। ।श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमत् वरवरमुनये नमः। ।
पासुर ७
सातवाँ पासुर समझाता है कि कैसे उनके ईश्वरीय नाम दुनिया में दृढ़ता से स्थापित किये गए, क्योंकि उन्होंने दुनिया को महानतम लाभ प्रदान किया।
मटृळ्ळ आऴ्वार्गळुक्कु मुन्ने वन्दुदित्तु
नट्रमिऴाल् नूल् सेय्दु नाट्टै उय्त्त – पेट्रिमैयोर्
एन्ऱु मुदलाऴ्वार्गळ् एन्नुम् पेयर् इवर्क्कु
निन्ऱदुलगत्ते निगऴ्न्दु॥ ७॥
क्योंकि इन तीन आऴ्वारों ने अन्य आऴ्वारों के आगे अवतार लिया, और तमिऴ् में प्रबंध की रचना करके दुनिया का उचित मार्गदर्शन किया, इसलिए मुदल् आऴ्वार् शब्द उनके लिए दृढ़ता से स्थापित हो गया।
पासुर ८
क्योंकि उन्होंने कहा था कि अवतार क्रम का पालन करेंगे, उन्होंने ऐप्पसी महीने के बाद आनेवाले कार्तिगै महीने में दयापूर्वक तिरुमङ्गै आऴ्वार् के अवतार की चर्चा कर रहे हैं। दो पासुरों में तिरुमङ्गै आऴ्वार् की महानता की व्याख्या करते हैं।
सबसे पहले उन्होंने अपने हृदय को उस दिन की महानता के बारे में बताया जिस दिन तिरुमङ्गै आऴ्वार् का अवतार हुआ था।
पेदै नेञ्जे इन्ऱै पेरुमैयरिन्दिलैयो
एदु पेरुमै इन्ऱैक्कु एन्नेन्निल् – ओदुगिन्ऱेन्
वाय्त्त पुगऴ् मंङ्गैयर्कोन् मानिलत्तिल् वन्दुदित्त
कार्तिगैयिल् कार्तिगै नाळ् काण्॥ ८॥
ऐ अल्पमति हृदय! क्या तुम उस दिन की महानता जानते हो? मैं तुम्हे बताऊँगा, मेरी बात सुनो। आज कार्तिगै (कार्तिक) के महीने में कृत्तिका का दिन है। इसी दिन तिरुमङ्गै आऴ्वार् ने इस विशाल विश्व में अवतार लिया।
पासुर ९
उन्होंने नम्माऴ्वार् और तिरुमङ्गै आऴ्वार् के मध्य अद्भुत संबंध की व्याख्या की। वह अपने हृदय को उन लोगों के दैवीय् चरणों की प्रशंसा करने का निर्देश देते हैं जो इस दिन को मनाते हैं।
माऱन् पणित्त तमिऴ् मऱैक्कु मंङ्गैयर्कोन्
आऱंङ्गम् कूऱ अवतरित्त – वीऱूडैय
कार्तिगैयिल् कार्तिगैनाळ् इन्ऱेन्ऱु कादलिप्पार्
वायत्त मलर्ताळ्गळ् नेञ्जे वाऴ्त्तु ॥ ९॥
ऐ हृदय। नम्माऴ्वार् ने चार प्रबंधों की रचना की जो चार वेदों के बराबर हैं। जिस प्रकार उन चार वेदों के छह भाग हैं, उसी प्रकार कार्तिगै के महीने में कार्तिकेय नक्षत्र के इस महान दिन पर तिरुमङ्गै आऴ्वार् ने केवल छह प्रबंधों की रचना की जो नम्माऴ्वार् के प्रबंध के छह भाग हैं। जो जीव इस दिन को बहुत पसंद करते हैं, उनके दिव्य चरण कमलों की प्रशंसा करें।
पासुर ७
