नाच्चियार् तिरुमोऴि – सरल व्याख्या – आठवां तिरुमोऴि – विण्णील मेलाप्पु

श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्री वानाचल महामुनये नमः

नाच्चियार् तिरुमोऴि

<<सातवां तिरुमोऴि

श्री बालाजी पद्मावती

इसके‌ पूर्व के दशक में वह पाञ्चजन्य आऴ्वान् से भगवान श्रीमन्नारायण (एम्पेरुमान्) के अधरामृत के स्वरूप के विषय में पूछती है। उससे पूछताछ करने के पश्चात आण्डाळ् के हृदय का अनुभव भगवान तक पहुँच जाता है। उसी समय वहाँ आकाश में गरजते हुए घने मेघ आए। श्यामवर्ण रूप में और उदार स्वभाव में भगवान श्रीमन्नारायण के समान ये घटा, स्वयं भगवान के रूप में इसकी दृष्टि में साक्षात्कार हुए। सोचा कि भगवान स्वयं आए हैं। थोड़ी स्पष्टता प्राप्त होने पर, भगवान नहीं आए हैं इस बात की अनुभूति की। आकाश में आए मेघों की एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने की क्षमता देख, इन्हें अपना दूत बनाकर भगवान‌ के पास भेजने का विचार करती है। परंतु इस बार विभवावतार (भगवान के राम, कृष्ण आदि अवतार) के बदले भगवान के अर्चावतार‌ (अर्चा विग्रह रूप), वह भी, तिरुमला में श्रीनिवास भगवान‌ (तिरुवेङ्गडमुडैयान्) के पास दूत भेजती है। रामावतार के समय, सीतादेवी ने (सीतापिराट्टि) ज्ञान श्रेष्ठ हनुमान जी को दूत बनाकर अपनी‌ दुःखद परिस्थिति से प्रभु श्रीराम को ज्ञात कराने को कहा। अपने अपार प्रेम से भ्रमित होकर, यहाँ गोदादेवी ज्ञानहीन (अचित वस्तु) मेघदूत को भेजने की अवस्था में आ ग‌ई। भगवान पर इसकी अत्यंत‌ काम/अभिलाषा होने के कारण,‌ वह यह नहीं सोच पा रही कि‌ अर्चा रूपी भगवान केवल दर्शन प्रदान करते हैं, बात-चीत या‌ मेल-जोल नहीं करते। प्रेम अथवा काम‌ भक्ति के ही रूप हैं। दूसरे शब्दों में, वे एक-दूसरे के साथ रहते समय एक-दूसरे को बनाए रखते हैं, और विरह नहीं झेल सकते। ये गुण देवियों (पिराट्टियों) में स्वाभाविक रूप से होते हैं। इसीलिए आऴ्वारों ने भी पिराट्टि (भगवान की‌ देवियाँ) अर्थात नायिका-भाव धारण किया था। किन्तु आण्डाळ् के विषय में वह साक्षात भूमि देवी (भूमिप्पिराट्टि) का अवतार होने के कारण, स्वाभाविक रूप से ये गुण विद्यमान हैं।

पहला पासुरम्। वह मेघों को तिरुवेङ्गडमुडैयान् से यह प्रश्न करने का आदेश देती है कि क्या उसकी स्त्रीत्व का नाश करने से उसे श्रेय प्राप्त होगा।

विण्णील मेलाप्पु विरित्ताऱ्-पोल् मेगङ्गाळ् 
तॆण्णीर् पाय् वेङ्गडत्तु ऎन् तिरुमालुम् पोन्दाने 
कण्णीर्गळ् मुलैक् कुवट्टिल् तुळि सोरच् चोर्वेनै 
पॆण्णीर्मै ईडऴिक्कुम् इदु तमक्कोर् पॆरुमैये?

