नाच्चियार् तिरुमोऴि – नौंवा तिरुमोऴि – सिन्दुरच् चॆम्बॊडि

श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्री वानाचल महामुनये नमः

नाच्चियार् तिरुमोऴि

<< आठवां तिरुमोऴि

आठवें दशक में आण्डाळ् (गोदाम्बा) दुःखी थी अर्थात उसके अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगा था। वहाँ कुछ मेघ थे भगवान के पास जाकर इसकी दशा के बारे में बताने। परंतु वे कहीं नहीं ग‌ए, और पूरा जल बरसकर पूर्णतः अदृश्य हो गए। भरपूर वर्षा के कारण उस स्थान पर बहुत-से पुष्प खिले। वे सारे पुष्प इसे भगवान के दिव्य अंग और दिव्य‌ रूप की स्मरण‌ दिलाकार सताने लगे। हम देख सकते हैं कि जो चंद्रमा, मंद पवन, पुष्प आदि प्रियतम के मिलन में प्रसन्नता देनेवाली वस्तुएं हैं, वही विरह में कष्ट देती हैं। भगवान के विरह में पीड़ाग्रस्त होकर आण्डाळ्, इस दशक‌ और अगले में, यह व्यक्त करती है कि ये [ऊपर दी गई] वस्तुएं कैसे इसके अस्तित्व को कठिन कर रही हैं। इन‌ दो दशकों में आण्डाळ् का अनुभव श्री शठकोप स्वामी (नम्माऴ्वार्) के “इन्नुयिर्च् चेवल्” (तिरुवाय्मोऴि ९.५) दशक के अनुभव जैसा है। यह दशक उसके तिरुमालिरुञ्जोलै सुंदर-बाहु भगवान के अनुभव के संदर्भ में है।

पहला पासुरम्। वह कहती है कि किरिमदाना‌ कीडों ने तिरुमालिरुञ्जोलै (मदुरै में वृषभाद्रि) को पूरी तरह से ढँक दिया है। वह अचंभित होकर सोचती है कि भगवान संदरबाहु (अऴगर/सुंदरत्तोळुडैयान्/कल्लऴगर ये तिरुमालिरुञ्जोलै के भगवान श्रीमन्नारायण के दिव्य नाम हैं) द्वारा बिछाए गए जाल से हमारा छुटना क्या संभव है?

सिंदूरच् चॆम्बॊडि पोल् तिरुमालिरुञ्जोलै ऎङ्गुम्
इन्दिरगोपङ्गळे ऎऴुन्दुम् परन्दिट्टनवाल्
मन्दरम् नाट्टि अन्ऱु मधुरक् कॊऴुञ्जाऱु कोण्ड
सुन्दरत्तोळ् उडैयान् सुऴलैयिल् निन्ऱु उय्दुङ्गॊलो?

तिरुमालिरुञ्जोलै पर, लाल रंग के किरिमदाने कीड़े ऊपर उठे हैं और सभी दिशाओं में फैल रहे हैं। हाय! भगवान सुंदरबाहु (सुंदरत्तोळुडैयान्, तिरुमालिरुञ्जोलै के भगवान) जिसने, देवताओं की शरणागति पर उनके लिए अमृत निकालने में सहायता करने के हेतु, मन्थर पर्वत से क्षीरसागर को मथकर, उसमें से अमृत रस के समान बाहर निकलने वाली पिराट्टि (माँ श्रीमहालक्ष्मी) को ले लिया, क्या हम उस भगवान के बिछाए जाल से बच पाएँगे?

दूसरा पासुरम्। मैंने भगवान अऴगर् के कंधों पर सजी माला को चाहा। उसके कारण जो मुझे सहना पड़ा, उन कष्टों को मैं किसे व्यक्त करूँ?

