श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमद्वरवरमुनये नम:
उपक्षेप
पूर्व पासुर में, मणवाळ मामुनि, श्री रामानुज के प्रति “उणर्न्दु पार” अर्थात, अपने परमपद प्राप्ति पर विचार करने कि प्रार्थना करते हैं। इसके अनुबंध में, यह प्रश्न आता हैं कि मणवाळ मामुनि किस आधार पर श्री रामानुज से इतने अधिकार से प्रार्थना करते हैं। ऐसा क्या संबंध हैं मणवाळ मामुनि का श्री रामानुज से, जो उनका (मणवाळ मामुनि का) रक्षण अनिवार्य हैं ? यह पासुर इस प्रश्न का उत्तर देता हैं। मणवाळ मामुनि दृढ़ निश्चितता (निश्चय) से बताते हैं कि वे श्री रामानुज के पुत्र हैं और इसी कारण उनकी श्री रामानुज द्वारा आश्रय अनिवार्य हैं।
पासुरम ५
तन पुदलवन कूड़ामल तान पुसिकुम बोगत्ताल
इन्बुरुमो तन्दैक्कु एतिरासा – उन पुदलवन
अन्रो यान उरैयाय आदलाल उन बोगं
नन्रो एनै ओळिन्द नाळ
शब्दार्थ :
एतिरासा – हे एम्पेरुमानार (हे रामानुज)
तन्दैक्कु – पिता को
इन्बुरुमो – क्या उनको कोई सुख मिलता है जब
तन – उनके
पुदल्वन – पुत्र
कूडामल – उनके सात न रहे
तान – और वे अकेले (पिता )
पुसिक्कुम – भोग करे
भोगत्तै – ऐश्वर्य
उन – आप (मेरे पिता )
यान – और मैं
पुदलवन – मैं आपका पुत्र हूँ, क्योंकि आप मेरे पिता हैं
अन्रो – सच नहीं हैं ?
उरैयाय – कृपया बताइये
आदलाल – अतः
उन – आपके
भोगं – भोग
नाळ – दिन पर जब (आप )
ओळिन्द – के बिना
एनै – मुझे
नन्रो – आपको सुख देगा क्या ?
सरल अनुवाद
इस पासुर में मणवाळ मामुनि एक दृष्टान्त देते हैं। क्या पुत्र से अलग पिता संसार के सुख अनुभव कर सकता हैं ? क्या वे परदेश वास, अनुपस्तिथ पुत्र के विचार में ना रहेगा ? अवश्य वे उस पुत्र के विचार में रहेगा और न सांसारिक सुख की अनुभव करेगा , पर अपने पुत्र केलिए तरसेगा। मणवाळ मामुनि श्री रामानुज से प्रश्न करते हैं कि उनके (श्री रामानुज ) पुत्र (मणवाळ मामुनि ) के अनुपस्तिथि पर श्री रामानुज परमपद सुख का अनुभव अकेले (पुत्राभाव मे) कैसे कर सकते हैं ?
स्पष्टीकरण
मानिये कि एक पिता का प्रिय पुत्र परदेश मे वास कर रहा है । इस अवस्था में क्या वे अकेले अपने सामने उपस्थित धन जैसे सुखों का भोग कर सकते हैं ? मणवाळ मामुनि श्री रामानुज से विनम्र प्रस्तुति करते हैं , “हे यतिराज (सन्यासियों के राजा), सादृश्य से , अनिवार्य रूप मे (मै) आपका पुत्र हूँ।” (श्री सूक्ति, “करियान ब्रह्मत पिता” के अनुसार) । “हे एम्बेरुमानार ! कृपया इस स्वाभाविक पिता-पुत्र संबंध को निश्चित कीजिये। कट्टेळिल वानवर बोगं (तिरुवाइमोळि ६.६.११) में चित्रित सुखों को आप अपने पुत्र को खोने पर अनुभव कैसे करेंगें? अडियेन (दास) को पता हैं कि मेरे (आपके पुत्र के) अनुपस्तिथि में आप परमपद के सुखों का भोग नही कर पाएँगे। इसलिए अडियेन (दास) की प्रार्थना हैं, की आप मुझे अपने संग लें”
अडियेन प्रीती रामानुज दासी
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