रामानुस नूट्रन्ददि (रामानुज नूत्तन्दादि) – सरल व्याख्या – पाशुर 61 से 70

श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमत्  वरवरमुनये नम:

रामानुस नूट्रन्दादि (रामानुज नूत्तन्दादि) – सरल व्याख्या

<< पाशुर 51 से 60 

https://divyaprabandham.koyil.org/wp-content/uploads/2017/03/emperumanar-vanamamalai.jpg

पाशुर ६१: जब श्रीरामानुज स्वामीजी के महानता के विषय में पूछताछ किया गया तो श्रीरंगामृत स्वामीजी ने बड़ी दया से उन्हें समझाया। 

कोळुन्दु विट्टु ओडिप् पडरुम् वेम् कोळ् विनैयाल् निरयत्तु
अळुन्दियिट्टेनै वन्दु आट्कोण्ड पिन्नुम् अरु मुनिवर्
तोळुम् तवत्तोन् एम् इरामानुसन् तोल् पुगळ् सुडर् मिक्कु
एळुन्ददु अत्ताल् नल् अदिसयम् कण्डदु इरुनिलमे

ऐसे संत आचार्य हैं, जो निरन्तर भगवान का स्मरण करते हैं और भगवान के लिए भी उनको पाना मुश्किल हैं। हमारे स्वामीजी श्रीरामानुजाचार्य में यह महानता हैं की ऐसे आचार्य उनके दिव्य चरणकमलों में नतमस्तक होते हैं और उन्होंने इस तपस्या को भगवान के शरण किया। मैं मेरे अनगिनत पापों के दु:ख से इस नरक रूपी संसार में डूबा हूँ। श्रीरामानुज स्वामीजी मुझे स्वीकार करके भी उनके दिव्य गुण चमक रही थी, शीघ्रता से सब स्थानों में फैल रही थी और कई अन्य जनों को भी डूबने से उठा रहे थे। यह देख कर यह विशाल भूमंडल आश्चर्यमग्न हुआ।

पाशुर ६२: वें बड़ी दया से अपनी संतुष्टी को प्रगट करते हैं कि उनके पापों से संपर्क को हटाया गया। 

इरुन्देन् इरुविनैप् पासम् कळऱ्ऱि इन्ऱु यान् इऱैयुम्
वरुन्देन् इनि एम् इरामानुसन् मन्नु मा मलर्त्ताळ्
पोरुन्दा निलै उडैप् पुन्मैयिनोर्क्कु ओन्ऱुम् नन्मै सेय्याप्
पेरुम् देवरैप् परवुम् पेरियोर् तम् कळल् पिडित्ते

हमारे नाथ श्रीरामानुज स्वामीजी के श्रेष्ठ पादारविन्दों का आश्रयण नहीं करनेवाले नीचों के प्रति कभी किसी प्रकार का उपकार नहीं करनेवाले श्रीरंगनाथ भगवान की स्तुति करनेवाले महात्मा श्रीकूरेश स्वामीजी के पादारविन्दों की सेवा कर पाने के बाद,अब मैं पुण्यपापरूप कर्मबन्धन से मुक्त हुआ; अब से मैं सांसारिक क्लेशों से सर्वथा दूर हो गया। इस गाथा में यह सुंदर अर्थ बताया गया है कि श्रीरामानुज स्वामीजी के पादारविन्दों के आश्रित भाग्यवान ही भगवत्कृपा के पात्र होते हैं। और इस भाग्य से वंचित लोग तो ज्ञानभक्त्यादि- विभूषित होने पर भी भगवत्कृपा नहीं पा सकते। 

पाशुर ६३: श्रीरंगामृत स्वामीजी श्रीरामानुज स्वामीजी से उनके चरण कमलों की  सेवा कैंकर्य करने हेतु इच्छा का निवेदन करते हैं, क्योंकि अब वें अनावश्यक अस्तित्व से छुटकारा पाये हैं। 

पिडियैत् तोडरुम् कळिऱेन्न यान् उन् पिऱन्गिय सीर्
अडियैत् तोडरुम्पडि नल्ग वेण्डुम् अऱु समयच्
चेडियैत् तोडरुम् मरुळ् सेऱिन्दोर् सिदैन्दु ओड वन्दु इप्
पडियैत् तोडरुम् इरामानुस मिक्क पण्डिदने

