। ।श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमत् वरवरमुनये नमः। ।
पासुर ४
चौथे पासुर में मामुनिगळ् ,आऴ्वार् जिस क्रम में अवतरित हुए, उस क्रम को बताया है |
पोय्गैयार् भूतत्तार् पेयार् पुगऴ् मऴिसै
अय्यन् अरुळ् माऱन् सेरलर् कोन् – तुय्य भट्ट
नादन् अन्बर् ताळ् दूळि नऱ्पाणन् नऱ्कलियन्
ईदु इवर् तोट्रदु अडैवाम् इङ्गु॥॥ ४॥
आळ्वारों के अवतरण का क्रम बताया गया पोय्गै आऴ्वार्, भूतत् आऴ्वार्, पेय् आऴ्वार्, तिरुमऴिसै आळ्वार् जो चिरस्थायी प्रसिद्धि प्राप्त कर चुके हैं। नम्माऴ्वार् जो अनुग्रह से परिपूर्ण हैं ,कुलशेखरप् पेरुमाळ् जो चेर राजाओं के राजा हैं, पेरियाऴ्वार् जिनके पास शुद्ध हृदय है, तोण्डरडिप्पोडि आऴ्वार् , तिरुप्पाण् आऴ्वार् और तिरुमंङ्गै आऴ्वार् जो पूरी तरह से पवित्र हैं ।
पासुर ५
पांचवे पासुर में उन महीनों और नक्षत्रों को करुणा पूर्वक सूचीबद्ध किया जाएगा , जिनमें आऴ्वार् का अवतरण हुआ था।
अन्दमिऴाल् नऱ्कलैगळ् आय्न्दुरैत्त आऴ्वार्गळ्
इन्द उलगिल् इरुळ् नीङ्ग – वन्दु उदित्त
मादङ्गळ् नाळ्गळ् तम्मै मण्णुलगोर् ताम् अऱिय
ईदु एन्ऱु सोल्लुवोम् याम् ॥ ५॥
आऴ्वारों ने वेद (पवित्र ग्रंथों) के गूढ़ अर्थों का विशलेषण कर, उच्चतर अर्थों का निर्देश दिया, जिससे अज्ञान का अंधकार इस पृथ्वी से हट गया।आगे उन महीनों और दिनों को सूचित किया जाएगा, जिनमें आऴ्वारों का अवतरण हुआ था, ताकि समस्त संसार उन्हें जान सके।
पासुर ६
छठे पासुर में पहले तीन आऴ्वारों के अवतार की महानता का वर्णन किया है, जिन्हें सामूहिक रुप से मुदलाऴ्वार् (पहले आऴ्वार्) कहा जाता हैं।
ऐप्पसियिल् ओणम् अविट्टम् सदयम् इवै
ओप्पिलवा नाळ्गळ् उलगत्तीर् – एप्पुवियुम्
पेसु पुगऴ् पोय्गैयार् भूतत्तार् पेयाऴ्वार्
तेसुडने तोन्ऱु सिऱप्पाल् ॥ ६॥
ऐ दुनिया के लोगों! जान लो। ऐप्पसी (आश्विन) महीने के तिरुवोणम् (श्रवण), अविट्टम् (धनिष्ठा), सधयम् (शतभिषा) नक्षत्रों के दिन अद्वितीय हैं। यह क्रमशः– वैभवशाली पोय्गै आऴ्वार्, भूतत्ताऴ्वार्, पेयाऴ्वार् के अवतार के कारण है। इन तीन आऴ्वारों को सभी के द्वारा मनाया जाता है।
अडियेन् दीपिका रामान्ज दासि
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