तिरुवाय्मोळि – सरल व्याख्या – १.१ – उयर्वर

श्री: श्रीमते शटकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमत वरवरमुनये नम:

कोयिल तिरुवाय्मोळि

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bhagavan-nammazhwar

सर्वेश्वर जो श्रिय:पति हैं सबसें सर्वश्रेष्ठ हैं, सारें कल्याण गुणों के निवास स्थान हैं, दिव्य रूप के हैं, श्रीवैकुण्ट और संसारम दोनों के नेता हैं, वेदों से प्रकाशित हैं, सर्वव्यापी हैं, सर्व नियन्ता हैं, सारें चेतनों औरअचित वस्तुओँ के अंतर्यामी हैं और उन्पर शासन करतें हैं। आलवार एम्पेरुमान के बारे में इन पहलुओं की व्याख्या करते हैं और इस दशक में उन्हें दिव्य ज्ञान और भक्ति प्रदान करने के बारे में सोचकर आनंदित हो जाते हैं।  

हमारें पूर्वाचार्यों

द्वारा समझाया गया है: यह पदिगम तिरुवाय्मोळी की सारांश है।  इस्की पहली ३ पासुरम इस पदिगम की सारांश हैं, और पहला पासुरम पहले तीन पासुरमो का सारांश हैं। पहले पासुरम का सारांश उसकी पहली पंक्ति है।  

 पहला पासुरम: इसमें असंख्येय कल्याण गुणों कि अस्तित्व, निर्हेतुक कृपा, नित्यसूरियों पर एकादिपत्यता, नित्य दिव्य मंगळ रूपों की धारणा इत्यादि एम्पेरुमान की सर्वेश्वर होनें की विषय को प्रकट करने वालि गुणों पर हैं. ऐसा कहने के बाद, नम्माळ्वार अपने हृदय को ऐसे एम्पेरुमान की हमेशा सेवा करने का निर्देश देते हैं।

उयर्वर उयर्नलं उड़ैयवन यवन अवन

मयर्वर मदिनलं अरुळिनन यवन अवन 

अयर्वरुम अमररगळ अदिपति यवन अवन 

तुयरऱू सुडरडि तोळुदेळु एन मनने 

ओह मेरे मन! एम्पेरुमान के चरण कमलों में हाथ जोड़कर प्रणाम करें और उत्थान करें। जो शास्त्रों में श्रेष्ट मानें जाने वाले अन्य विषयों को अस्तित्वहीन करनेवाले श्रेष्ठता के निवास मानें जातें हैं वें एम्पेरुमान हैं। मेरे अज्ञान को संपूर्ण रूप में अपने निर्हेतुक कृपा से मिटाकर सच्ची ज्ञान और भक्ति देनें वालें वें ही हैं।  नित्यसूरिया जिन्की विस्मरण जैसे दोष न हो उनके सर्व स्वामी वें ही हैं।

 दूसरा पासुरम: नम्माळ्वार भगवान (जो यहाँ “यवन” शब्द से प्रकटित हैं ) को अन्य सारे तत्वों से विशिष्ट बतातें हैं।

मननग मलम अर मलर मिसै एळुदरुम 

मननुणर्वु अळविलन  पोरीयुणर्वू  अवैयिलन 

इननुणर मुळुनलं एदिर निगळ कळिविनुम 

इननीलन एनन उयिर मिगु नरै इलने 

काम, क्रोध जैसे दोषों से रहित परिपक्व, आत्मा के स्वरूप को समझने वाले, मन से भी भगवान असीमित हैं।  अचित तत्त्वों को समझने वाले इन्द्रियों से वें असीमित हैं।  अत: वे चित और अचित से अलग हैं।  वें ही सम्पूर्ण ज्ञान तथा सम्पूर्ण आनंद मानें जातें हैं और इन्के समान श्रेष्ट कोई भी भूत , वर्तमान एवं भविष्य काल में नही हैं।  वे ही मेरे आधार हैं। इस दशक में सारें पासुरमो के अंत में “अवन तुयररु सुडरडि तोळुदेळु” को जोड़नी चाहिए

तीसरा पासुरम। नम्माळ्वार एम्पेरुमान के सँसार के सात संबंध की वर्णन करतें हुए यह निर्माण करतें हैं कि भगवान किसी भी वस्तु या काल से सीमित नहीं हैं।  

इलनदु उडैयनिदु एन निनैवु अरियवन 

निलनिडै विसुंबिडै उरुविनन अरुविनन 

पुलनोडु पुलनलन ओळीविलन परन्द 

अन नलनुडै ओरुवणै नणुगिनम नामे 

“दूर होने के कारण भगवान इसमें नहीं हैं” और “निकट होने के कारण भगवान इस वस्तु में हैं”, के जैसे सीमित वादों से भगवान समझें नहीं जा सकतें।  वें साँसारिक और अन्य अन्य मण्डलों में , सारें चित (जो कारणों को अदृश्य हैं) और अचित (जो कारणों को दृश्य हैं) के स्वामी हैं. अत: चित और अचित उन्के लक्षण और वें सर्व व्यापी हैं। ऐसे कल्याण गुणों से संपन्न विशिष्ट भगवान के प्रति शरणागति अनुष्ठान करना हमारा भाग्य हैं।

