। ।श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमत् वरवरमुनये नमः। ।
पासुरम् ३८
अड़तीसवाँ पासुरम्। मामुनिगळ् ने दयालुतापूर्वक रामानुजाचार्य को नम्पेरुमाळ् द्वारा दिये गये महान सम्मान को प्रकट किया ताकि हर कोई जान सके कि रामानुजाचार्य ने कितनी अच्छी तरह प्रपत्ति (भगवान के प्रति समर्पण) मार्ग अपनाया था, और श्री भाष्यम् आदि जैसे ग्रंथों (साहित्यिक रचनाओं) के माध्यम से इस तत्व ज्ञान का पोषण करते हुए रक्षा की।
ऎम्पॆरुमानार् दरिसनम् एन्ऱे इदऱ्-कु
नम्पॆरुमाळ् पेरिट्टु नाट्टि वैत्तार् – अम्बुवियोर्
इन्द दरिसनत्तै ऎम्पॆरुमानार् वळर्त्त
अन्दच् चॆयल् अऱिगैक्का
नम्पॆरुमाळ् ने हमारे श्री वैष्णव सम्प्रदाय का नाम ऎम्पॆरुमानार् दरिशनम् (श्री रामानुज स्वामीजी का दर्शन) के रूप में दृढ़ता से स्थापित किया। क्योंकि रामानुजाचार्य ने विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से सभी अवधारणाओं को समझाकर प्रपत्ति के मार्ग का पोषण किया था, जैसे कि – श्री भाष्यम् जैसे साहित्यक कार्यों की कृपापूर्वक रचना करना, विभिन्न आचार्यों के माध्यम से हमारे सम्प्रदाय के सिद्धांतो को सभी को समझाना, विभिन्न दिव्य स्थलों में सुधार करना आदि। नम्पॆरुमाळ् ने स्वयं यह सुनिश्चित करने के लिए इसकी स्थापना की थी, कि संसार में हर कोई रामानुजाचार्य द्वारा किए गए विभिन्न लाभों को जान सके। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए तिरुकोष्टियूर् नम्बि (गोष्ठीपूर्ण स्वामीजी) (रामानुजाचार्य के आचार्यों में से एक) ने उनकी महान करुणा देखकर उन्हें ऎम्पॆरुमानार् की उपाधि दी। नम्पॆरुमाळ् ने तिरुकोष्टियूर् नम्बि के माध्यम से रामानुजाचार्य के लिए इस महानता का निर्माण किया।
पासुरम् ३९
उनतीसवाँ पासुर । चूँकि तिरुवाय्मॊऴि के लिए व्याख्यान (टिप्पणी) जो कि द्वय महामंत्र का अर्थ है, रामानुजाचार्य के आदेश से आरंभ हुआ और चूँकि व्याख्यानों की संस्था में वृद्धि हुई, रामानुजाचार्य के बताए अर्थों के आधार पर, मामुनिगळ् ने दयापूर्वक इन्हें समझाना आरंभ कर दिया।
पिळ्ळान् नन्जीयर् पॆरियवाच्चान् पिळ्ळै
तॆळ्ळार् वडक्कु तिरुवीधिप्पिळ्ळै
मणवाळ योगी तिरुवाय्मॊऴियै कात्त
गुणवाळर् ऎन्ऱे कूऱु
तिरुक्कुरुगैप्पिरान् पिळ्ळान्, जो रामानुजाचार्य के ज्ञान पुत्र (आलौकिक हृदय से पुत्र माने जाने वाले) हैं, नन्जीयर् जो पराशर भट्टर् के शिष्य हैं, पेरियवाच्चान् पिळ्ळै, जिन्हें अनुपम टीकाकार माना जाता है, वडक्कु तिरुवीधि पिळ्ळै जो नम्पिळ्ळै के शिष्य होने के साथ जिनका ज्ञान स्पष्ट हैं और वादि केसरी अऴगिय मणवाळ जीयर् जो पेरियवाच्चान् पिळ्ळै की करुणा के पात्र थे, ये सब महान लोग थे जिन्होंने द्वय महामन्त्र का स्पष्टीकरण माने गए तिरुवाय्मॊऴि की रक्षा और पोषण किया। हे हृदय! इन महान आचार्यों का वैभव मनाओ।
पासुरम् ४०
चालीसवाँ पासुर! वे अपने हृदय से पूर्वाचार्यों द्वारा दयापूर्वक लिखी गई व्याख्याओं की महानता का उत्सव मनाने के लिए कहते हैं।
मुन्दुऱवे पिळ्ळान् मुदलानोर् सॆय्दरुळुम्
अन्द व्याक्कियैगळ् अन्ऱागिल् – अन्दो
तिरुवाय्मॊऴिप् पोरुळैत् तेर्न्दुरैक्क वल्ल
गुरुवार् इक्कालम् नेञ्जे कूऱु
यदि उस समय तिरुक्कुरुगैप्पिरान् पिळ्ळान् से प्रारम्भ होने वाले आचार्यों ने अपने पूर्वाचार्यों से तिरुवाय्मॊऴि की व्याख्या को सुनकर व्याख्या न लिखी होती, आज कौनसे आचार्य तिरुवाय्मोऴि के प्रमुख अर्थ को समझाने में सक्षम होते? हे हृदय! कृप्या मुझे बताओ ।
अडियेन् दीपिका रामानुज दासी
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