पूर्वदिनचर्या – श्लोक – १९

श्री:
श्रीमते शठकोपाय नमः
श्रीमते रामानुजाय नमः
श्रीमद्वरवर मुनये नमः

परिचय

श्लोक  १८                                                                                                             श्लोक  २०

श्लोक  १९

भृत्यैह् प्रियहितैकाग्रैह्  प्रमपूर्वमुपासितम् ।
तत्प्रार्थनानुसारेण संस्कारान् संविधाय मे ॥ १९ ॥

प्रियहितैकाग्रैह्       स्वामीजी की इच्छानुसार और चार धार्मिक आदेश के अनुसार तिरुवाराधन के लिये                                                       सामग्रियों को एकत्रित करने की व्यवस्था करना,
भृत्यैह्                   कोइल अण्णन जैसे शिष्यों द्वारा ,
प्रमपूर्वम               तीव्र भक्ति के साथ ,
उपासितम्             तिरुवाराधान के लिये जरूरी सामग्रियों को संग्रहीत करना जो की अत्यन्त विशेष और रमणीय                                       होती है,
तत्प्रार्थनानुसारेण – वरवरमुनि स्वामीजी के श्रीचरणों का आश्रय लेनेवाले शिष्यों की इच्छा को स्वीकार करने के                                          लिये,
संस्कारान्           –    पंच संस्कार ताप, पुण्ड्र, नाम, मंत्र, याग ।
संविधाय मे         –    शास्त्र में वर्णन किये गये अनुसार करना ।

पहले वर्णन किये गये अनुसार वरवरमुनि स्वामीजी भगवत सन्निधि में स्तम्भ के पास विराजमान है । उनके शिष्य जन अत्यन्त श्रद्धा के साथ चावल, फल, दुध, दहि आदि सामग्रियों को संग्रहीत करके तिरुवाराधन के लिये स्वामीजी को भेंट किया । स्वामीजी ने उत्साह के साथ ग्रहण किया ।  पराशर संहिता में वर्णन आता है की श्रीवैष्णव धर्म का प्रचार करने के लिये पंच संस्कारों से समाश्रित करना, उभय वेदान्त के रहस्यों का कालक्षेप करना, उसमें वर्णन किये गये अनुसार शिष्यों को पालन करने के लिये आज्ञा करना, यह सभी करनेवाले महात्मा को मठाधीश के रूप में स्वीकार किया जाता है । अलगीय मनवाल  वरवरमुनि स्वामीजी को मठाधीश के पद को स्वीकार करने के लिये आज्ञा करते है, और कोईल अण्णन जैसे अनेक आचार्य जन वरवरमुनि स्वामीजी को आचार्य के रूप में स्वीकार किये है ।

इसलिये श्रीवरवरमुनि स्वामीजी को शिष्यों द्वारा भेंट दी हुयी सामाग्री को तिरुवाराधन के लिये उपयोग करना योग्य है, जहाँ पर भगवान को भोग लगाकर तदियाराधन होनेवाला है ।

ऐसा कहा जाता है की वरवरमुनि स्वामीजी के शिष्य जन स्वामीजी से प्रार्थना करते है की कल ही आप की शरण में आए हुये श्रीदेवराज स्वामीजी को पंच संस्कारों से समाश्रित कीजिये । अपने परम आप्त शिष्यों की प्रार्थना को स्वामीजी ने अत्यन्त उत्साह के साथ स्वीकार किया । जिसे श्लोक की दूसरी पंक्ति में वर्णन किया गया है । शास्त्र के आदेशानुसार शिष्य को एक साल तक आचार्य का ध्यान और स्मरण करने पर उसे पंच संस्कार से समाश्रित करना । शास्त्र के आदेश का पालन नहीं करने पर भी वरवरमुनि स्वामीजी की यह गलती नहीं होगी, क्योंकि अपने अपने शिष्यों द्वारा की गयी विनंती शास्त्र के आदेश से भी बढ़कर है । इसलिये तिरुवाराधान समाप्ति के पश्च्यात स्वामीजी ने पंच संस्कार किया ।

पराशर संहिता में वर्णन किये गये अनुसार आचार्य प्रातः स्नान आदि करके तिरुवारधान करते है, पश्च्यात शिष्य को आमंत्रित करके पंच संस्कार से सुशोभित करते है । इस श्लोक में तीन संस्कारों का वर्णन है –

ताप    – शिष्य के बाहुमूलों को शंख और चक्र से आंकित करना ।
पुण्ड्र   – शरीर के द्वादश स्थानों पर तिलक लगाना ।
नामम– रामानुज दास नाम रखना ।
याग  – भगवान का तिरुवाराधान कैसे करे इसका वर्णन आचार्य द्वारा शिष्य को किया जाता है ।
मंत्र   – रहस्यत्रय का उपदेश दिया जाता है ।

पंच संस्कार याने किसी जीव को श्रीवैष्णव बनाने के लिये आचार्य द्वारा की गयी विधि / अनुष्ठान है ।

archived in https://divyaprabandham.koyil.org
pramEyam (goal) – https://koyil.org
pramANam (scriptures) – http://granthams.koyil.org/
pramAthA (preceptors) – http://acharyas.koyil.org
srIvaishNava education/kids portal – http://pillai.koyil.org

Leave a Comment