चौथा पासुरम: नम्माळ्वार यह स्पष्ट करतें हैं कि,सारे वस्तुओँ के सवरूप ( मूल गुण) को भगवान के नियंत्रण में होने को सामानाधिकरण्यम के द्वारा समझाया गया है।

ध्यान: सामानाधिकरण्यम का अर्थ है एक सेअधिक गुणों में समन्वय होना. इसका और एक अर्थ : एक वस्तु को समझाने वालें दो या अधिक शब्द।

 नाम अवन इवन उवन अवळ् इवळ् उवळ् एवळ्

ताम अवर इवर उवर अदु इदु उदु एदु

वीम अवै इवै उवै अवै नलं तींगु अवै

आम अवै आय अवै आय नींर अवरे

भगवान ही (जो अन्तर्यामी हैं ) सारे तत्व (पुल्लिंग, स्त्रीलिंग , चित, अचित, अनित्य) बने गए हैं जिन्हें अलग-अलग शब्दों से उनकी निकटता को इंगित करने के लिए पहचाना जाता है। जो कि अच्छे हैं या बुरे और जो अतीत में मौजूद थे, अब मौजूद हैं या भविष्य में अस्तित्व में आएंगे। सारे शब्द भगवान को ही संकेत करते हैं, और अन्य सारे शब्द भी उन्हीं को संकेत करतें हैं। अर्थात सारे वस्तु सारे समय पर भगवान के संपूर्ण अधिकार में हैं। 

पाँचवा पासुरम: रक्षा के रूप में एम्पेरुमान का सबको सहारा देना वैयाधिकरण्यं से समझाया गया है।  

ध्यान दे: वैयाधिकरण्यं अर्थात, दो या और अवस्थाओं का भिन्न अध:स्तर होना। इसका और एक अर्थ है दो या और शब्दों जो भिन्न तत्वों को समझाते हैं।  

अवरवर तमदमदु अरिवरि वगै वगै 

अवरवर इरैयवर एनवडि अड़ैवरगळ 

अवरवर इरैयवर कुरैविलर इरैयवर 

अवरवर विदि वळि अड़ैय निँरनरे 

भिन्न-भिन्न अधिकारि (योग्य व्यक्ति) अपने ज्ञान और इच्छा के अनुसार भिन्न-भिन्न देवताओँ से शरण लेते हैं। उन्हीं देवताओँ का उन शरणागतों की  इच्छाओँ की पूर्ती करना उचित होगा। लेकिन भगवान ही हैं  जो सबके स्वामी हैं, जो उन देवताओं में अंतर्यामी के रूप में रहते हैं, और निश्चित करतें हैं कि कर्मानुसार इन व्यक्तियों कि इच्छाएं सफल हो।  

छटवा पासुरम : नम्माळ्वार समझाते हैं कि कर्म /अकर्म सारे सामानाधिकरण्यम द्वारा भगवान् के नियंत्रण में है।  

नींरनर इरुंदनर किडंदनर तिरिंदनर 

निंड्रिलर इरुंदिलर किडंदिलर तिरिंदिलर 

एँरुमोरियलविनर एन निनैवरियवर 

एँरुमोरियलवोडु नींर एम् तिडरे 

एम्पेरुमान सारे तत्वों के कर्म (जैसे खड़ा होना, बैठना, लेट जाना, पैदल चलना) और अकर्म (खड़ा न होना, नहीं बैठना, लेटे न रहना , पैदल न चलना) के नियंता हैं।  ऐसे एम्पेरुमान अचिंत्य और सारे अन्य तत्वों से विशिष्ट हैं।  ये  हमारे भगवान हैं जो शास्त्रों से स्थापित किये गए हैं और शास्त्र ही सबसे विश्वसनीय साक्ष्य हैं।  

सातवाँ पासुरम :  प्रकृति और भगवान के बीच शरीर और आत्मा के रिश्ते के रूप में यह सामानाधिकरण्यम समझाया गया है।  

तिडविसुंबु एरि वळि नीर निलम इवै मिसै 

पडरपोरुळ मुळुवदुमाय अवै अवै तोरुम 

उडनमिसै उयिर एनक् करंदेंगुम परंदुळन 

सुडर्मिगु सुरुदियुळ इवै उंड सुरने 

भगवान परमात्मा हैं जो प्रकृति मंडल (सृष्टिकर्ता) बन जातें हैं ; पहले अग्नि, जल, आकाश , वायु, पृथ्वी को आधार के रूप में सृष्टि कर, उन्मे व्याप्त हो जाते हैं। भगवान सर्वत्र व्याप्त होते हैं जैसे आत्मा शरीर में व्याप्त होती हैं। वें सर्वत्र के भीतर और बाहर उपस्थित हैं। वें उज्जवल वेदों के लक्ष्य हैं। ये एम्पेरुमान प्रळय काल में सर्वत्र की भोग करतें हैं, और “सुरा” (भगवान) कहलातें हैं।  

