श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमद्वरवरमुनये नम:
उपक्षेप
साँसारिक संबंध के हटने से, अत्यंत सौभाग्य स्तिथि जो हैं ,परम श्रेयसी आचार्यो के मध्य पहुँचने तक के घटनाओँ की विवरण इस पासुरम में मणवाळ मामुनि प्रस्तुत करते हैं।
पासुरम
इंद उडल विटटु इरविमंडलत्तूडु येगी
इव्वणडम कळित्तु इडैयिल आवरणमेळ पोय
अन्दमिल पाळ कडन्दु अळगार विरसैतनिल कुळित्तु अंगु
अमानवनाल ओळि कोण्ड सोदियुम पेट्रु अमरर
वंदु एदिरकोणडु अलंकरित्तु वाळ्त्ति वळिनडत्त
वैकुंतम पुक्कु मणिमण्डपत्तु चेन्रु
नम तिरुमालडियारगळ कुळाङ्गळुडन
नाळ एनक्कु कुरुगुम वगै नल्गु एन एतिरासा
शब्दार्थ
एन एतिरासा – हे! एतिरासा ! मेरे स्वामी ! यतियों के नेता !
नल्गु – कृपया आशीर्वाद करें
एनक्कु – मुझे
कुरुगुम वगै – कि आज से उस भाग्यवान दिन की अंतर शीघ्र कम हो
कूडुम नाळ – वही सौभाग्य दिन हैं जब मैं मिलूँगा,
नम तिरुमालडियारगळ – हमारे स्वामियां (जो स्वयं श्री:पति श्रीमन नारायण के दास हैं ) जो हैं नित्यसुरियाँ
कुळाङ्गळुडन – और उन्के गण में एक हों
इंद उडल – दोषों से भरे इस अनित्य शरीर
विटटु – के छूटने पर
इरविमंडलत्तूडु येगी – सूर्य मंडल को पार कर
कळित्तु – पार करता हैं
इव्वणडम – यह सँसार
इडैयिल – जो बीच में है
आवरणमेळ पोय – (इसके पश्चात ) सात सागरों को पार करता है
पाळ कडन्दु – “मूल प्रकृति” को पार कर
अन्दमिल – जिस्को असीमित कहा जाता है
अळगार – अंत में जो अति सुन्दर हैं, वहाँ पहुँचता है
विरसैतनिल – “व्रजा” नामक नदि
कुळित्तु – पुण्य स्नान करता है
अंगु – वहाँ
अमानवनाल – “अमानवन” के स्पर्श से उठता है
ओळि कोण्ड सोदियुम पेट्रु – और इससे परिणामित, तेजोमय दिव्य शरीर प्राप्त होता है
अमरर वंदु एदिरकोणडु – इसके पश्चात नित्यसुरियाँ आकर स्वागत करतें हैं
अलंकरित्तु – श्रृंगार करते हैं
वाळ्ति – गुणगान करतें हैं
वळिनडत्त – और मुझें (नए शरीर में ) लेकर जाते हैं
वैकुंतम पुक्कु – श्रीवैकुंटम के पथ में
मणिमण्डपत्तु चेन्रु – और “तिरुमामणि मंडप” नामक वेदी पहुँचता है
सरल अनुवाद
इस पासुरम में मणवाळ मामुनि श्री रामानुज से, अब के और नित्यसुरियों के संग रहने के, बीच के समय के अंतर को शीघ्र कम करने की प्रार्थना करते हैं। शरीर के घिरने के पश्चात, आने वाली यात्रा की विवरण कि यहाँ प्रस्ताव करते हैं। जीवात्मा, सूर्य मंडल, अण्ड, सात सागर जैसे अनेक जगहों को पार कर, अंत में , “व्रजा” नामक नदी को पहुँचती है। उस नदी में पुण्य स्नान करने के पश्चात, अमानवन के स्पर्श से उठकर, नयी तेजोमय शरीर पाती हैं। नित्यसूरिया आकर, स्वागत कर, श्रृंगार कर, उसे तिरुमामणि मण्डप तक ले जातें हैं जहाँ श्री:पति श्रीमन नारायण विराजमान हैं। मणवाळ मामुनि की प्रार्थना हैं कि वे अब और नित्यसुरियों के नित्य निवास तक पहुँचने के समय के अंतर को शीघ्र कम करें।
स्पष्टीकरण
मणवाळ मामुनि कहते हैं , “हे! मेरे स्वामी ! यतियों (सन्यासियों ) के नेता ! (तिरुवाय्मोळि १०. ७. ३ ) “इम्मायवाक्कै” के अनुसार मेरा अनित्य शरीर दोषों से भरा है। इसमें इच्छा नहीं रखनी चाहिए और (तिरुवाय्मोळि १०. ७. ९) के “मंग ओटटु” के प्रकार नाश होनी चाहिए। इसके पश्चात जीवात्मा , (पेरिय तिरुमडल १६) के “मण्णुम कडुम कदिरोन मण्डलत्तिन नन्नडुवुळ” के प्रकार सूर्य मंडल से लेकर अनेकों लोकों को पार करता है। इसके बाद, “आदिवाहिकस” नामक लोगों के लोक को पर करता है। और (तिरुवाय्मोळि ४. ९. ८ ) के वचन “इमयोर्वाळ तनि मुटटै कोटटै” के अनुसार, एक करोड़ योजनों की देवों के लोक पार करता है। इसके पश्चात, (तिरुवाय्मोळि १०. १०. १०) के “मुडिविल पेरुम पाळ” वचन से चित्रित असीमित मूल प्रकृति को सात समुंदरों को पार कर पहुँचता है। इस्के पश्चात अति सुंदर “व्रजा” नदी को जीवात्मा पहुँचता है। यहाँ पुण्य स्नान करने के बाद, “अमानवन” नामक व्यक्ति व्रजा नदी से बाहर आने केलिए अपने हात देते हैं।
इस स्पर्श के पश्चात, “ओळी कोण्ड सोदियुमाइ(तिरुवाय्मोळि २. ३. १०) के अनुसार जीवात्मा को एक नई तेजोमय शरीर प्राप्त होता है। यह “पंचोपनिषद मय” कहलाता है। अर्थात पञ्च दिव्य भूतों से बनाया हुआ। अब, “मुडियुडै वानवर मुरै मुरै एदिर्कोळ्ळ” (तिरुवाय्मोळि १०. ९. ८) के प्रकार (नवीन शरीर वाले) जीवात्मा को नित्यसुरियां आकर स्वागत करते हैं और उसकी श्रृंगार कर, गुणगान कर, “श्री वैकुंठ” नामक दिव्य स्थल लेकर जाते हैं। “तिरुमामणि मंडप” नामक प्रसिद्द वेदी तक ले जाते हैं , जहाँ अनेक भक्त उपस्थित हैं। श्री रामानुज से मणवाळ मामुनि प्रश्न करते हैं , “ कहते हैं कि , “अडियारगळ कुळाङ्गळुडन कूडुवदु येनृकोलो (तिरुवाय्मोळि २. ३. १०) और “मतदेवतै: परिजनैस्तव संकिशूय:”, ऐसे भक्तों के समूह में रहने की अवसर कब आएगी ? वें श्री:पति श्रीमन नारायण के दास हैं और उन्के प्रति कैंकर्य को सहारा मानते हैं। हे ! एतिरासा! कृपया आशीर्वाद करें कि आज और उल्लेखित विषयों के संभव दिन के अंतर के समय शीघ्र कम हो।
अडियेन प्रीती रामानुज दासी
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