श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमद्वरवरमुनये नम:
उपक्षेप
पिछले पासुरम के “अऱमिगु नरपेरुमबूदूर अवदरित्तान वाळिये” का अर्थ यह हैं कि श्री रामानुज “श्रीपेरुमबूदूर” नामक क्षेत्र में अवतार किये। उससे, इस पासुरम में मणवाळ मामुनि उस श्रेष्ट दिवस को मनाते हैं, जो हैं हम संसारियों के प्रति श्री रामानुज के इस लोक में जन्म लेने का दिन।
पासुराम ३२
संकरभारकर यादवभाट्ट प्रभाकरर तनगळ मदम
सायवुरवादियर मायकुवरेंरु सदुमरै वाळंदिडुनाळ
वेंकली इंगिनी वीरू नमकिलै एनरु मिगत्तळर नाळ
मेदिनिनन्जुमैयारुमेनतुयर विटटु विळंगिय नाळ
मँगैयर आळी परांकुश मुन्नवर वाळवु मुळैत्तिडु नाळ
मंनिय तेन्नरंगापुरी मामलै मट्रूमुवन्दीडु नाळ
सेंकयलवाविगळ सूळवयलनालुम सिरन्द पेरुमबूदूर
सीमान इळैयाळवार वंदरुळीय नाळ तिरुवादिरै नाळे
शब्दार्थ
शंकरा- शंकरा के सिद्धांत
भारकर- भास्करा के सिद्धांत
यादव – यादवप्रकाश के सिद्धांत
भाट्ट – भाट्टो के सिद्धान्ते
प्रभाकरर तनगळ मदम – प्रभाकर के सिद्धांत , यह सारे सिद्धांतें
सायवुर – नाश हुए (श्री रामानुज के अवतार के पश्चात)
वाळंदिडुनाळ सदुमरै – चारों वेदों की समृद्धि ( अर्थात वेदों के सही अर्थ प्रचार होने का दिन) तभी होगा जब
वादियर – शंकरा के जैसे लोग वाद करके
मायकुवरेन्रू – निश्चित पराजय होंगे
नाळ – वह दिन (जब श्री रामानुज के अवतार किये) तब है
वेंकली – (जब)क्रूर कलि
इँगु वीरू नमकिलै एनरु – इस सोच में की यह लोक इसके पश्चात (सहायता केलिए अन्य दुष्ट शक्ति न होने के कारण) उस्के वास स्थल /आधिपत्य में न रहा
मिगत्तळर – खाँप कर क्षय होगी
नाळ – उस खास दिवस (श्री रामानुज के अवतार के दिन )
मेदिनी – पृथ्वी भी
विळँगिया – प्रकाशित हुयी
नन्जुमै आरुम येन तुयर विटटू – (जब उस्को एहसास हुआ) कि उस्की भार कम होने वाली हैं
नाळ – वो श्रेष्ट दिवस (जब श्री रामानुज जन्म हुए) में ही
वाळवु – श्रेयस
मुन्नवर – हमारे सारें पूर्वजों की, जैसे
मँगैयर आळी – तिरुमँगै आळ्वार और
परांकुश – नम्माळ्वार
मुळैत्तिडु – खिलकर वृद्धि होगी
नाळ – वह महत्वपूर्ण दिन (श्री रामानुज के अवतार दिवस )
मननिय – पेरिय पेरुमाळ (श्री रंगनाथ) के नित्य वास स्थल
तेन्नरंगापुरी – जो रमणीय है और श्री रंगम कहलाता है
मामलै – और जो दिव्य क्षेत्र “पेरिय तिरुमलै” (तिरुवेंगटम) जाना जाता है
मट्रूम – और अन्य दिव्य क्षेत्र
उवन्दिडु – संतुष्ट होंगीं
नाळे – वही दिन है
वनदरूळीयनाळ – जब श्री रामानुज अवतरित हुए
सीमानिळैयाळवार – श्रीमान स्वरूप “इळैयाळवार” नामक
पेरुमबूदूर – श्रीपेरुमबूदूर में
सूळ – जो घेरा है
वाविगळ – झील और तालाबों से जो भरे हैं
सेंकयल – लाल मच्छलीयों से
वयल – और धान के खेतों से
नालुम – श्रीपेरुमबूदूर नामक यह जगह हमेशा दिखता है
सिरन्द – एक महान नगर जैसे
तिरुवादिरै – (श्रीपेरुमबूदूर में श्री रामानुज के अवतार होने की नक्षत्र) था तिरुवादिरै। यही सबसे सर्वश्रेष्ठ दिवस हो सकता हैं। “श्रीमान आविर्भूत भूमौ रामानुज दिवाकर:” वचन की ज्ञान अपनाना हमारा कर्तव्य हैं।
सरल अनुवाद