आठवाँ पासुरम: नम्माळ्वार कहतें हैं कि ब्रह्मा और रुद्र जो व्यष्टि सृष्टि (भिन्न रूपों के सृष्टि ) और व्यष्टि संहारम (भिन्न रूपों के संहारम) के लिए ज़िम्मेदार हैं, भगवान के नियंत्रण में हैं।  

सुरर अरिवरू निलै विण मुदल मुळुवदुम 

वरन मुदलाय अवै मुळुदुंड परपरन 

पुरम ओरु मूंरेरित्तु अमरर्क्कुं अरिवु इयंदु 

अरन अयन एन उलगु अळित्तु अमैत्तु उळने 

भगवान मूल प्रकृति जैसो के कारण हैं (यह ब्रह्मा रद्रादियों के ज्ञान के पार है), और सारे प्रकृति मंडल की सँहार करते हैं ; देवताओं के स्वामी हैं, रूद्र के रूप में तीन पुरियों के सँहार किये (त्रिपुर संहारम), सर्वत्र के सँहार करतें हैं, पुन: सर्वत्र कि सृष्टी किए, देवताओँ को ज्ञान दिये। ब्रह्म रुद्रादियों के अंतर्यामी होते हुए भगवान ये सब करतें हैं।  

नौवीं पासुरम: नम्माळ्वार माद्यमिक बौद्ध तत्ववादियों (शून्यवादी) की खंडन किए।  ये वेद बाह्यो (वेदों को अस्वीकार करने वालें) में से प्रथम हैं।

उळन एनिल उळन अवन उरुवम इव्वुरुवुगळ 

उळन अलन एनिल अवन अरुवम इव्वरुवुगळ 

उळन एन इलन एन इवै गुणं उड़ैमैयिल 

उळन इरु तगैमैयोडु ओळिविलन परंदे 

भगवान ही अस्तित्व (आळ्वार के वैदिक सिद्धाँत)और अनस्तित्व (अवैदिक सिद्धांत)  के आधार हैं – इसलिए उन्के प्रसंग करते समय, उन्की अस्तित्व को मानना उचित हैं। कभी अनस्तित्व न होते हुए वे सर्वत्र व्यापी हैं। और इस प्राकृतिक मंडल में  उन्के आकार और निराकार आविर्भाव के संग हैं।  

दसवाँ पासुरम : इस पासुरम में  नम्माळ्वार भगवान के सर्व-व्यापकता को समझातें हैं।  

परंद तण परवै उळ नीर तोरुम परंदुळन 

परंद अंडम इदु एन निल विसुंबु ओळिवु अर

करंद सिल इडम तोरुम तिगळ पोरुळ् तोरुं 

करंदु एंगुम परंदुळन इवै उंड करने 

परमात्मा इस अखंड ब्रह्मांड में जितने सुख से हैं , उसी तरह शीतल सागर के हर बूँद में सूक्ष्म रूप में भी हैं।  हर छोटे से छोटे स्थान में हैं, और इन जगहों में उपस्थित स्व उज्जवल जीवात्माओ (इन जीवात्माओं के ज्ञान के पार )में भी हैं। सर्वव्यापी होने के कारण, सँहार के समय सर्वत्र भोग करके भी स्थिर रहें।  

ग्यारहवीं पासुरम : आळ्वार कहतें हैं कि, भगवान के परत्व को संक्षेपण करने वाले इन दस पासुरमो को सीखने/कहने/समझने का फल मोक्ष है।  

कर विसुंबु एरि वळि नीर निलम इवै मिसै 

वरनविल तिरलवलि अळि पोरै आइ निन्र 

परन अड़ि मेल कुरुकूर्च चटकोपन सोल 

निरैनिरै आयिरत्तु इवै पत्तुम वीडे 

ये १० पासुरम (अत्यंत कृपा संग गाये गए , और जो सम्पूर्ण कल्याण करने वाले हैं ) नम्माळ्वार (जो आळ्वारतिरुनगरी में जन्में) एम्पेरुमान के दिव्य चरण कमलों में समर्पित किए गए हैं। जो पञ्चभूतों (आकाश, वायु, अग्नि, जल, और भूमि) और उन्के गुणों (नाद , ताकत , गर्मी, शीतलता, और सहनशीलता) के निवास हैं; जिन्के ये सभी लक्षण हैं।  

अडियेन प्रीती रामानुज दासी

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