पोऱ् कळिऱु पॊरुम् मालिरुञ्जोलै अम्पूम्बुऱविल्
-क् कॊडि मुल्लैगळुम् तवळ नगै काट्टुगिन्ऱ
काऱ्-क्कॊळ् पडाक्कळ् निन्ऱु कऴऱिच् चिरिक्कत् तरियेन्
आर्क्किडुगो? तोऴि! अवन् तार् सॆय्द पूसलैये

तिरुमालिरुञ्जोलै एक ऐसा क्षेत्र है, जहाँ युद्ध के हाथी, एक दूसरे के साथ लड़ाई और क्रीड़ा करते हैं। तिरुमालिरुञ्जोलै पहाड़ के ढलानों पर आए मोगरे की कलियाँ मुझे भगवान अऴगर् के शुभ्र स्मिता का स्मरण कराती हैं।‌ पडा (तमिऴ् भाषा में एक औषधीय सुखा मेवा) के पुष्प मानो मेरे सामने दृढ़ खड़े होकर मंद मुस्कुरा रहे हैं, जैसे कह रहे हों, “तुम मुझसे नहीं बच सकती”। इसलिए मैं स्वयं को नहीं टिका पा रही। हे सखी! किससे व्यक्त करूँ कि‌ उसके दिव्य स्कंधों पर विद्यमान माला‌ मुझे मोहित कर रही है?

तीसरा पासुरम्। भगवान के दिव्य वर्ण से मिलते हुए सुमनों को देखकर वह पूछती है, “क्या उसने जो किया वह उचित है?”

करुविळै ऒण्मलर्गाळ्! काया मलर्गाळ्! तिरुमाल्
उरुवॊळि काट्टुगिन्ऱीर ऎनक्कु उय्वऴक्कु ऒन्ऱु उरैयीर्
तिरुविळैयाडु तिण् तोळ् तिरुमालिरुञ्जोलै नम्बि
वरि वळैयिल् पुगुन्दु वन्दि पट्रुम् वऴक्कुळदे

हे सुंदर नील पुष्प! हे अंजन पुष्प (नील‌लोहित रंग का पुष्प)! तुम सब मुझे भगवान के दिव्य रूप का स्मरण कराते हो। कृपया मुझे बचने का कोई मार्ग बताओ। तिरुमालिरुञ्जोलै अऴगर्, जिसके दृढ़ कंधे हैं जहाँ पिराट्टी खेलती हैं, और जो सारे कल्याण गुणों से संपन्न हैं, क्या उसे इस प्रकार मेरे घर प्रवेश कर, बलपूर्वक मेरी चूड़ियाँ चुराना शोभा देती है?

चौथा पासुरम्। उसे सताने वाले पाँच क्रूर अपराधियों की वह निन्दा करती है।

पैंबॊऴिल् वाऴ् कुयिल्गाळ्! मयिल्गाळ्! ऒण् करुविलैगाळ्!
वम्बक् कळङ्गनिगाळ्! वण्णप्पूवै नऱुमलर्गाळ्!
ऐम्बॆरुम् पादगर्गाळ! अणि‌ मालिरुञ्जोलै‌ निन्ऱ
ऎम्बॆरुमानुडैय निऱम् उङ्गळुक्कु ऎन् सॆय्वदे?

हे विशाल उपवनों में रहनेवाले कोयलों! हे मयूरों! हे सुंदर नील पुष्प! हे ताजे दारुहरिद्रा के फलों! हे सुंदर रंग के सुगंधित अंजन पुष्पों (नील‌लोहित रंग का पुष्प)! हे तुम पाँच अपराधियों! क्यों तुम सभी तिरुमालिरुञ्जोलै अऴगर् के सुंदर वर्ण के हो? (क्या ये मुझे सताने के लिए है?)