मणवाळ मामुनि श्री रामानुज के इस लोक में अवतार करने की नक्षत्र तिरुवादिरै को मनातें हैं। जब वें इस लोक में अवतार किये, अनेक शुभ कार्य हुए। वेदों की गलत अर्थ निकालने वाली सिद्धांतों का नाश हुआ। श्री रामानुज के जन्म के पश्चात , बेसहारा होने के डर में कलि खाँपने लगा। यह पृथ्वी , उसमें उपस्थित दिव्य क्षेत्रें , जन ,सारे अपने अपने बोज श्री रामानुज के अवतार से हल्का होने के आशा में अत्यंत संतुष्ट थे। ऐसे दिव्य श्री रामानुज लाल मछलियों से भरे सुंदर तालाबों से घेरे, महान नगरी के सौंदर्य से भरपूर श्री पेरुमबूदूर में अवतार किये। धन्य हो वह अति उत्तम दिवस।
स्पष्टीकरण
“कुदृष्टि” नामक कुछ लोग हैं। नाम से ही पता चलता है कि, उन्की दृष्टी साधारण नही है। वेदों के सम्पूर्ण गहरे अर्थों की समझ या दृष्टी न होने के कारण उनकी व्याख्या ओछा है और वेदों के गलत अर्थ निकालते है। वे १)श्रीमन नारायण (विशेषणम) और २) उन्के गुण (विशेष्यम) दोनों को निषेध करते हैं। शंकर, भास्कर जैसे लोग कुदृष्टियाँ थे। इसके कारण वैदिक धर्म बेसाहरे स्तिथि में थी। परन्त्तु श्री रामानुज के अवतार के पश्चात, इन कुदृष्टियों और उन्के वादों और सिद्धांन्तों के नाश अथवा खुद के स्वास्त्य के ज्ञान में वेद संतुष्ट हुए।
श्री रामानुज के अवतार के बाद, कठोर कलि को यह भय हुआ कि वह अब धर्ती पर सुखी नहीं रह पायेगा। इस डर में कलि खाप्ने लगा। “तवं तारणि पेट्रदु (इरामानुस नूट्रन्दादि ६५)” में यही चित्रित है, कि कलि से प्रभावित कुदृष्टियाँ डर में दौडे और पृथ्वी शांति की साँस ली और प्रकाश हुई।
दिव्य देश वे है जो आळवारों से गाये (पासूरम के रूप में ) गए हैं। इन्मे में अधिकतर क्षेत्र तिरुमंगै आळवार से गाये गए हैं। अत: श्री रामानुज के अवतार से आळवारों की कीर्ति फ़िर से विशेष रूप में फैलने लगीं। स्वामी रामानुज के जन्म से सारे दिव्य देश फिर से खुश हुए। पेरिय पेरुमाळ के निवास स्थल श्रीरंगम और (तिरुविरुत्तम ५०) “अरुवीसेय्य निर्कुंम मामले” के अनुसार तिरुवेंघटम भी खुश हुए। श्री रामानुज, लाल मछलियों से भरे तालाबों से घेरे श्रीपेरुमबूदूर नामक सुंदर नगरि में तिरुवादिरै नक्षत्र में अवतार किए। उन्के जन्म में दिया हुआ “इळैयाळवार” नाम ही उनके अवतार रहस्य और माहात्म्य को वर्णित करतीं हैं।
अत्यंत आश्चर्य में चौंके मणवाळ मामुनि कहतें हैं , “यहीं हैं वह दिन! और कैसे आश्चर्यमय दिन हैं यह! इस्के समान और दूसरा कोई दिन हो सकता हैं ?” यहाँ “श्रीमान रामानुज दिवाकर:” वचन की हमें स्मरण होनी चाहिए। श्रीरंगम और तिरुवेंघटम, अन्य दिव्य क्षेत्रो के प्रतिनिधि होने के कारण, “तेनरंगापुरी मामलै मट्रूमुवन्दीडु नाळ” वचन को, इन क्षेत्रों के निवासियों और अन्य क्षेत्रो के भी निवासियों की भी, श्री रामानुज के अवतार से उत्पन्न हुई अत्यंत संतोष की प्रसंग समझ सकते हैं। इरामानुस नूट्रन्दादि तनियन के , “ उन नाममेल्लाम एनरन नाविनुळे अल्लुमपगलुं अमरुमपड़ि नल्गु” से देखा जा सकता है कि मणवाळ मामुनि, एम्पेरुमानार, इरामानुस, ऐतिरासा जैसे इस पासुरम में “इळैयाळवार” तिरुनाम का उपयोग करतें हैं।
अडियेन प्रीती रामानुज दासी
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