आर्ति प्रबंधं – ९

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम:

आर्ति प्रबंधं

<< पासुर ८

emperumanar-tkeni

उपक्षेप

मणवाळ मामुनि से कुछ लोग पूछते हैं, “हे! मणवाळ मामुनि! पेरिय तिरुमोळि १. ९. ८  के वचन “नोट्रेन पल पिरवि” के अनुसार जीवात्मा के अनेक जीवन हैं , प्रति जीवन भिन्न शरीर में।  और प्रति जीवन कर्मानुसार है। आपके कहना है कि आपके अनेक कर्म है जिनके अनुसार कई जन्मों लेने पड़ेंगे।  आपके इस स्थिति में एम्बेरुमानार कैसे आपके रक्षा कर सकते हैं?” मणवाळ मामुनि कहते हैं कि उन्हें साँसारिक बंधनों से विमुक्त श्रीमन नारायण के नित्य निवास तक पहुँचाने के लिए, श्री रामानुज पुनर अवतार करेंगें।  

पासुरम ९

कूबत्तिल विळुम कुळवियुडन कुदित्तु
अव्वाबत्तै नीक्कूम अंद अन्नै पोल्
पापत्त्ताल् यान पिरप्पेनेलुम इनि एन्दै एतिरासन
तान पिरक्कुम एन्नै उइप्पदा

शब्दार्थ

अन्नै  – एक माता
कुदित्तु
कूदती हैं
कूबत्तिल – कुँए  में
नीक्कूम – हटाती हैं
अव्वाबत्तै –  आपत्ति ( जो निगलती है )
कुळवियुडन – बच्चा जो
विळुम – गिरा (पहले )
पोल – जैसे
अंद  – वह
इनि यान पिरप्पेनेलुम – अगर बार बार जन्म लूँगा
पापत्ताल – मेरे पापो के कारण
एन्दै – मेरे पिता
एतिरासन – यतिराजा
तान पिरक्कुम – पुनर अवतार करेंगें
एन्नै
उइप्पदा  – मेरे रक्षा करने केलिए

सरल अनुवाद

अपने पास उपस्थित कुछ जन, मणवाळ मामुनि से  कहते हैं कि उनकी कर्मा ही उनके अनेक जन्मों की कारण हैं। कर्म फल अनुभव करने से, इस चक्र के अंत में मुक्ति पा सकते हैं। “आपके प्रति इस विषय में श्री रामानुज कुछ नहीं कर सकते हैं।”उनसे  मणवाळ मामुनि कहते हैं कि, बच्चे के कुँए में गिरते देख माता तुरंत उसी कुएं में बच्चे को बचाने केलिए कूदती हैं।  इसी प्रकार मेरे पिता पुनः-अवतार  लेकर मेरे रक्षा करेंगें।

स्पष्टीकरण

मणवाळ मामुनि एक दृष्टान्त से प्रारंभ करते हैं।  कुँए में गिरते बच्चे को देख माता तुरंत उस कुँए में बच्चे को बचाने केलिए कूदेगी। श्री रामानुज के मणवाळ मामुनि को बचाने की कारण इस दृष्टान्त से देते हैं।  वे बताते हैं कि, “कर्म फल से कुँए में गिरे बच्चे के स्थिति में अडियेन हूँ , और बच्चे की रक्षा के हेतु कुँए में कूदने वाली माता के पद पर अडियेन के पिता श्री रामानुज हैं। यहाँ मामुनि तिरुवाईमोळि ९.१०.५ पासुरम से “चरणमागुम तन्दाल अडैन्दारकेल्लाम मरणमानाल वैकुन्दम कोडुक्कुम पिरान” वचन कि प्रस्ताव करते हैं जिसका अर्थ है : श्रीमन नारायण के चरण कमलों में शरणागति करने से , प्राण निकलने पर परमपद निश्चित है।  यह प्रपत्ति का सार है। किन्तु मेरे पाप इतने क्रूर हैं कि शरणागति शास्त्र और उसकी उन्नत महिमा को भी विरोध कर सकती हैं।  इस कठिन स्थिति में भी मेरे पिता श्री रामानुज पुनः अवतार कर , तिरुवाईमोळि २.७. ६ “येदिर सूळल पुक्कु” वचनानुसार हर दिशा से मुझे समेट कर करेंगें।  वे स्वामी हैं और अडियेन उनकी संपत्ति।  संपत्ति एक बार गिरेगी, पर उसको समेट्ने केलिए स्वामी अनेक बार भी कूदेंगें। अडियेन को निश्चित विश्वास है कि अडियेन की रक्षा केलिए श्री रामानुज अवश्य पुनःअवतार करेंगें।

अडियेन प्रीती रामानुज दासि

आधार : https://divyaprabandham.koyil.org/index.php/2016/06/arththi-prabandham-9/

संगृहीत- https://divyaprabandham.koyil.org

प्रमेय (लक्ष्य) – https://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org

0 thoughts on “आर्ति प्रबंधं – ९”

Leave a Comment