श्री:
श्रीमते शठकोपाय नमः
श्रीमते रामानुजाय नमः
श्रीमद्वरवर मुनये नमः
श्लोक ५
आम्लान कोमलाकारं आताम्रविमला म्बरम ।
आपीनविपुलोरस्कं आजानुभुजभूषणम ॥ ५ ॥
आम्लान कोमलाकारं – स्वामीजी का दिव्य मंगल विग्रह बिना मुरझाये हुये पुष्प कि तरह है,
आताम्रविमला म्बरम – लाल केसरीया वस्त्रों को धारण किए हुये,
आपीनविपुलोरस्कं – व्यापक रूप से विस्तारित छाती,
आजानुभुजभूषणम – जैसे आभूषण शरीर पर विस्तृत होते है वैसे हाथ घुटनों तक विस्तृत है ।
इस श्लोक में श्रीदेवराज स्वामी के मंगल विग्रह कि कोमलता सुन्दरता और वस्त्रों का अनुभव कर रहे है । स्वामीजी का दिव्य मंगल विग्रह छुई – मुई के पुष्प से भी मोलयाम है । पिछले श्लोक में स्वामीजी के श्रीचरणों कि कोमलता को वर्णन किया और इस श्लोक में स्वामीजी के दिव्य मंगल विग्रह कि कोमलता का वर्णन कर रहे है । श्रीवरवरमुनी स्वामीजी को अनंतालवान स्वामीजी के अवतार के रूप में माना जाता है । सन्यासियों के लिये लाल रंग के वस्त्र सुशोभित करते है । स्वामीजी का मंगल विग्रह दूधिया सागर कि तरह सफ़ेद है और लाल रंग के वस्त्र धारण करने के कारण सौंदर्यता और बढ़ जाती है । स्वामीजी उत्तम पुरुष के प्रकृति कि तरह छाती को विस्तारीत करने के अधिकारी है । स्वामीजी के हाथ इतने लंबे है कि वे घुटनों तक विस्तारित होते है ।
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