हे मेघ, जो नीले अम्बर पर ओढ़े चंदवा की भाँति दिखते हैं! क्या मेरे स्वामी‌ तिरुमाल् (श्रीयःपति भगवान श्रीमन्नारायण), जो तिरुवेङ्गडम् (तिरुमला) के पर्वतों में नित्यवास करते हैं, जहाँ शुद्ध धाराएँ बहती हैं, आपके साथ आए हैं? मैं इतनी दुखी हूँ कि मेरे अश्रुओं की‌ बूँदें मेरे छाती पर टपते हैं। क्या यह उसे श्रेय दिलाएगा?

दूसरा पासुरम्। वह मेघों से पूछती है कि क्या पवन‌ से क्षुब्ध आण्डाळ् के लिए एम्पेरुमान् ने आश्वासन देनेवाले कोई संदेश भेजा है।

मामुत्त निधि सॊरियुम् मामुगिल्गाळ्! वेङ्गडत्तुच् 
चामत्तिन् निऱम् कॊण्ड ताडाळन् वार्त्तै ऎन्ने?
कामत् तीयुळ् पुगुन्दु कदुवप्पट्टु इडैक् कङ्गुल् 
एमत्तोर् तॆन्ऱलुक्कु इङ्गु इलक्काय् नान् इरुप्पेने

हे‌ वर्षा के घने मेघ जो विशिष्ट मोतियों और सोने की‌ वर्षा करते हैं! भव्य नील वर्ण भगवान जो तिरुवेङ्गडम् में नित्यवास करते हैं, क्या उनका कोई संदेश है? मैं काम के लौ से अत्यंत क्षुब्ध हूँ, जो मेरे अंदर प्रवेश कर मुझे पकड़ लिया है, जिसके कारण मध्यरात्रि में मैं पवन का लक्ष्य बन गई और अब बहुत दुःखी हूँ। 

तीसरा पासुरम्। वह मेघों से पूछती है कि क्या वह भगवान के दिव्य नामों का‌ पाठ‌ कर स्वयं को बनाए रख सकती है।

ऒळि वण्णम् वळै सिन्दै उऱक्कत्तोडु इवै ऎल्लाम् 
ऎळिमैयाल् इट्टु ऎन्नै ईडऴियप् पोयिनिवाल् 
कुळिर् अरुवि वेङ्गडत्तु ऎन् गोविन्दन् गुणम् पाडि
अळियत्त मेगङ्गाळ्! आवि कात्तिरुपेने

हे कृपालु मेघ! मेरे रूप की कांति और रंग‌, मेरी चूड़ियाँ, चित्त और नींद सब मुझे छोड़कर चले गए मेरी दुखद परिस्थिति देख, मुझे बलहीन बनाकर। हाय! क्या मैं अपने भगवान गोविन्दन् जो शीतल धाराओं से भरे तिरुवेङ्गडम् में नित्यवास करते हैं, उनके दिव्य काल्याण‌ गुणों का पाठ कर स्वयं को बनाए रख सकती हूँ? 

चौथा पासुरम्। वह मेघों से विनती करती है कि‌ वे उसका संदेश भगवान के सामने तब करें जब श्रीमहालक्ष्मी (पिराट्टि) साथ हो, जो‌ आण्डाळ् के लिए  पुरुषकार करेगी। 

मिन्नागत्तु ऎऴुगिन्ऱ मेगङ्गाळ्! वेङ्गडत्तुत्
तन्नागत् तिरुमङ्गै तङ्गिय सीर् मार्वर्क्कु 
ऎन्नागत्तु इळम् कॊङ्गै विरुम्बि ताम् नाळ् तोऱुम् 
पॊन्नाग पुल्गुदऱ्-कु ऎन् पुरिवुडमै सॆप्पुमिने

हे मेघ जिनमें बिजली कड़कड़ाती है! मेरी एक इच्छा है कि भगवान, जो तिरुवेङ्गडम् में नित्यवास करते हैं, वे मेरी तरुण स्तनों से अपनी दिव्य छाती लगाकर इच्छापूर्वक आलिंगन करे। इसे भगवान‌ से कहो, जिनके दिव्य वक्ष्सथल में ‌कृपापूर्वक माता‌ श्रीमहालक्ष्मि (पिराट्टि) निवास करती हैं। 

