उपदेश रत्तिनमालै – सरल व्याख्या – पासुरम् ४१ – ४३

। ।श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमत् वरवरमुनये नमः। ।

उपदेश रत्तिनमालै

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पाशुरम् ४१
इकतालीसवां पाशुरम्। वे दयापूर्वक आऱायिरप्पडि (एक पडि में ३२ अक्षर होते हैं) व्याख्यानम् के बारे में बताते हैं, जिसे तिरुक्कुरुगैप्पिरान् पिळ्ळान् ने तिरुवाय्मॊऴि के लिए दयापूर्वक रचा था।

तॆळ्ळारुम् ज्ञानत् तिरुक्कुरुगैप्पिरान्
पिळ्ळान् ऎदिरासर् पेररुळाल् – उळ्ळारुम्
अन्बुडने माऱन् मऱैप् पॊरुळै अन्ऱु उरैत्तदु
इन्ब मिगु आऱायिरम्

तिरुक्कुरुगैप्पिरान् पिळ्ळान् को यतिराजर, जिन्हें श्री भाष्यकार के नाम से भी जाना जाता है, अपने ज्ञान पुत्र (अपने बुद्धि के माध्यम से पालक पुत्र) के रूप में मानते थे। यतिराजर् की अहैतुक दया के साथ-साथ तिरुवाय्मॊऴि के प्रति उनकी भक्ति और चेतना (संवेदनशील संस्था) के प्रति करुणा के कारण, पिळ्ळान् ने स्वयं ऎम्पॆरुमानार् के समय में तिरुवाय्मॊऴि के लिए एक व्याख्या लिखी, जिससे सभी अनुयायियों को प्रसन्नता हुई। इसे आऱायिरप्पडि कहा जाता है और इसका आकार श्री विष्णु पुराण के तुल्य है।

पाशुरम् ४२
बयालीसवां पाशुरम्। वे नन्जीयर् द्वारा दयापूर्वक लिखित ऒन्बदिनायिरप्पडि व्याख्यानम् की महिमा के बारे में बताते हैं।

तम् सीरै ज्ञानियर्गळ् ताम् पुगऴुम् वेदान्ति
नन्जीयर् ताम् भट्टर् नल्लरुळाल् – ऎन्जाद
आर्वमुडन् माऱन् मऱैप् पॊरुळै आय्न्दुरैत्तदु
एर् ऒन्बदिनायिरम्

शास्त्र ज्ञाता नन्जीयर् को मनाएँगे, जिन्हें वेदान्ति भी कहा जाता है। ऐसा इसलिए कहा‌ गया क्योंकि वे वेदान्त (उपनिषद) के विशेषज्ञ थे। नन्जीयर् ने अपने आचार्य भट्टर् की कृपा से नम्माऴ्वार् के तिरुवाय्मॊऴि के प्रति भक्तिभाव से और उसका भली-भांति विश्लेषण कर उसके के लिए व्याख्यान की, जिसे ऒन्बदिनायिरप्पडि कहा जाता है। नन्जीयर् को भट्टर् ने अपनी सर्वश्रेष्ठ अनुकंपा से परिवर्तित कर सम्प्रदाय का अर्थ सिखाया। उन्हें तिरुवाय्मॊऴि का सैकड़ों बार कालक्षेपम् (प्रवचन) करने की महानता प्राप्त हुई थी। यह ऒन्बदनियारिप्पडि श्री भाष्यम् के तुल्य है।

पाशुरम् ४३
तैंतालीसवां पासुरम्। इसके बाद वे दयापूर्वक इरुबत्तु नालायिरप्पडि व्याख्यानम् की महिमा के बारे में बताते हैं, जिसे पॆरियवाचान् पिळ्ळै ने तिरुवाय्मॊऴि के लिए दयापूर्वक लिखा।

नम्पिळ्ळै तम्मुडैय नल्लरुळाल् एवियिड
पिन् पॆरियवाचान् पिळ्ळै अदनाल् – इन्बा
वरुबत्ति माऱन् मऱैप् पॊरुळैच् चॊन्नदु
इरुबत्ति नालायिरम्

नम्पिळ्ळै, जिन्हें लोकाचार्य भी कहा जाता है उन्होंने अपने महत्वपूर्ण शिष्य व्याख्यान चक्रवर्ती (अपने विशाल ज्ञान के कारण व्याख्याकारों के मध्य महान) कहे जाने वाले पॆरियवाचान् पिळ्ळै को तिरुवाय्मॊऴि के लिए व्याख्यान लिखने का आदेश दिया। इसी आदेश को कारण-स्वरूप समझते हुए, पॆरियवाचान् पिळ्ळै द्वारा तिरुवाय्मॊऴि, जिसे भगवान की करुणा के कारण उत्पन्न हुई भक्ति से नम्माऴ्वार् ने रचा था, इसके लिए लिखी गई व्याख्या इरुबत्तु नालायिरप्पडि है। यह श्री रामायणम् के तुल्य है।

अडियेन् दीपिका रामानुज दासी

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