बाह्य व कुदृष्टियों के षड्दर्शन रूप क्षुद्रगुल्मों में प्रवेश करनेवाले अविवेकी लोगों को पराजित व पलायमान बनाने के लिए इस भूतल पर अवतीर्ण, एवं (जनता का उद्धार करने के लिए) उसके पीछे पड़नेवाले हे श्रीरामानुज स्वामिन्! अपनी स्त्रीके पीछे पीछे ही चलनेवाले हाथी की भांति मैं भी आपकी कृपा से, सौन्दर्यादि शुभगुणविभूषित आपके पादारविन्दों का ही अनुसरण करूं। श्रेष्ठ उपवन में प्रवेश कर आनंद पानेवालों की भांति श्रेष्ठ श्रीवैष्णव मत के अनुयायी बन कर आनंदित होने के बदले में, कई लोग इस कारण से बाह्य व कुदृष्टि मतरूप क्षुद्र कंटकवाले गुल्मों में प्रवेश कर दुख भोग रहे हैं कि उनका पाप उन्हें ऐसी प्रेरणा दे रहा है। श्री रामानुज स्वामीजी का अवतार होने के बाद, ये सभी पापी जन वाद में पराजित होकर पलायमान हो गये।

पाशुर ६४: श्रीरंगामृत स्वामीजी कहते हैं कि ,बाह्य (जो वेदों का पालन नहीं करते हैं) एवं कुदृष्टि (जो वेदों को गलत तरीके से पेश करते हैं) तत्ववाले जो तर्क वितर्क में शामिल होना चाहते हैं, इस संसार में उनका विरोध करने हेतु श्रीरामानुज स्वामीजी जो गजराज समान हैं, अवतार लिये हैं और उन जनों का बहुत शीघ्र अन्त भी होगा। 

पण् तरु माऱन् पसुम् तमिळ् आनन्दम् पाय् मदमाय्
विण्डिड एन्गळ् इरामानुस मुनि वेळम् मेय्म्मै
कोण्ड नल् वेदक् कोळुम् दण्डम् एन्दि कुवलयत्ते
मण्डि वन्दु एन्ऱदु वादियर्गाळ् उन्गळ् वाळ्वु अऱ्ऱदे

हमारे श्रीरामानुजमुनि मत्तगज श्रीशठकोपसूरी के अनुगृहीत मधुररागयुत सहस्रगीति के अनुभव से समुत्पन्न आनंदरूपी मदजलवाला होकर, सत्यार्थ प्रकाशक वेदरूपी डंडा लेकर इस भूमंडल पर संचार कर रहे है; अतः हे दुर्वादियों! तुम्हारा आयुष्य समाप्त हो गया। जब श्रीरामानुज स्वामीजी दिव्यप्रबंधों का ठीक अध्ययन का सत्य (नतु दूसरों की भांति मिथ्या) भूत वेदों के यथावस्थित अर्थों का वर्णन करने लगेंगे तब दुर्वादियों को इस भूतल पर रहने का स्थान कैसे मिलेगा ?

पाशुर ६५: श्रीरामानुज स्वामीजी द्वारा ज्ञान प्रदान  करने से श्रीरंगामृत स्वामीजी आनंदित होते हैं ताकि अब वे बाह्य और कुदृष्टि तत्ववालों पर विजय प्राप्त कर सके। 

वाळ्वु अऱ्ऱदु तोल्लै वादियऱ्कु एन्ऱुम् मऱैयवर् तम्
ताळ्वु अऱ्ऱदु तवम् तारणि पेऱ्ऱदु तत्तुव नूल्
कूळ् अऱ्ऱदु कुऱ्ऱमेल्लाम् पदित्त गुणत्तिनर्क्कु अन्
नाळ् अऱ्ऱदु नम् इरामानुसन् तन्द ग्यानत्तिले

हमारे श्रीरामानुज स्वामीजी से अनुगृहीत उपदेश से, इतने प्रकार के कल्याण हुए कि दुर्वादि नष्ट हो गये; वैदिकों का संकट परिहृत हुआ; भूतल भी भाग्यवान बना; तत्वशास्त्रों में सब की शंकाएं एवं भ्रम दूर हो गये; उनका निश्चित व वास्तविक अर्थ समझने में आया; और लोगों का पाप भी विनष्ट हो गया। कितने महान  बुद्धिमत्ता !!

पाशुर ६६: श्रीरंगामृत स्वामीजी, श्रीरामानुज स्वामीजी का मोक्ष प्रदान करने के गुण का आनन्द लेते हैं। 

ज्ञानम् कनिन्द नलम् कोण्डु नाळ् तोरुम् नैबवर्क्कु
वानम् कोडुप्पदु मादवन् वल्विनैयेन् मनत्तिल्
ईनम् कडिन्द इरामानुसन् तन्नै एय्दिनर्क्कु अत्
तानम् कोडुप्पदु तन् तगवु एन्नुम् सरण् कोडुत्ते

