श्री:
श्रीमते शठकोपाय नम:
श्रीमते रामानुजाय नम:
श्रीमत् वरवरमुनये नम:
तनियन् ज्ञान सारं – पासुर (श्लोक) १
श्री देवराजमुनी श्री रामानुज स्वामीजी के शिष्य थे और उन्होने अपने आचार्य के दिव्य श्री चरणोंमें शरणगति की। उन्होने समस्त वेद और शास्त्रों कों अपने आचार्य से सीखा और समझा। इसी कारण उन्हे परम तत्त्व भगवान तक पहुँचने का और परम आनंद प्राप्त करने का मूलभूत रहस्य अच्छी तरह से समझ गया था । वो नित्य अपने आचार्य श्री रामानुज स्वामीजी के श्री चरणों के निकट अपने आचार्य के सुख केलिए सभी केंकर्य कराते हुये बिराजे। ऐसी विशेष गुरुनिष्ठा युक्त श्री देवराजमुनी, अपनी विशाल दया के कारण यह चाहते थे उन्होने जो तत्त्व अपने आचार्य से सुने उनका सभी जीवों कों विशेष लाभ मिले। अत: श्री रामानुज स्वामीजी के निर्देशों के आधार पर उन्होने ‘ज्ञानसारम्’ यह सरल स्पष्ट तमिल भाषा में तमिल वेन्पा शैली में और सब कोई समझ सकें ऐसा लिखा और भगवान के यथार्थ स्परूप, भगवान तक पहुँचने का मार्ग, और भगवान से मिलनेपर होने वले परमानंद को हमे प्रदान किया।