तिरुप्पावै – सरल व्यख्या – तनियन्

श्रीः  श्रीमते शठकोपाय  नमः   श्रीमते रामानुजाय  नमः   श्रीमत् वरवरमुनये नमः

तिरुप्पावै

नीळा तुङ्ग स्तनगिरि तटीसुप्तम् उद्बोद्य कृश्णम्

पारार्त्यम् स्वम् श्रुति शत शिरस् सिद्दम् अद्यापयन्ती

स्वोच्चिश्टायाम् स्रजि निगळितम् या बलात् क्रुत्य भुन्ग्ते

गोदा तस्यै नम इदम् इदम् भूय एवास्तु भूय:।

भगवान श्रीकृष्ण ,नैप्पीनै पिराट्टि (जो भगवान श्रीमन् नारायण् की एक सहचरी नीळा देवी की अवतार है) के वक्षस्थल, जो पहाड़ की ढलान की तरह है, उन पर सर रख सो रहे है।

आण्डाळ् उन्ही श्रीकृष्ण को, स्वयं पहनी हुयी माला पहनाकर अपने बंधन में बाँध लिया है। वह उन्हें जगाकर, जैसे वेदांत (वेदों के अंतिम भाग) में बतलाया गया, वैसे अपने पारतन्त्रियम् (पूर्ण रूप से एम्पेरुमान पर निर्भर), होने के बारे में बतलाती है।

आण्डाळ् जो हठपूर्वक एम्पेरुमान के पास जाकर, उन्हें अपना बनाकर आनंदित हो सदा उन्ही के पास रह गयी, ऐसी देवी को मेरा अभिवादन।

अन्नवयल् पुदुवै आण्डाळ् अरन्गर्कुप्

पन्नु तिरुप्पावैप् पल्पदियम् – इन्निसैयाल्

पाडिक् कोडुत्ताळ् नऱ्पामालै पूमालै

सूडिक् कोडुत्ताळैच् चोल्लु।

आण्डाळ् नाच्चियार्, हरे भरे खेतों से घिरे, जिनके चारों ओर  हंस घूम रहे है ऐसे श्रीविल्लिपुत्तूर में अवतरित हुयी है।

कृपा करते हुये अपने मधुर कंठ से इस तिरुप्पावै पाशुर रूपी माला को भगवान श्री रंगनाथजी को समर्पित की और पहले स्वयं धारण की हुयी पुष्प माला भी अर्पित की| उस् महान् आन्डाळ् के गुण् गायें 

सूडिक् कोडुत्त सुडर्क् कोडिये तोल्पावै

पाडि अरुळ वल्ल पल् वळैयाय् – नाडि नी

वेन्गडवर्कु  एन्नै विदि एन्र इम्माट्रम्

नाम् कडवा वण्णमे नल्गु

वह जो स्वयं धारण की हुयी माला अर्पितकरने वाली, जो एक अमरलता है!

वह जो कृपा कर, पावै नोन्बु (एक अनुष्ठान जो लड़कियां करती है) के बारे में गान किया, व्रत जो लम्बे समय तक रखा जाता है।

वह जो अपने दिव्य हाथों में चूड़ियां धारण करती है। वह जिसने मन्मथ (कामदेव) से तिरुवेंगड़म में एम्पेरुमान की सेविका बनाने की प्रार्थना की।

आप हम पर अनुग्रह कीजिये ताकि हमें उसे बताना न पड़े|

अडियेन श्याम सुन्दर रामानुज दास

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