पाँचवा पासुरम्। वह मेघों से अनुरोध करती है कि‌ वे भगवान के पास जाकर, जो अपने अनुयायियों के विरोधियों को हटा देते हैं, उनसे इसकी परिस्थिति को व्यक्त करें। 

वान् कॊण्डु किळर्न्दु ऎऴुन्द मामुगिल्गाळ्‌! वेङ्गडत्तुत्
तेन् कॊण्ड मलर् सिदऱत् तिरण्डेऱिप् पॊऴिवीर्गाळ्!
ऊन् कॊण्ड वळ्ळुगिराल् इरणियनै उडल् इडन्दान् 
तान् कॊण्ड सरिवळैगळ् तरुमागिल् साट्रुमिने
 

हे उठकर उमड़ने वाले मेघ, जो आकाश को निगलकर वर्षा करते हैं जिससे तिरुवेङ्गडमलै (तिरुमला) के मकरंद पुष्प बिखेर जाते हैं! एम्पेरुमान् ने हिरण्यकशिपु असुर का शरीर को अपने तीक्ष्ण नखों से चीर दिया और उन नखों में कुछ माँस लग गई। वह भगवान यदि मेरी चूड़ियाँ लौटाएँ तो उन्हें मेरी परिस्थिति से अवगत कराओ। 

छठा पासुरम्। वह मेघों से प्रार्थना करती है कि उसकी भलाइयों से वंचित करनेवाले नारायण से वे उसकी परिस्थिति के बारे में बताएँ।

सलम् कॊण्डु किळर्न्दु ऎऴुन्द तण् मुगिल्गाळ्! मावलियै
निलम् कॊण्डान् वेङ्गडत्ते निरन्देऱिप् पॊऴिवीर्गाळ्!
उलङ्गु उण्ड विळङ्गिनि पोल् उळ् मॆलियप् पुगुन्दु ऎन्नै 
नलम् कॊण्ड नारणऱ्-कु ऎन् नडलै नोय् सॆप्पुमिने 

हे शीतल मेघ जो ठंडे जल को पीकर ऊपर उठे हैं! हे शीतल मेघ जो तिरुवेङ्गडम् पर अच्छे से पसरकर पर्वतों के ऊपर उठते हैं, जहाँ एम्पेरुमान् का नित्य निवास है, जिसने महाबली से भिक्षा में तीनों लोकों को प्राप्त कर लिया! नारायण ने मेरी [स्त्रीत्व] भलाइयों को इस प्रकार छीन‌ लिया कि मैं मशक द्वारा रस निकाले गए बेल के फल की भाँति बन गई। मेरी इस दुखद रुग्ण के बारे में उस भगवान को बताओ। 

सातवां पासुरम्। वह मेघों से याचना करती है कि वे एम्पेरुमान् को बताएँ के वह उन्हें आलिंगन किए बिना अपने आप को नहीं धारण कर सकती।

सङ्गमा‌ कडल् कडैन्दान् तण् मुगिल्गाळ्! वेङ्गडत्तुच्
चॆङ्गण्माल् सेवडिक्कीऴ् अडि वीऴ्च्चि‌ विण्णप्पम् 
कॊङ्गै मेल् कुङ्गुमत्तिन् कुऴम्बऴियप् पुगुन्दु ऒरु नाळ्
तङ्गु मेल् ऎन् आवि तङ्गुम् ऎन्ऱु उऱैयीरे

भगवान ने शंखों से भरे कीर्तिमान समुद्र का मंथन किया। हे शीतल मेघ जो तिरुवेङ्गडम् के पर्वतों के‌ आस-पास भटकते हैं, जहाँ भगवान नित्य वास करते हैं! लाल नेत्र के उस भगवान के दिव्य लाल चरणों में मेरी यही एक विनती है: यदि वे यहाँ आकर मुझसे इस प्रकार मिलते हैं कि मेरे स्तनों पर लगी कुमकुम मिट जाए, तो मेरे प्राण बचेंगे। जाकर उन्हें बताओ। 

