकते हैं)
इरैपोळूदिल – आँख के पलक में
माट्री – निशाने के बिना नाश करें
एन्नुडय – मेरे
इरुविनैयै – घोर कर्म
येट्री विडाई – (ऐसे करने से) कृपया मुझे चढ़ाये
ऐरारुम – सुँदर
वैगुंडत्तु – परमपद
सरल अनुवाद
मामुनि, श्री रामानुज से कहतें हैं कि जन्मों से संग्रहित पापों को नाश कर, केवल वें ही मोक्ष दिला सकतें हैं। सर्वज्ञ, सर्व शक्तिमान पेरिय पेरुमाळ भी जिन्की आज्ञा मानते हैं, उन श्री रामानुज के दिव्य चरण कमलों से अन्य कोई सहारा न होने कि सच्चाई को फिर से मामुनि दोहराते हैं।
स्पष्टीकरण
पेरिय पेरुमाळ के वचन को यहाँ मामुनि फिर दोहराते हैं। भगवान कि वचन हैं कि , “कर्म , “पूर्वागं”, “उत्तरागम”, और “प्रारब्धं” जैसे तीन प्रकार के हैं। पूर्वागमुत्तारागारंच समारब्धमकमतथ यहीं बताता हैं। अन्य मार्गों को उपाय मान्ने कि सोच को छोड़कर, केवल मुझे ही एकमात्र आश्रय मानकर मेरे पास आने वालों की कर्मों को, मैं जो सर्व शक्तिमान, सर्वज्ञ, सर्व नियंता, वात्सल्यादि कल्याण गुणों से भरपूर हूँ, सम्पूर्ण तरह से नाश करता हूँ।”आगे श्री रामानुज से मामुनि कहतें हैं, “हे ऐतिरासा ! यतियों के नेता ! क्या “वस्यस्सता भवतिते ” से प्रकट नहीं किया गया है की सर्व स्वामी पेरिय पेरुमाळ भी आपके आज्ञा मान्ने वाले हैं? स्वयं पेरिय पेरुमाळ को अपने प्रेम से बाँधने वालें आप, इस सच्चाई को प्रकट क्यों नहीं करतें ? मैं आप के अलावा अन्य कोई आश्रय नहीं जानता। मैं अपने इस शरीर में हूँ और एक शरीर से दूसरे तक लंबे समय से सफर कर रहा हूँ। इस शरीर के संबंध से उत्पन्न होनें वाले कर्मों के फलों को और कितने समय तक मैं यह सफर कायम रख कर अनुभव करूँगा ? परंतु आँखे पलकने के समय में, अनादि कालों से संग्रहित इन शक्तिशाली कर्मों को , “कड़ीवार तीय विनैगळ नोडियारूम अळवाईकण (तिरुवाईमोळी १.६.१०)” के अनुसार केवल आप ही नाश कर सकते हैं। यह कार्य कर केवल आप ही मुझे सुंदर परमपद तक छडा सकतें हैं।
अडियेन प्रीती रामानुज दासी
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