सातवाँ पासुर समझाता है कि कैसे उनके दिव्य नाम संसार में दृढ़ता से स्थापित किये गए, क्योंकि उन्होंने संसार को महानतम लाभ प्रदान किया।
मट्रुळ्ळ आवाऴ्वार्गळुक्कु मुन्ने वन्दुदित्त
नट्रमिऴाल् नूल् सॆय्दु नाट्टै उय्त्त – पॆट्रिमैयोर्
ऎन्ऱु मुदलाऴ्वार्गळ् ऎन्नुम् पॆयर् इवर्क्कु
निन्ऱदुलगत्ते निगऴ्न्दु
क्योंकि इन तीन आऴ्वारों ने अन्य आऴ्वारों के आगे अवतार लिया, और तमिऴ् में प्रबंध की रचना करके संसार का उचित मार्गदर्शन किया, इसलिए मुदल् आऴ्वार् शब्द उनके लिए दृढ़ता से स्थापित हो गया
पासुर ८
क्योंकि उन्होंने कहा था कि अवतार क्रम का पालन करेंगे, अय्प्पसी महीने के बाद आनेवाले कार्तिगई महीने में दयापूर्वक तिरुमङ्गै आऴ्वार् के अवतार की चर्चा कर रहे हैं। दो पासुरों में तिरुमङ्गै आऴ्वार् की महानता की व्याख्या करते हैं।
सबसे पहले उन्होंने अपने हृदय को उस दिन की महानता के बारे में बताया जिस दिन तिरुमङ्गै आऴ्वार का अवतार हुआ था।
पेदै नेञ्जे इन्ऱै पॆरुमैयऱिन्दिलैयो
एदु पॆरुमै इन्ऱैक्कु ऎन्ऱु ऎन्निल् – ओदुगिन्ऱेन्
वाय्त्त पुगऴ् मंङ्गैयर्कोन् मानिलत्तिल् वन्दुदित्त
कार्तिगैयिल् कार्तिगै नाळ् काण्
हे अल्पमति हृदय! क्या तुम उस दिन की महानता जानते हो? मैं तुम्हे बताऊँगा, मेरी बात सुनो। आज कार्तिगै (कार्तिक) के महीने में कार्तिगै का दिन है । इसी दिन तिरुमंङ्गै आऴ्वार् ने इस विशाल विश्व में अवतार लिया।
पासुर ९
उन्होंने नम्माऴ्वार् और तिरुमंगै आऴ्वार के मध्य अद्भुत संबंध की व्याख्या की। वह अपने हृदय को उन लोगों के दैवीय चरणों की प्रशंसा करने का निर्देश देते हैं जो इस दिन को मनाते हैं।
माऱन् पणित्त तमिऴ् मऱैक्कु मंङ्गैयर्कोन्
आऱंङ्गम् कूऱ अवतरित्त – वीऱूडैय
कार्तिगैयिल् कार्तिगैनाळ् इन्ऱॆन्ऱु कादलिप्पार्
वायत्त मलर्ताळ्गळ् नॆञ्जे वाऴ्त्तु
हे हृदय। नम्माऴ्वार् ने चार प्रबंधों की रचना की जो चार वेदों के बराबर हैं। जिस प्रकार उन चार वेदों के छह भाग हैं, उसी प्रकार कार्तिक के महीने में कार्तिकेय नक्षत्र के इस महान दिन पर तिरुमंङ्गै आऴ्वार ने केवल छह प्रबंधों की रचना की जो नम्माऴ्वार् के प्रबंध के छह भाग हैं। जो जीव इस दिन को बहुत पसंद करते हैं, उनके दिव्य चरण कमलों की प्रशंसा करें।
अडियेन् दीपिका रामानुज दासी
आधार: https://divyaprabandham.koyil.org/index.php/2020/06/upadhesa-raththina-malai-7-9-simple/
संगृहीत- https://divyaprabandham.koyil.org
प्रमेय (लक्ष्य) – https://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org