आठवां पासुरम्। वह मेघों से विनती करती है कि इस प्रकार [भगवान का] शांत रहना अनुचित है।

कार् कालत्तु ऎऴुगिन्ऱ कार् मुगिल्गाळ्! वेङ्गडत्तुप्
पोर् कालत्तु ऎऴुन्दरुळिप् पॊरुदवनार् पेर् सॊल्लि 
नीर् कालत्तु ऎरुक्किन् अम् पऴविलै पोल् वीऴ्वेनै 
वार् कालत्तु ऒरु नाळ् तम् वासगम् तन्दरुळारे

हे काले मेघ जो वर्षा ऋतु में तिरुवेङ्गडम् के पर्वतों पर उपस्थित हैं! भगवान ने कृपापूर्वक युद्ध के समय जंग में प्रवेश कर विजय प्राप्त किया। मैं उस भगवान के दिव्य नाम लेकर वर्षा काल में सुंदर अर्क पत्र के जैसे गिर जाती हूँ। आनेवाले लंबे वर्षों में एक‌ दिन भी, क्या वे कृपापूर्वक एक शब्द नहीं कहेंगे?

नौंवा पासुरम्। वह मेघों से विनती करती है कि वे भगवान को बताएँ कि यदि वह इसी प्रकार इसे सताते रहे, तो उनके ख्याति पर कलंक लगेगा। 

मद यानै पोल् ऎऴुन्द मामुगिल्गाळ्‌! वेङ्गडत्तैप्
पदियागि वाऴ्वीर्गाळ्! पाम्बणैयान् वार्त्तै ऎन्ने!
गदि ऎन्ऱुम् तान् आवान् करुदादु ओर् पॆण् कॊडियै
वदै सॆय्दान् ऎन्नुम् सॊल् वैयगत्तार् मदियारे

हे प्रिय मेघ, जो उल्लसित हाथियों के समान गरजकर आकाश पर उठते हैं और तिरुमला में नित्यवास कर समृद्धि प्राप्त कर रहे हैं! वह जो आदिशेष के शर्तें पर लेटे हैं उस भगवान का क्या संदेश है! अगर‌ वे इसी प्रकार मुझे उपेक्षित करते रहे, तो क्या इस जगत के लोग यह नहीं कहेंगे, “भगवान सदैव रक्षा करनेवाले होकर भी उन्होंने एक कन्या का वध किया और ये नहीं सोचा कि ऐसे करने पर उनके मूल स्वरूप की अपूर्णता दर्शाएगा”?

दसवां पासुरम्। गोदा देवी कहती हैं कि इस दशक का जो कोई मनन कर इसका आनंद अनुभव करेंगे, वे भगवान के दास बनकर समृद्धि प्राप्त करेंगे, और इस दशक को विराम देती हैं।

नागत्तिन् अणैयानै नन्नुदलाळ् नयन्दुरै सॆय्
मेगत्तै वेंङ्गडक्कोन् विडु तूदिल् विण्णप्पम् 
बोगत्तिल् वऴुवाद पुदुवैयर् कोन् कोदै तमिऴ् 
आगत्तु वैत्तु उरैप्पार् अवर् अडियार् आगुवरे

आण्डाळ्, पेरियाऴ्वार् (विष्णुचित्त स्वामी) की पुत्री ने एम्पेरुमान्, जिनका सुंदर दिव्य ललाट और मुख है, उनका आनंदमय अनुभव लिया, बिना कोई अभाव के। मेघों को दूत के रूप में प्रयोग कर, कृपापूर्वक आण्डाळ् ने इन दस पाशुरों की रचना की उस भगवान की कामना करते हुए, जिनकी शेषरूपी शय्या है। जो कोई इन दस पाशुरों को अपने हृदय में बसाकर इसका पाठ करने की क्षमता रखते हैं वे भगवान के दास बन जाएँगे और प्रति दिवस उनका कैंङ्कर्य करेंगे। 

अडियेन् वैष्णवी रामानुज दासी 

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