पाँचवा पासुरम्। वहाँ के भौंरे, धाराएँ और कमल पुष्पों से वह पूछती है कि उसके लिए एक शरण बताए।

तुङ्ग मलर्प्पोऴिल् सूऴ् तिरुमालिरुञ्जोलै निन्ऱ
सॆङ्गण् करुमुगिलिन् तिरु उरुप् पोल् मलर् मेल्
तॊङ्गिय वण्डु इनङ्गाळ्! तॊगु पूञ्जुनैगाळ्! सुनैयिल्
तङ्गु सॆन्दामरैगाळ्! ऎनक्कु ओर् सरण् साट्रुमिने

हे भँवरों के झुंड जो फूलों पर ऐसे बसे हैं कि भगवान संदरबाहु/अऴगर् के दिव्य रूप के जैसे प्रतीत होते हैं, जिनका रूप श्याम रंग के मेघ के समान हैं और जिनके लाल नेत्र सुंदर कमल पुष्प के समान हैं, और जो कृपापूर्वक तिरुमालिरुञ्जोलै में खड़े हैं, जो उभरते पुष्पों से भरे उपवनों से घिरा हुआ है! हे एक साथ बहनेवाली सुंदर धाराएँ! हे लाल कमल पुष्प जो उन धाराओं में प्रफुल्लित हैं! कृपया मेरे लिए एक शरण बताईए।

छठवां पासुरम्। वह भगवान अऴगर् के लिए एक सौ भाण्डों में मक्खन और एक सौ भाण्डों में खीर समर्पित करने की इच्छा रखती है। स्वामी रामानुजाचार्य ने क‌ई वर्षों बाद उसकी इच्छा को पूर्ण किया और गोदा देवी ने तब उन्हें “नम् कोयिल् अण्णर्” (मेरे श्रीरङ्गम् से आए हुए बड़े भाई) कहकर सम्मानित किया।

नारु नऱुम्पॊऴिल् मालिरुञ्जोलै नम्बिक्कु नान्
नूऱु तडाविल् वॆण्णॆय् वाय् नेर्न्दु परावि वैत्तेन्
नूऱु तडा निऱैन्द अक्कारवडिसिल् सॊन्नेन्
एऱु तिरुवुडैयान् इन्ऱु वन्दु इवै कॊळ्ळुङ्गॊलो?

भगवान सर्व कल्याण गुण संपन्न हैं और नित्य रूप से तिरुमालिरुञ्जोलै में स्थित हैं, जो सुगंधित धाराओं से भरपूर है। मैंने उस भगवान को सौ भाण्डों में मक्खन समर्पित किया, अपने वचन द्वारा। इसके अतिरिक्त, मैंने सौ भाण्डों में मीठी चावल की खीर (अक्कारवडिसिल्) समर्पित किया, अपने इन वचनों से। क्या भगवान अऴगर्, जिनकी संपत्ति प्रति दिन बढ़ती जा रही है, कृपापूर्वक आज इन प्रसादों को स्वीकार करेंगे?

सातवां पासुरम्। वह कहती हैं कि यदी अऴगर् भगवान इन प्रसादों को स्वीकार करेंगे तो वह उनकी और भी अनेक कैंङ्कर्य करेगी।

इन्ऱु वन्दु इत्तनैयुम् अमुदु सॆय्दिडप् पेऱिल् नान्
ऒन्ऱु नूऱु आयिरमागक् कॊडुत्तुप् पिन्नुम् आळुम् सॆय्वन्
तॆन्ऱल् मणम् कमऴुम् तिरुमालिरुञ्जोलै तन्नुळ्
निन्ऱ पिरान् अडियेन् मनत्ते वन्दु नेर् पडिले

मेरे स्वामी अऴगर् तिरुमालिरुञ्जोलै पर्वत में नित्य वास करते हैं, जहाँ सुगंध देते हुए दक्षिण दिशा से शीतल पवन मंद गति से चल रहा है। यदी वे अऴगर् कृपापूर्वक इन सौ भाण्डों के मक्खन और सौ भाण्डों की चावल की खीर स्वीकारते हैं, और उतना ही नहीं, मेरे हृदय में भी नित्यवास करते हैं, तब मैं और शत सहस्त्र भाण्डे भरकर मक्खन और खीर समर्पित करूँगी और आगे क‌ई सेवाएँ भी करूँगी।

