श्री: श्रीमते शटकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमत वरवरमुनये नम:
भक्तामृतं विश्वजनानुमोदनम सर्वार्थदम श्री शटकोप वांग्मयम |
सहस्र शाकोपनिषद समागमम नमाम्यहम द्राविड़ वेद सागरं ||
तिरुवाय्मोळि जो श्रीमन नारायण के भक्तों को अमृत समान है , जो सबको आनंद देने वालि है , जो सबको सारे मंगलमय फल देने वालि हैं, जो साम वेद और चांदोग्य उपनिषद् के सहस्र शाकों (हज़ार शाखाएं) के समान हैं, जो नम्माळ्वार के दिव्य शब्दों से बरी हैं, और जो द्राविड़ (तमिळ) वेदों की समुद्र हैं।
तिरुवळुदि नाडेन्नुम तेनकुरुगूर एनृम
मरुविनिय वण्पोरुनल एनृम अरुमरैगळ
अंदादि सैदान अडि इणैये एप्पोळुदुम
सिंदियाय नेंजे तेळिंदु
हे मन! स्पष्टता के सात नम्माळ्वार के दिव्य चरण कमलों पर ध्यान करो, जो तिरुवळुदि नाडु और तिरुक्कुरुगूर नामक सुँदर , पवित्र प्रदेश और उसमें बहनें वालि तामिरभरणी नदी पर ध्यान करतें, अंदादि रूप में वेदों के अर्थ अपने तिरुवाय्मोळि में प्रकट किये|
मनत्तालुम वायालुम वण्कु रुगूर पेणुं
इनत्तारै अल्लादु इरैंजेन दनत्तालुम
ऐदुम कुरैविलेन एंदै शटकोपन
पादंगळ् यामुडैय पट्रू
मेरे स्वामी नम्माळ्वार के चरण कमलों के प्रति शरणागति करने से मेरी धन की भी कोई कमी नहीं हैं के में आळ्वारतिरुनगरि के सेवा करनेवालों से असंगत लोगों की पूजा करूँ।
एइंद पेरुं कीर्ति इरामानुस मुनि तन
वायंद मलर पादं वणंगुगिंरेन आईंद पेरुं
सीरार सडगोपन सेंतमिळ वेदं दरिक्कुम
पेराद उळ्ळम पेर
सर्वश्रेष्ठ कल्याण गुणों से भरे एम्पेरुमानार के दिव्य चरण कमलों को पूजता हूँ जिस्से ऐसा मन पाऊँ जिसे निष्कलंक और कल्याण गुणों से सम्पूर्ण नम्माळ्वार से रचित सुँदर तमिळ वेदं जो तिरुवाय्मोळी हैं, उसके सिवाय अन्य कोई विषय में दिलचस्प न हो |
वान तिगळुं सोलै मदिळ् अरंगर वण्पुगळ् मेल
आन्र तमिळ मरैगळ आयिरमुम ईन्र
मुदल ताय सडगोपन मोयंबाल वळर्त
इद ताय इरामानुसन
सप्त प्राहारों, आस्मान को छूने वाले पेड़ो से भरे वाटिकाओं के मध्य शयन करने वाले पेरिय पेरुमाळ के दिव्य गुणों पर रचित तमिळ वेदं के नाम से मानें जानें वालें तिरुवाय्मोळि के जनम देने वाली माँ स्वामि नम्माळ्वार और सुरक्षण कर पालन पोषण करने वाली चुस्त माँ एम्पेरुमानार हैं |
मिक्क इरै निलैयुम मेय्याम उयिर निलैयुम
तक्क नेरियुम तड़ैयागि तोक्कियलुम
ऊळ् विनैयुम वाळ्विनैयुम ओदुम कुरुगैयर कोन
याळिन इसै वेदत्तियल
आळ्वारतिरुनगरी के वासियों के नेता नम्माळ्वार हैं। वीणा के जैसे सुरीले तिरुवाय्मोळि पॉंच तत्त्वों की विषय प्रकट करती हैं, वें हैं- सर्वेश्वर श्रीमन नारायण के सच्चा स्वरूप (परमात्म स्वरूप), नित्य जीवात्मा की सच्चा स्वरूप, भगवान तक पहुँचाने वाले मार्ग कि सच्ची स्वरूप (उपाय स्वरूप), कर्मों के रूप में आने वाले आपत्तियाँ (विरोधि स्वरूप) और सर्वश्रेष्ठ उद्देश्य (उपेय स्वरूप).
अडियेन प्रीती रामानुज दासी
आधार: http://divyaprabandham.koyil.org/index.php/2020/05/thiruvaimozhi-thaniyans-tamil-simple/
archived in http://divyaprabandham.koyil.org
प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org