पूर्वदिनचर्या – श्लोक – १६

श्री:
श्रीमते शठकोपाय नमः
श्रीमते रामानुजाय नमः
श्रीमद्वरवर मुनये नमः

परिचय

श्लोक  १५                                                                                                                   श्लोक  १७

श्लोक  १६

ततः प्रत्युषसि स्नात्वा कृत्वा पौर्याह्रिकीः क्रियाः ।
यतीन्द्रचरणद्वन्द्वप्रवणेनैव चेतसा ॥ १६ ॥

ततः                                      – तब,
प्रत्युषसि                               – सूर्योदय के पहीले ( अरुणोदय ),
स्नात्वा                                 – स्नान करने के बाद,
पौर्याह्रिकीः                            – प्रातः किये जानेवाले कार्य,
क्रियाः                                  – शुद्ध कपड़े धारण करना, संध्यावन्दन करना,
यतीन्द्रचरणद्वन्द्वप्रवणेनैव  – श्रीरामानुज स्वामीजी के श्रीचरणों में विशेष अनुराग,
चेतसा                                  – जागृत होकर,
कृत्वा                                  – पूर्ण करना ।

प्रत्युषसि – उषाकाल, सूर्योदय के ठीक एक घंटे ३६ मिनिट पहीले । पहले वर्णन किये गये अनुसार यह मध्य रात्रि के चौथे भाग को दर्शाता है ( जो कि तीन घंटे १२ मिनिट है ) जिसमे १ घंटा ३६ मिनिट शेष रहता है । शरीर और दांत कि सफाई, स्नान, गुरूपरम्परा का अनुसन्धान और भगवान के छःस्वरूपों का ध्यान वरवरमुनि स्वामीजी द्वारा किया जाता है । स्वामीजी द्वारा कषाय वस्त्र, तिलक और तुलसी का माला धारण किया जाता है जिसका वर्णन ६,७,८ श्लोक में किया गया है । शास्त्र बताता है कि आचार्य भगवान श्रीमन्नारायण का साक्षात अवतार है और शिष्य पूर्ण रूप से आचार्य में निष्ठा रखते हुये भगवान के रूप में आये हुये आचार्य के मुखोल्लास के लिये दैनिक अनुष्ठान करते है । वरवरमुनि स्वामीजी रामानुज स्वामीजी में अनुराग के साथ अपने दैनिक अनुष्ठानों को करते है ।

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