साक्षात् लक्ष्मीपति भगवान भी भक्तिरूप से परिणत ज्ञान से नित्य अपनी उपासना करने वालों को ही मोक्ष देते हैं। मुझ महापापी के हृद्गत समस्त कालुष्य मिटानेवाले श्रीरामानुज स्वामीजी तो अपने आश्रितों को स्वयं अपनी कृपा रूप साधन देकर उस मोक्ष को प्रदान करते हैं। मोक्षप्रदान भगवान का प्रसिद्ध व मुख्य काम है। परंतु उनसे मोक्ष लेना बहुत कठीन हैं; क्योंकि अपने पास किसी साधन के विना खाली हाथ रहनेवालों को वे मोक्ष नहीं देंगे। वह साधन भी बहुत दुर्लभ है। तथाहि जिसे पहले ज्ञान उत्पन्न हो, और बाद में वह धीरे धीरे बढ़कर परभक्ति परज्ञान इत्यादि परमभक्ति तक की अवस्थाएं प्राप्त करें, और उसके फलतया निरंतर भजन भी सिद्ध हो, ऐसे भाग्यवान ही भगवान के श्रीहस्त से मोक्ष पा सकेगा। श्रीरामानुजस्वामीजी भी मोक्षप्रदान करते हैं; परंतु वे ऐसे साधन की प्रतीक्षा नहीं करते; किंतु अपने पादाश्रितों को अपनी कृपा ही साधन बनाकर, उनमें और किसी प्रकार की योग्यता के विना ही उन्हें मोक्ष देते हैं। अतः भगवतसन्निधि जाने की अपेक्षा श्रीस्वामीजी का आश्रयण करना ही मुमुक्षुओं के लिए श्रेयस्कर है।

पाशुर ६७: श्रीरंगामृत स्वामीजी यह स्मरण कर आनंदित होते हैं की कैसे श्रीरामानुज स्वामीजी ने उनकी रक्षा की यह निर्देश देते हुए कि  भगवान द्वारा उनके पूजा हेतु दिये हुए इंद्रियाँ का प्रयोग सांसारिक विषयोंमें न करें और यह कहते हैं की अगर श्रीरामानुज स्वामीजी ने यह नहीं किया होता तो, और कोई भी उनकी रक्षा नहीं करता। 

सरणम् अडैन्द दरुमनुक्काप् पण्डु नूऱ्ऱुवरै
मरणम् अडैवित्त मायवन् तन्नै वणन्ग वैत्त
करणम् इवै उमक्कु अन्ऱु एन्ऱु इरामानुसन् उयिर्गट्कु
अरण् अन्गु अमैत्तिलनेल् अरणार् मऱ्ऱु इव्वारुयिर्क्के

“अपनी शरण में आये हुए युधिष्ठिर के लिए पूर्वकाल में दुर्योधनादि एक सौ कौरवों का विनाश करनेवाले भगवान ने अपनी सेवा करने के साधनताया ही तुम्हें ये इन्द्रियाँ दी हैं; अतः ये तुम्हारे अपने भोगके लिए नहीं।” यदि श्रीरामानुज स्वामीजी यह उपदेश देते हुए आत्माओं की रक्षा नहीं करते; तो दूसरा कौन इनका रक्षक होता? (कोई नहीं ।) श्रीरामानुज स्वामीजी ने सबको यह उपदेश दिया की यह अत्यद्भूत मानवशरीर भगवान की सेवा करने के लिए ही मिला है, न तु भोग भोगने के लिए। भगवत्सेवा करने से ही आत्मा का उद्धार होगा; विषयोपभोग करने से अधोगति मिलेगी।

पाशुर ६८: इस संसार में रहते हुए मेरा मन और आत्मा श्रीरामानुज स्वामीजी के शिष्यों के गुणों में निरत रहता हैं। इसके पश्चात मेरे समान और कोई नहीं हैं। 

आर् एनक्कु इन्ऱु निगर् सोल्लिल् मायन् अन्ऱु ऐवर् देय्वत्
तेरिनिल् सेप्पिय गीतैयिन् सेम्मैप् पोरुळ् तेरिय
पारिनिल् सोन्न इरामानुसनैप् पणियुम् नल्लोर्
सीरिनिल् सेन्ऱु पणिन्ददु एन् आवियुम् सिन्दैयुमे

पूर्वकाल में पांडवों के दिव्य रथ पर (अर्जुन के सारथि के रूप में) विराजमान अत्याश्चर्यमय दिव्यचेष्ठितवाले श्रीकृष्णभगवान से अनुगृहीत भगवद्गीता के असली अर्थों को सबको सरलता से समझाते हुए गीताभाष्य रचनेवाले श्रीरामानुज स्वामीजी का भजन करनेवाले श्रेष्ठ पुरुषों के कल्याणगुणों में मेरी आत्मा और मन मग्न हो गये। अब मेरे सदृश धन्य दूसरा कौन होगा? श्री रामानुज-भाष्य पढ़कर ही हम सरलता से भगवद्गीता के सच्चे अर्थ जान सकते हैं।