आठवां पासुरम्। वह पूछती है कि क्या अऴगर् भगवान के आगमन का गौरैया द्वारा दी गई घोषणा सत्य है।

कालै ऎऴुन्दिरुन्दु करियर कुरुविक् कणङ्गळ्
मालिन् वरवु सॊल्लि मरुळ् पाडुदल् मॆय्म्मै कॊलो?
सोलै मलैप् पॆरुमान् तुवरापति ऎम्पेरुमान्
आलिन् इलैप् पॆरुमान् अवन् वार्त्तै उरैक्किन्ऱदे

काली गौरैया झुंड में, भोर सवेरे जागकर, उस परमात्मा के शब्द बोल रही हैं, जो तिरुमालिरुञ्जोलै के स्वामी हैं, द्वारका के राजा हैं और नरम वटपत्र पर लेटे हैं। ये चिड़िया आगमन की घोषणा मधुर स्वर – पण से कर रही हैं। क्या यह घटना सत्य होगा?

नौंवा पासुरम्। कब मैं, जो अमलतास की भाँति स्वयं को नष्ट कर रही हूँ, भगवान के शंखनाद और धनुष की प्रत्यंचा के खींचने की ध्वनि सुन पाऊँगी?

कोन्गलरुम् पॊऴिल् मालिरुञ्जोलैयिल् कॊन्ऱैगळ् मेल्
तूङ्गु पॊन् मालैगळोडु उडनाय् निन्ऱु तूङ्गुगिन्ऱेन्
पूँगॊळ् तिरुमुगत्तु मडत्तु ऊदिय सङ्गॊलियुम्
सार्ङ्ग विल् नाणॊलियुम् तलैप्पॆय्वदु ऎङ्ग्यान्ऱु कॊलो

तिरुमालिरुञ्जोलै के कुंज में मलाबार नीम वृक्ष में फूल खिल रहे हैं। मैं बिना किसी उपयोग के उसी प्रकार हूँ जैसे कि सुवर्ण रंग की मालाएँ जो अमलतास के ऊपरी भाग से लटक रहे हैं, जो तिरुमालिरुञ्जोलै के पर्वतों के ढलानों पर दिखते हैं। कब श्री पाञ्चजन्य शंख का नाद, जो भगवान के सुंदर ओंठ पर रखा जाता है, और उनके धनुष शार्ङ्गम् की प्रत्यंचा चढ़ाने की ध्वनि मुझ तक पहुँचेंगी?

दसवां पासुरम्। वह इस दशक को गानेवालों को प्राप्त लाभ को व्यक्त करते हुए इस दशक को विराम देती है।

सन्दॊडु कारगिलुम् सुमन्दु तडङ्गळ् पॊरुदु
वन्दिऴियुम् सिलम्बाऱुडै मालिरुञ्जोलै निन्ऱ
सुन्दरनै सुरुम्बार् कुऴल् कोदै तॊगुत्तुरैत्त
सॆन्दमिऴ् पत्तुम् वल्लार् तिरुमाल् अडि सेर्वर्गळे

तिरुमालिरुञ्जोलै में नूपुर गंगा नाम की धारा दोनों तटों को तोड़कर, चन्दन और अगरु वृक्षों को लेकर बहती है। भगवान अऴगर् तिरुमालिरुञ्जोलै में नित्य वास कर रहे हैं। गोदा (आण्डाळ्) ने,‌ जो भृंग गूंजने वाले सुंदर केशों वाली है, कृपापूर्वक दस पाशुरम् की रचना की उस तिरुमालिरुञ्जोलै के भगवान पर। जिनमें इन दस पाशुरों को पाठ करने का सामर्थ्य है, वे श्रीमन्नारायण के दिव्य श्रीचरणों को प्राप्त करेंगे।

अडियेन् वैष्णवी रामानुज दासी

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