पाशुर ६९: भगवान से भी अधीक श्रीरामानुज स्वामीजी द्वारा श्रीरंगामृत स्वामीजी के उपर अनेक महान लाभार्थ को स्मरण करते हुए श्रीरंगामृत स्वामीजी बहुत आनंदित होते हैं।  

सिन्दैयिनोडु करणन्गळ् यावुम् सिदैन्दु मुन्नाळ्
अन्दम् उऱ्ऱु आळ्न्ददु कण्डु अवै एन् तनक्कु अन्ऱु अरुळाल्
तन्द अरन्गनुम् तन् चरण् तन्दिलन् तान् अदु तन्दु
एन्दै इरामानुसन् वन्दु एडुत्तनन् इन्ऱु एन्नैये

सृष्टि से पहले (अर्थात् प्रलयकाल में) जब मन और दूसरा इंद्रियां (और शरीर) स्थूल रूप छोड़कर उपसंहृत हुए थे और आत्मा अचेतन-सा रह गया, तब (ऐसे अचेतनप्राय प्राणियों में एक) मुझको अपनी कृपा से फिर शरीर व इंद्रियों का प्रदान करनेवाले श्रीरंगनाथ भगवान ने अपने पादारविन्द नहीं दिखाये( माने पादारविन्दों के दर्शन देकर मेरे उज्जीवित होने का मार्ग नहीं बताया )। हमारे नाथ श्री रामानुज स्वामीजी ने तो अपने आप ही उसे दिखाकर अब मेरा उद्धार किया ।

पाशुर ७०: श्रीरामानुज स्वामीजी को देखते हुए जिन्होंने इतना महान लाभ प्रदान किया हैं श्रीरंगामृत स्वामीजी पूछते हैं अब उनको और क्या प्रदान करेंगे जब कि  इतना कुछ अभी तक दे चुके हैं। 

एन्नैयुम् पार्त्तु एन् इयल्वैयुम् पार्त्तु एण्णिल् पल् गुणत्त
उन्नैयुम् पार्क्किल् अरुळ् सेय्वदे नलम् अन्ऱि एन् पाल्
पिन्नैयुम् पार्क्किल् नलम् उळद्E उन् पेरुम् करुणै
तन्नै एन् पार्प्पर् इरामानुसा उन्नैच् चार्न्दवरे

हे रामानुज स्वामिन्। (गुणलेश से भी दरिद्र और अनवधिक दोषों से पूर्ण) मुझको देखकर, आकिंचन्य व अनन्यगतित्वरूप मेरा स्वभाव देखकर और असंख्येय कल्याणगुणभरित अपने को भी देखने पर, मुझ पर कृपा करना ही आपके लिए उचित होगा। यह छोडकर, फिर भी यदि आप मुझमें किंचित् गुण ढूंढने का ही प्रयत्न करेंगे, (और यह निश्चय कर डालेंगे कि विना किंचितमात्र गुण के, इसका स्वीकार नहीं करना चाहिए) तो आपके आश्रित भक्त जन आपकी महती कृपा के बारे में क्या सोचेंगे? (उसे बहुत अल्प ही मानेंगे; अतः इस अपयश का अवकाश मत दीजिए ।) यह तो साधारण शास्त्र की मर्यादा है कि पुण्यवान मानव ही गुरुकृपा का पात्र होगा। परंतु जरा विचार करने पर कहना पड़ता है कि पुण्यवान के प्रति की जानेवाली कृपा अत्यल्प कृपा है, अथवा कृपा कहलाने योग्य ही नहीं। श्रेष्ठ, अथवा सच्ची कृपा तो वही होगी, जो कि सर्वथा गुणशून्य व पापपूर्ण व्यक्ति पर की जायगी। अतः आप मेरे पाप देखकर दया करने में प्रोत्साहित हो जाइए; इसके बदले में यदि आप संकोच पायेंगे, तो आपके पादाश्रित महात्मालोग आपकी कृपा को अत्यल्प समझ लेंगे। 

आधार : https://divyaprabandham.koyil.org/index.php/2020/05/ramanusa-nurrandhadhi-pasurams-61-70-simple/

अडियेन् केशव् रामानुज दास्

archived in https://divyaprabandham.koyil.org

pramEyam (goal) – https://koyil.org
pramANam (scriptures) – http://granthams.koyil.org
pramAthA (preceptors) – http://acharyas.koyil.org
SrIvaishNava education/kids portal – http://pillai.koyil.org

Leave a Comment